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मिथिला की रामलीला क्यों कही जाती है जानकी लीला, जानिए वजह

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Published : Oct 27, 2019, 9:58 AM IST

रामलीला का आयोजन भारत में अलग-अलग स्थानों पर किया जाता है, लेकिन मिथिला की रामलीला अपने आपमें बेहद खास है. यहां रामलीला में सीता-राम का वियोग प्रसंग नहीं दिखाया जाता है. दरअसल मिथिलांचल में माता सीता को बहन और बुआ का दर्जा प्राप्त है. इस कारण से मिथिला में सीता का राम से वियोग देखना कोई भी पसंद नहीं करता है.

जानिए मिथिला की रामलीला क्यों है खास.

अयोध्या: जिले में इस बार दीपोत्सव के दौरान तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिसमें रामलीला का मंचन किया गया. इसमें नेपाल से आए कलाकारों द्वारा मंचन की गई रामलीला विशेष रही. विशेष मान्यता के कारण इस रामलीला में राम-सीता वियोग प्रसंग की प्रस्तुति नहीं की जाती है. माना जाता है कि मिथिलांचल में मां सीता को बहन और बुआ का दर्जा प्राप्त है, इस कारण से मिथिला में सीता का राम से वियोग देखना कोई भी पसंद नहीं करता है. इसी वजह से इसे जानकी लीला भी कहा जाता है.

मिथिला की रामलीला को जानकी लीला भी कहा जाता है.


मिथिलावासी माता सीता को मानते हैं बहन
नेपाल स्थित जनकपुर राजा जनक की राजधानी थी, जहां अकाल पड़ने के बाद ज्योतिषियों ने राजा जनक को सोने का हल चलाने का सुझाव दिया. जब राजा ने हल चलाया तो जमीन में हल से एक घड़ा टकराया. मान्यता है कि इसी घड़े से सीता जी निकली थीं. मिथिलावासी माता सीता को बहन और भगवान श्री राम को जमाई मानते हैं.

ये भी पढ़ें- गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हुआ अयोध्या का भव्य दीपोत्सव


राम-सीता वियोग प्रसंग का मंचन नहीं होता
रामलीला का मंचन करने नेपाल से आए मिथिला नाट्य कला परिषद के कलाकारों से ईटीवी भारत ने विशेष बातचीत की. मिथिला नाट्य कला परिषद के पदाधिकारी परमेश झा का कहना है कि नेपाल में मां सीता को अपने घर के परिवार की सदस्य की तरह माना जाता है. जैसे घर के किसी व्यक्ति को कष्ट होने से घर के अन्य सदस्य भी मायूस हो जाते हैं, वैसे ही माता सीता का राम से वियोग नेपाल के लोग नहीं देख सकते. इसी मान्यता के चलते मंचन में राम-सीता वियोग के प्रसंग को स्थान नहीं दिया गया है.

अयोध्या: जिले में इस बार दीपोत्सव के दौरान तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिसमें रामलीला का मंचन किया गया. इसमें नेपाल से आए कलाकारों द्वारा मंचन की गई रामलीला विशेष रही. विशेष मान्यता के कारण इस रामलीला में राम-सीता वियोग प्रसंग की प्रस्तुति नहीं की जाती है. माना जाता है कि मिथिलांचल में मां सीता को बहन और बुआ का दर्जा प्राप्त है, इस कारण से मिथिला में सीता का राम से वियोग देखना कोई भी पसंद नहीं करता है. इसी वजह से इसे जानकी लीला भी कहा जाता है.

मिथिला की रामलीला को जानकी लीला भी कहा जाता है.


मिथिलावासी माता सीता को मानते हैं बहन
नेपाल स्थित जनकपुर राजा जनक की राजधानी थी, जहां अकाल पड़ने के बाद ज्योतिषियों ने राजा जनक को सोने का हल चलाने का सुझाव दिया. जब राजा ने हल चलाया तो जमीन में हल से एक घड़ा टकराया. मान्यता है कि इसी घड़े से सीता जी निकली थीं. मिथिलावासी माता सीता को बहन और भगवान श्री राम को जमाई मानते हैं.

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राम-सीता वियोग प्रसंग का मंचन नहीं होता
रामलीला का मंचन करने नेपाल से आए मिथिला नाट्य कला परिषद के कलाकारों से ईटीवी भारत ने विशेष बातचीत की. मिथिला नाट्य कला परिषद के पदाधिकारी परमेश झा का कहना है कि नेपाल में मां सीता को अपने घर के परिवार की सदस्य की तरह माना जाता है. जैसे घर के किसी व्यक्ति को कष्ट होने से घर के अन्य सदस्य भी मायूस हो जाते हैं, वैसे ही माता सीता का राम से वियोग नेपाल के लोग नहीं देख सकते. इसी मान्यता के चलते मंचन में राम-सीता वियोग के प्रसंग को स्थान नहीं दिया गया है.

Intro:अयोध्या: इस बार दीपोत्सव के दौरान तीन दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए. जिसमें कुल 6 देशों की रामलीला का मंचन किया गया. इन रामलीला में नेपाल की रामलीला विशेष रही. एक विशेष मान्यता के चलते नेपालवासी राम सीता वियोग प्रसंग को नहीं दिखाते.


Body:माना जाता है कि मां सीता की उत्पत्ति मिथिलांचल में हुई थी. नेपाल में स्थित जनकपुर राजा जनक की राजधानी थी. जहां अकाल पड़ने के बाद ज्योतिषिओं ने राजा जनक को सोने का हल चलाने का सुझाव दिया. जब राजा ने हल चलाया तो जमीन में हल से एक घड़ा टकराया. मान्यता है कि इसी घड़े से मां सीता निकली थीं. मिथिला वासी मां सीता को बहन और भगवान श्री राम को जमाई मानते हैं.

रामलीला का मंचन करने नेपाल से मिथिला नाट्य कला परिषद के कलाकारों से ईटीवी भारत ने विशेष बातचीत की. मिथिला नाट्य कला परिषद के पदाधिकारी परमेश झा का कहना है कि नेपाल में मां सीता को अपने घर के परिवार की सदस्य की तरह माना जाता है. जैसे घर के किसी व्यक्ति को कष्ट होने से घर के अन्य सदस्य भी मायूस हो जाते हैं, वैसे ही सीता का राम से वियोग नेपाल के लोग में नहीं देख सकते. इसी मान्यता के चलते नेपाल में जनक लीला के मंचन में राम सीता वियोग के प्रसंग को स्थान नहीं दिया गया है.




Conclusion:मिथिला नाट्य कला परिषद के पदाधिकारी परमेश्वर बताते हैं कि मिथिलांचल में मां सीता को बहन और बुआ का दर्जा प्राप्त है. सभी के घर की दुलारी बेटी होने के कारण मिथिला में सीता का राम से भी योग देखना कोई भी पसंद नहीं करता. यह मिथिला वासियों के लिए असहनीय है. उन्होंने बताया कि मिथिला नाटक कला परिषद पिछले 40 वर्षों से मैथिली भाषा के विकास पर काम कर रही है. यह संस्था गीत संगीत के विकास को रंग रंग मंच पर लाने का प्रयास करती है.

बाइट- परमेश झा, पदाधिकारी, मिथिला नाट्य कला परिषद, नेपाल
बाइट- पूजा ठाकुर, कलाकार, मिथिला नाट्य कला परिषद, नेपाल
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