आजमगढ़ः वर्ष 2012 से लगातार हार का सिलसिला तोड़ने की कोशिश में जुटी बहुजन समाज पार्टी की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती का किला उनके अपने गढ़ आजमगढ़ में ढहता दिख रहा है. बसपा नेताओं का पार्टी से इस्तीफे का सिलसिला जारी है. वर्ष 2017 के चुनाव में बीएसपी ने आजमगढ़ में 4 सीटें जीती थी, लेकिन वर्तमान में सिर्फ एक विधायक उसके साथ है. यही नहीं बसपा के सवर्ण नेता भी एक के बाद एक कर पार्टी से किनारा कर रहे हैं. लिहाजा बसपा की चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रही हैं.
पार्टी गठन के बाद से ही समाजवादी पार्टी और बसपा का आजमगढ़ में दबदबा रहा है. वर्ष 2017 में बसपा आजमगढ़ में छह सीटें जीतने में सफल रही थी. चार सीट सपा के खाते में गई. यूपी में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी. मायावती सरकार के दौरान हुए घोटालों के कारण मुबारकपुर विधायक व तत्कालीन लघु उद्योग मंत्री चंद्रदेव राम यादव करैली को लैकफेड घोटाला में जेल जाना पड़ा था. वर्ष 2017 में बसपा ने अपने प्रदर्शन में सुधार किया और पार्टी दस में से चार सीट जीतने में सफल रही. वहीं सपा के खाते में पांच और बीजेपी के खाते में एक सीट गयी वहीं बीजेपी का 21 साल बाद जिले में खाता खुला.
इसके बाद आजमगढ़ शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली सपा के लिए बड़ा मुस्लिम चेहरा बनकर उभरे थे. वर्ष 2012 के चुनाव में सपा की लहर के बाद भी जमाली मुबारकपुर सीट जीतने में सफल रहे थे, उस समय सपा को जिले में 9 सीटें मिली थी. इसी चुनाव के बाद से बसपा के कमजोर होने का सिलसिला शुरू हुआ तो आज तक जारी है. लोकसभा चुनाव 2014 में पहली बार बसपा को जिले में कोई सीट नहीं मिली. लालगंज सीट पहली बार बीजेपी के खाते में गई तो सदर से मुलायम सिंह सांसद चुने गए.
यह भी पढ़ें- विपक्षी नेताओं पर जमकर बरसे डिप्टी सीएम केशव मौर्य, कहा हिन्दू और हिंदुत्व के बारे में न बोलें राहुल गांधी
सुखदेव व जमाली का जाना बड़ा झटका
एक बार फिर विधानसभा चुनाव करीब है, लेकिन बसपा को एक के बाद एक झटके लग रहे हैं. पहले बसपा के संस्थापक सदस्य पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर ने पार्टी छोड़ी जो पिछड़ों के बड़े नेता माने जाते थे. इसके बाद उनके पुत्र कमलाकांत सपा में शामिल हो गए. कमलाकांत का सपा के टिकट पर दीदारगंज से चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है. वहीं दूसरा झटका बसपा को जमाली के रूप लगा. बसपा ने जमाली को नेता विधानमंडल बनाकर मुस्लिम मतदाताओं को साधने की कोशिश की थी, लेकिन मायावती का यह दांव भी फेल रहा. कारण कि जमाली ने पार्टी छोड़ दी. उन्होंने अभी तक कोई दल ज्वाइन नहीं किया है.
वंदना सिंह भाजपा में शामिल
बसपा सगड़ी विधायक को पार्टी विरोधी गतिविधि की वजह से मायावती ने निलंबित कर दिया था, लेकिन पार्टी से नहीं निकाला था. एक पखवारा पूर्व वंदना सिंह ने भी बसपा को बाय कर दिया और बीजेपी में शामिल हो गईं. सवर्णों में गहरी पैठ रखने वालीं वंदना सिंह का जाना बसपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. उनके जाने से सगड़ी में बसपा की राह कठिन हुई है.
बाहुबली अखंड सिंह का भी हाथी से मोह भंग
बाहुबली अखंड प्रताप सिंह पिछला चुनाव अतरौलिया से बसपा के सिंबल पर लड़े थे. वर्तमान में अखंड सिंह जेल में है, लेकिन यह माना जा रहा था कि उनकी पत्नी बसपा के सिबंल पर यहां से चुनाव लड़ेंगी. अखंड की पत्नी वंदना सिंह ने निषाद पार्टी का दामन थाम लिया है. निषाद पार्टी ने उन्हें अतरौलिया से चुनाव लड़ने की हरी झंडी भी दे दी है. यहां बीजेपी बाहुबली की पत्नी के जरिए एक तीर से दो शिकार कर रही है. एक तरफ वह वंदना के जरिये सवर्णों को बांधने की कोशिश करेगी वहीं निषाद वोटों के दम पर इस सीट को हासिल करने प्रयास करेगी.
संग्राम यादव को मिले इतने वोट
चुनाव परिणाम आने पर संग्राम यादव को 74276 वोट मिले. भाजपा के कन्हैया निषाद को 71809 तो बसपा से पूर्व प्रमुख अंखड प्रताप सिंह 56536 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे. सवर्ण और निषाद बाहुल्य इस सीट पर अखंड प्रताप की सीधी नजर थी. हत्या के एक मामले में जेल में बंद अखंड प्रताप की पत्नी वंदना सिंह उनके जगह पर भाजपा गठबंधन की टिकट पर ताल ठोक सकती हैं.
दो माह पूर्व जिले के दौरे पर आए निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर संजय निषाद ने कहा था कि आजमगढ़ की अतरौलिया, गोपालपुर और फूलपुर पवई सीट पर वह दावा करेंगे, लेकिन प्राथमिकता की सीट अतरौलिया होगी. अगर गठबंधन में ये सीट उनके खाते में जाती है, तो निषाद पार्टी के जीत की मजबूत संभावना है.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप