बहराइचः भारत में अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं. ये लोग भिन्न-भिन्न मान्यताओं को मानते हैं. यहां लोग अलग-अलग परंपराओं से शादियां भी करते हैं. प्रत्येक समाज में अपने रीति-रिवाज के साथ शादी की रस्में निभाई जाती हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी शादी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे. उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले दूल्हा और दुल्हन के बिना दुल्हन के शादी की जाती है.
हजारों की संख्या में आते हैं बाराती
दरअसल, बहराइच जिले में स्थित गाजी की दरगाह पर लगने वाले मेले में पूरे देश से जायरीन हजारों की संख्या में बारात लेकर आते हैं, लेकिन खास बात यह है कि इस बारात में बाराती होते हैं, डोली होती है और दहेज का सामान होता है, लेकिन कोई दूल्हा और दुल्हन नहीं होती है. कहा जाता है कि गाजी की दरगाह पर पहुंचने वाले जायरीन बारातियों के साथ भारी मात्रा में दहेज का सामान लेकर पहुंचते हैं और गाजी की दरगाह पर मिन्नतें मांगते हुए जियारत करते हैं.
क्या है इसके पीछे की मान्यता
बताया जाता है कि बाराबंकी के रुदौली शरीफ के नवाब रुकनुद्दीन की बेटी जोहरा बीवी दोनों आंखों से अंधी थी. जोहरा बीवी की मां ने गाजी की दरगाह पर मिन्नतें मांगते हुए जियारत की. इसके बाद जोहरा बीवी की दोनों आंखें ठीक हो गईं और वह देखने लगी. आंखों में रोशनी आने के बाद जोहरा बीवी ने प्रण किया कि वह गाजी की दरगाह छोड़कर अपने घर वापस नहीं जाएंगी. इसके बाद जोहरा बीवी के परिजनों ने शादी के लिए रखा हुआ दहेज का सामान भी लाकर गाजी की दरगाह पर चढ़ा दिया. यह परंपरा तभी से जारी हो गई और पूरे देश से हजारों की संख्या में लोग बारात लेकर गाजी की दरगाह पर पहुंचने लगे.
1 हजार वर्ष पहले शुरू हुई थी परंपरा
इस मेले का शुभारंभ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शमीम अहमद के द्वारा किया गया, जिसमें जनपद समेत आसपास के जनपदों के तमाम संभ्रांत नागरिक भी शामिल होते हैं. 1 माह तक चलने वाले इस मेले में भारत समेत दूसरे देशों से भी लोग यहां जियारत करने पहुंचते हैं. यह परंपरा 1 हजार वर्ष से भी पुरानी बताई जाती है.