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भौरों के झुंड से प्रकट हुए कोतवाल बाबा भंवरनाथ, दर्शन से होती हैं भक्तों की मनोकामनाएं पूरी!

आजमगढ़ में एक ऐसा मंदिर है, जिसके दर्शन करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. वहीं, भगवान भक्तों के सभी कष्ट हर लेते हैं. इस मंदिर में लगे शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा कटा हुआ है.

भौरों के झुंड से प्रकट हुए आजमगढ़ के कोतवाल बाबा भंवरनाथ
भौरों के झुंड से प्रकट हुए आजमगढ़ के कोतवाल बाबा भंवरनाथ
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 25, 2023, 8:56 PM IST

भौरों के झुंड से प्रकट हुए आजमगढ़ के कोतवाल बाबा भंवरनाथ

आजमगढ़: जनपद में नगर के पश्चिमी छोर पर स्थित बाबा भंवरनाथ का मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है. लोगों के लिए बाबा भंवरनाथ के दर्शन-पूजन का खास महत्व है. भंवरनाथ मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी भक्त बाबा के दरबार में माथा टेकता है, उसकी मनोकामनाएं जरूर पूरी करते हैं. बाबा भंवरनाथ अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं. यही कारण जब भी शिव आराधना का कोई भी पर्व आता है. यहां बाबा के दर्शन करने के लिए जनपद के साथ अन्य शहरों के लोग भी आते हैं.

मंदिर की ये है मान्यता: पंदरापुर थाना क्षेत्र में स्थित भवरनाथ स्थित मंदिर की मान्यता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां भंवरनाथ नाम के एक वृद्ध संत आया करते थे. वो यहां पर अपनी गाय चराते थे. एक तरफ गाय चरती थी, दूसरी तरफ बाब बैठकर शिव का ध्यान करते थे. एक दिन पास में ही अपने जानवरों को लेकर आरे चरवाहे को भौरों (Bumblebees) ने काटना शुरू कर दिया. तभी अन्य चरवाहों ने देखा कि सारे भौरे जमीन से निकल रहे हैं. इसके बाद चरवाहों ने उस स्थान पर खुदाई की तो वहां से शिवलिंग प्रकट हुआ. जिसे यहां स्थापित किया गया. तभी से गाय चराने वाले बाबा के नाम पर इस स्थान का नाम भंवरनाथ पड़ गया.

बाबा भंवरनाथ का पूजन करते श्रद्धालु
बाबा भंवरनाथ का पूजन करते श्रद्धालु


7 साल में बनकर तैयार हुआ मंदिर: मंदिर की स्थापना के बारे में बताया जाता है कि 4 अक्टूबर 1951 को मंदिर की नींव रखी थी. 7 वर्षों बाद 13 दिसंबर 1958 में बनकर तैयार हुआ. अब यहां श्रद्धालुओं के लिए लगभग सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं. बाबा भंवरनाथ की महिमा केवल जनपद तक ही सीमित नहीं है. बल्कि दूसरे जनपद के लोग भी बाबा का आशीर्वाद लेने आते रहते हैं. महाशिवरात्रि हो या फिर सावन का महीना यहां लोग एक बार पहुंचकर बाबा का दर्शन करना नहीं भूलते. इस क्षेत्र से बाबा धाम जाने वाले भक्त भी रवाना होने से पहले यहां जलाभिषेक करते हैं. शहर की सीमा के अंदर स्थापित सभी शिवालयों में दर्शन-पूजन के बाद यहां आए बगैर शिव की आराधना पूरी नहीं मानी जाती. लोगों का मानना है कि नाम के अनुसार यहां दर्शन करने से किसी भी संकट से मुक्ति मिल जाती है. बाबा भंवरनाथ अपने भक्तों की वर्ष पर्यंत सुरक्षा करते हैं.

खुदाई में लगी बाबा को चोट: मंदिर के मुख्य पुजारी राकेश पंडित ने बताया कि बहुत साल पहले लोग यहां पर बहुत बड़ा जंगल था. जंगल में चारवाहे गाय चरा रहे थे, जहां पर इस समय बाबा विराजमान है. वहीं, बहुत अधिक मात्रा में भंवरा (bumblebees) उत्पन्न हुआ. लोगों के द्वारा जब यहां पर खुदाई की गई, जिसमें बाबा को चोट लग गई और उससे खून आने लगा. फिर धीरे धीरे इसका प्रचार प्रसार हुआ. पुजारी ने आगे बताया कि ऐसा शिवलिंग पूरे भारत में कही भी देखने को नहीं मिलेगा, क्योंकि इस शिवलिंग के ऊपर का भाग कटा हुआ है. उन्होंने बताया की जैसे काशी का कोतवाल काल भैरव को कहा जाता है. ठीक वैसे ही आजमगढ़ का कोतवाल बाबा भंवरनाथ को कहा जाता है. इसीलिए जो भी सच्चे मन से बाबा भंवरनाथ के दरबार में अपनी मनोकामना लेकर आता है. बाबा उसे जरूर पूर्ण करते हैं.

यह भी पढ़ें: वाराणसी में है एक और विश्वनाथ मंदिर, जिसकी ऊंचाई जानकर रह जाएंगे हैरान

यह भी पढ़ें: एक अनोखा मंदिर जहां प्रसाद नहीं ताला चढ़ाते हैं भक्त, जानें क्या है रहस्य

भौरों के झुंड से प्रकट हुए आजमगढ़ के कोतवाल बाबा भंवरनाथ

आजमगढ़: जनपद में नगर के पश्चिमी छोर पर स्थित बाबा भंवरनाथ का मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है. लोगों के लिए बाबा भंवरनाथ के दर्शन-पूजन का खास महत्व है. भंवरनाथ मंदिर के बारे में मान्यता है कि जो भी भक्त बाबा के दरबार में माथा टेकता है, उसकी मनोकामनाएं जरूर पूरी करते हैं. बाबा भंवरनाथ अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं. यही कारण जब भी शिव आराधना का कोई भी पर्व आता है. यहां बाबा के दर्शन करने के लिए जनपद के साथ अन्य शहरों के लोग भी आते हैं.

मंदिर की ये है मान्यता: पंदरापुर थाना क्षेत्र में स्थित भवरनाथ स्थित मंदिर की मान्यता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां भंवरनाथ नाम के एक वृद्ध संत आया करते थे. वो यहां पर अपनी गाय चराते थे. एक तरफ गाय चरती थी, दूसरी तरफ बाब बैठकर शिव का ध्यान करते थे. एक दिन पास में ही अपने जानवरों को लेकर आरे चरवाहे को भौरों (Bumblebees) ने काटना शुरू कर दिया. तभी अन्य चरवाहों ने देखा कि सारे भौरे जमीन से निकल रहे हैं. इसके बाद चरवाहों ने उस स्थान पर खुदाई की तो वहां से शिवलिंग प्रकट हुआ. जिसे यहां स्थापित किया गया. तभी से गाय चराने वाले बाबा के नाम पर इस स्थान का नाम भंवरनाथ पड़ गया.

बाबा भंवरनाथ का पूजन करते श्रद्धालु
बाबा भंवरनाथ का पूजन करते श्रद्धालु


7 साल में बनकर तैयार हुआ मंदिर: मंदिर की स्थापना के बारे में बताया जाता है कि 4 अक्टूबर 1951 को मंदिर की नींव रखी थी. 7 वर्षों बाद 13 दिसंबर 1958 में बनकर तैयार हुआ. अब यहां श्रद्धालुओं के लिए लगभग सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं. बाबा भंवरनाथ की महिमा केवल जनपद तक ही सीमित नहीं है. बल्कि दूसरे जनपद के लोग भी बाबा का आशीर्वाद लेने आते रहते हैं. महाशिवरात्रि हो या फिर सावन का महीना यहां लोग एक बार पहुंचकर बाबा का दर्शन करना नहीं भूलते. इस क्षेत्र से बाबा धाम जाने वाले भक्त भी रवाना होने से पहले यहां जलाभिषेक करते हैं. शहर की सीमा के अंदर स्थापित सभी शिवालयों में दर्शन-पूजन के बाद यहां आए बगैर शिव की आराधना पूरी नहीं मानी जाती. लोगों का मानना है कि नाम के अनुसार यहां दर्शन करने से किसी भी संकट से मुक्ति मिल जाती है. बाबा भंवरनाथ अपने भक्तों की वर्ष पर्यंत सुरक्षा करते हैं.

खुदाई में लगी बाबा को चोट: मंदिर के मुख्य पुजारी राकेश पंडित ने बताया कि बहुत साल पहले लोग यहां पर बहुत बड़ा जंगल था. जंगल में चारवाहे गाय चरा रहे थे, जहां पर इस समय बाबा विराजमान है. वहीं, बहुत अधिक मात्रा में भंवरा (bumblebees) उत्पन्न हुआ. लोगों के द्वारा जब यहां पर खुदाई की गई, जिसमें बाबा को चोट लग गई और उससे खून आने लगा. फिर धीरे धीरे इसका प्रचार प्रसार हुआ. पुजारी ने आगे बताया कि ऐसा शिवलिंग पूरे भारत में कही भी देखने को नहीं मिलेगा, क्योंकि इस शिवलिंग के ऊपर का भाग कटा हुआ है. उन्होंने बताया की जैसे काशी का कोतवाल काल भैरव को कहा जाता है. ठीक वैसे ही आजमगढ़ का कोतवाल बाबा भंवरनाथ को कहा जाता है. इसीलिए जो भी सच्चे मन से बाबा भंवरनाथ के दरबार में अपनी मनोकामना लेकर आता है. बाबा उसे जरूर पूर्ण करते हैं.

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