अयोध्या : राम मन्दिर आंदोलन के महानायक महंत परमहंस रामचंद्र दास की तपोस्थली दिगंबर अखाड़ा में इन दिनों संगीतमय भजन के स्वर गूंज रहे हैं. श्री राम मन्दिर आंदोलन के महानायक परमहंस महाराज श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष थे. उन्होंने सन 1949 से रामजन्म भूमि आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की तथा 1975 से उन्होंने दिगम्बर अखाड़े के महंत का पद संभाला. वे न केवल आजीवन इसके लिए संघर्षरत रहे बल्कि उन्होंने आंदोलन में अहिंसा को ही हथियार बनाया. राममंदिर निर्माण का काम आरम्भ होने के बाद परमहंस के उत्तराधिकारी महंत सुरेश दास बहुत खुश है. अब आंदोलन से मुक्ति मिलने के बाद वे प्रभु की भक्ति में लीन हैं और खुद हारमोनियम पर बैठ रोज भजन गा भक्ति में लीन रहते हैं.
किशोरावस्था में स्वीकर किया साधु जीवन
परमहंस महाराज ने किशोरावस्था में साधु जीवन स्वीकार कर लिया और उनका नाम रामचन्द्र दास हो गया. वे जब कक्षा 10 में पढ़ते थे, तभी पास के किसी ग्राम में यज्ञ देखने गए. वहां सन्तों के सम्पर्क में आ गए और हृदय में वैराग्य जागृत हो गया था.
दिगम्बर अणि अखाड़ा के सर्वसम्मति से चुने गए श्री महन्त
1975 में श्री पंच रामानन्दीय दिगम्बर अखाड़ा की अयोध्या बैठक में महन्त बनाये गए. कालांतर में वृन्दावन में वे अखिल भारतीय श्री पंच रामानन्दीय दिगम्बर अणि अखाड़ा के सर्वसम्मति से श्री महन्त चुने गए. 1989 में परमहंस महाराज को श्रीराम जन्मभूमि न्यास का कार्याध्यक्ष घोषित किया गया. बाद में वे श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण समिति के अध्यक्ष भी चुने गए.
'प्रतिवाद भयंकर' की उपाधि
जगद्गुरु रामानन्दाचार्य पूज्य स्वामी भगवदाचार्य जी महाराज ने आपको 'प्रतिवाद भयंकर' की उपाधि से सुशोभित किया था. धर्मसम्राट पूज्य स्वामी करपात्री जी महाराज ने परमहंस महाराज के बारे में कहा था कि यह व्यक्ति केवल विद्वान ही नहीं अपितु पुस्तकालय है.
श्रीराम जन्मभूमि में पूजा-अर्चना के लिए 1950 में जिला न्यायालय में दिया प्रार्थना पत्र
परमहंस महाराज ने श्रीराम जन्मभूमि में पूजा-अर्चना के लिए 1950 में जिला न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिया. अदालत ने उस प्रार्थना पत्र पर अनुकूल आदेश दिया और निषेधाज्ञा जारी की. मुस्लिम पक्ष ने उच्च न्यायालय में अपील की. उच्च न्यायालय ने अपील रद्द करके पूजा-अर्चना बेरोक-टोक जारी रखने के लिए जिला न्यायालय के आदेश की पुष्टि कर दी. इसी आदेश के कारण आज तक श्रीराम जन्मभूमि पर श्रीरामलला की पूजा-अर्चना होती चली आ रही है.
परमहंस जी महाराज की दृढ़ संकल्प शक्ति के परिणाम स्वरूप ही निश्चित तिथि, स्थान एवं पूर्व निर्धारित शुभ मुहूर्त 1989 को शिलान्यास कार्यक्रम सम्पन्न हुआ. 30 अक्टूबर 1990 की कारसेवा के समय अनेक बाधाओं को पार करते हुए अयोध्या में आए हजारों कार सेवकों का उन्होंने नेतृत्व व मार्गदर्शन भी किया. दो नवम्बर 1990 को परमहंस जी का आशीर्वाद लेकर कार सेवकों ने श्रीराम जन्मभूमि के लिए कूच किया.
कहा- शिलादान नहीं करने दिया गया तो मैं रसायन खाकर अपने प्राण त्याग दूंगा
महंत सुरेश दास कहते है कि उनके गुरु परमहंस जी ने मार्च 2002 में शिलादान पर अदालत द्वारा लगायी गई रोक के समय 13 मार्च को एक घोषणा की. परमहंस की इस घोषणा ने सारे देश व सरकार को हिलाकर रख दिया. उन्होंने कहा कि अगर उन्हें शिलादान नहीं करने दिया गया तो वे रसायन खाकर अपने प्राण त्याग देंगे.'
हनुमानगढ़ी के पुजारी रमेश दास के अनुसार परमहंस बीमार होकर भी वे अपने संकल्प को दृढ़ता के साथ व्यक्त एवं देश, धर्म-संस्कृति की रक्षा हेतु समाज का मार्गदर्शन करते रहे. सन 2003 को यह महान संत इस संसार को त्यागकर भगवान के धाम चले गए. परमहंस अमर हैं और उनका आंदोलन अमिट. पर्व कोई भी हो दिगम्बर अखाड़ा की चर्चा खुद होने लगती है.