आजमगढ़ः जिले का एक ऐसा मंदिर जहां की मान्यता है कि भक्त इस दरबार से कभी खाली नहीं लौटते. मां के दरबार में आने वाले हर भक्त की मुराद पूरी होती है. ये कोई साधारण मंदिर नहीं, यहां पर दक्षिण मुखी देवी विराजमान हैं. पूरे एशिया में ऐसे दो मंदिर ही विराजमान हैं. यही वजह है कि यहां बारहों महीने भक्तों का तांता लगा रहता है. विन्ध्याचल और वैष्णोदेवी धाम जाने वाले लोग भी दक्षिण मुखी देवी के दरबार पर मत्था टेकने जरूर आते हैं. यहां कि मान्यता है कि मां के दरबार में हमेशा दीपक की ज्योति जलती रहती है. इसके साथ ही भक्तों की आशा की भी ज्योति यहां नहीं बुझती है.
आजमगढ़ शहर के मुख्य चौक पर स्थित दक्षिण मुखी देवी के मंदिर में बारहों महीने श्रद्धालुओं का शीश झुकता है. दक्षिण एशिया में केवल दो दक्षिण मुखी देवी का मंदिर होने से इसकी महत्ता और बढ़ जाती है. यहां प्रतिदिन मां का श्रृंगार होता है और दिन भर पूजन-अर्चन का सिलसिला चलता रहता है. मन्नत पूरी होने पर भक्त भी मां का श्रृंगार कराते हैं.
अतीत की बात करें तो जहां शहर का मुख्य चौक है, वहां पांच सौ साल पहले जंगल और झाड़ियां हुआ करती थीं. यहां से थोड़ी ही दूरी पर तमसा नदी बहती है. इस मंदिर से करीब दो सौ मीटर की दूरी पर तमसा नदी के तट पर रामघाट आज भी स्थित है. काली जी के बारे में कहा जाता है कि नेपाल के काठमांडू में दक्षिण मुखी प्रतिमा है. लेकिन वो काली जी की प्रतिमा है, जिन्हें दक्षिणेश्वरी काली जी के नाम से जाना जाता है. मां दुर्गा के बारे में जानकार यही बताते हैं कि दक्षिण मुखी मंदिर दो ही हैं. एक आजमगढ़ और दूसरा कोलकाता में है.
दक्षिणमुखी देवी मंदिर के पुजारी शरद चन्द्र तिवारी ने बताया कि मंदिर करीब 150 साल पुराना है. उनकी पांच पीढ़ियां इस मंदिर में पूजा अर्चना करते चले आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि ये मंदिर तांत्रिक मंदिर था, यहां उनके पूर्वजों ने तपस्या किया. जिसके बाद मां दुर्गा की यहां से प्रतिमा निकली. उसी प्रतिमा को ही इस मंदिर में स्थापित किया गया है. उन्होंने बताया कि मंदिर में जब से प्रतिमा की स्थापना हुई, तब से लेकर लगातार किसी भी दिन माता का श्रृंगार नहीं रूका है.
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मान्यता ये भी है कि कहीं भी दर्शन-पूजन करने से पहले लोग दक्षिणमुखी देवी के मंदिर का दर्शन जरूर करते हैं. यही वजह है कि नवरात्र ही नहीं साल के प्रत्येक दिन इस मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है.