अयोध्या: उत्तर प्रदेश के छोटे शहर से निकले भारत मां के वीर सपूत ने वीरता का अनोखा करतब दिखाया. भारत के इस सिपाही में देश सेवा के प्रति साहस ऐसा कि सेना के जवान कई बार सोचने पर मजबूर हो जाते हैं. हम बात कर रहे हैं वर्ष 1971 में एयर चीफ मार्शल के सहायक एडीसी के पद पर तैनात हुए जांबाज विंग कमांडर धीरेंद्र सिंह जफा की.
उत्तर प्रदेश के जफा का जन्म 25 दिसंबर 1935 को बदायूं शहर में हुआ था. यह भारत के वही जांबाज सिपाही थे, जिन्होंने 1971 में भारत और पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में पाकिस्तानी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे. इस युद्ध में उन्होंने 6 बार उड़ान भरी. पांच बार उड़ान सफल रही, लेकिन छठवीं बार उन्हें विमान से छलांग लगानी पड़ी, जिसके चलते उनके शरीर में चोटें आई थी और दुश्मन देश की सेना ने उन्हें घेर लिया था. पाकिस्तान में उन्हें बंदी बना लिया गया था.
वायु सेना के विंग कमांडर धीरेंद्र सिंह जफा को गुजरे 2 साल बीत चुके हैं. देश की रक्षा में उनके साथ योगदान के लिए उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनका गौरव ऐसा है कि लोगों ने स्वयं ही उन्हें आकाश वीर की उपाधि से नवाजा.
विंग कमांडर ने सामाजिक सौहार्द बनाने का किया प्रयास
विंग कमांडर वर्ष 1983 के करीब अयोध्या आए, जिसके बाद यहीं के होकर रह गए. वर्ष 2010 में जब अयोध्या विवाद पर हाईकोर्ट का निर्णय आया था तो विंग कमांडर जफा ने हिंदू और मुस्लिम समाज के लोगों के साथ बैठक करके सामाजिक सौहार्द कायम करने का भरसक प्रयास किया था. उन्होंने फैजाबाद शहर से अयोध्या तक पैदल यात्रा निकाली थी, जिसमें कई स्थानीय हिंदू और मुस्लिम समाज के लोग शामिल हुए थे.
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट जैसा ही निर्णय चाहते थे जफा
अयोध्या के सोशल एक्टिविस्ट और शायद मुजम्मिल फिदा की मानें तो अयोध्या विवाद पर जैसा निर्णय आज सुप्रीम कोर्ट ने दिया है वैसा ही विंग कमांडर धीरेंद्र सिंह जफा चाहते थे. उनका प्रयास था कि न्यायालय अगर मंदिर के पक्ष में फैसला देता है तो दूसरे समुदाय के लिए भी मस्जिद के लिए जगह दें और उसे व्यवस्था दें.
जानिए विंग कमांडर धीरेंद्र सिंह जफा के विषय में क्या है विशेष
विंग कमांडर नाम का एक पुस्तक लिखी है, जिसका नाम है 'मृत्यु कभी कष्टदायी न थी'. इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि किस प्रकार उन्होंने अपने विशेष अनुग्रह से अधिकारियों को विवश कर दिया कि उन्हें पाकिस्तान की सेना से मोर्चा लेने के लिए भेजा जाए. जापानी भारतीय वायुसेना में 6 नवंबर 1954 को फाइटर पायलट के रूप में कमीशन प्राप्त किया था. वर्ष 1968 से 1969 के बीच उन्होंने वायु सेना में अदम्य साहस का परिचय दिया, जिसके लिए उन्हें एयरफोर्स पदक से नवाजा गया.
वर्ष 1971 के दिसंबर माह में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान पश्चिमी मोर्चे के भीषण युद्ध क्षेत्र में भारतीय सैनिकों की मांग के अनुरूप उन्होंने नजदीक से उड़ान भरी. कई बार दुश्मन देश की सेना पर हमले किए. वर्ष 1971 में ही फिरोजपुर के हुसैनीवाला क्षेत्र में पाकिस्तान की सेना ने जब भारतीय इन्फेंट्री बटालियन को घेर लिया तो उन्होंने इसके जवाब में कई हमले सत्र की सेना पर किए. पाकिस्तानी सेना को इन हमलों के चलते बड़ा नुकसान झेलना पड़ा.
विंग कमांडर ने किया हवाई सेना के स्ट्राइक मिशन का नेतृत्व
पाकिस्तान की सेना से मोर्चा लेने के लिए विंग कमांडर धीरेंद्र सिंह जापानी चार वायुयान वाले स्ट्राइक मिशन का नेतृत्व किया. ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तानी सेना की गोलीबारी में जमीन के नजदीक उड़ रहे विंग कमांडर के वायुयान को निशाना बना लिया गया. विमान पर पाकिस्तान की ओर से की गई गोलीबारी के चलते आग लग गई और विंग कमांडर को पाकिस्तानी सीमा क्षेत्र में विमान से कूदना पड़ा.
स्ट्राइक मिशन के दौरान इजेक्शन में विंग कमांडर के रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोटें आई. 1 साल तक वह पाकिस्तान में युद्ध बंदी रहे इस दौरान उन्होंने पाकिस्तान की जेल में कष्ट पूर्ण समय बिताया और इस दौरान भी वह अपने साहस का परिचय देते रहे. 1972 में पाकिस्तान ने उन्हें भारत में प्रत्यर्पित कर दिया, जिसके बाद उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
विंग कमांडर जफा ने 19 अप्रैल 2017 को ली अंतिम सांस
19 अप्रैल 2017 को विंग कमांडर धीरेंद्र सिंह जफा ने दिल्ली के मेदांता हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली. उनकी इच्छा के अनुसार उनके परिजनों ने सरयू में उनकी अस्थियों को विसर्जित कर उनका अंतिम संस्कार किया.
कंटोनमेंट बोर्ड के अधिशासी अधिकारी अमित यादव का कहना है कि विंग कमांडर धीरेंद्र सिंह जफा की वीरता से वर्तमान पीढ़ी को अवगत कराया जाना आवश्यक है. इसी उद्देश्य को लेकर मंगलवार आज यानी 16 दिसंबर को छावनी परिसर में विंग कमांडर धीरेंद्र सिंह जफा की प्रतिमा स्थापित की गई है. प्रतिमा के पारस चैनल इंडियन एयरफोर्स का विमान भी स्थापित किया गया है. इसे तांम्रम् से मंगाया गया है. भविष्य में विंग कमांडर के इतिहास को लोगों तक पहुंचाने के लिए और भी प्रयास किए जाएंगे.