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अयोध्या पंचकोसी और 14 कोसी परिक्रमा से मिलती है पापों से मुक्ति

अयोध्या जिले में कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की नवमी को 14 कोसी व पंचकोसी परिक्रमा का काफी महत्व है. हालांकि कोरोना के मद्देनजर प्रशासन की तरफ से दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, जिसका पालन सभी को करना आवश्यक है.

14 कोसी परिक्रमा से मिलती है पापों से मुक्ति
14 कोसी परिक्रमा से मिलती है पापों से मुक्ति
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Published : Nov 18, 2020, 10:51 AM IST

अयोध्या: प्रत्येक कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की नवमी को अयोध्या की 14 कोसी व देवोत्थानी एकादशी को पंचकोसी परिक्रमा की परंपरा है. हालांकि जिला प्रशासन ने कोविड-19 की चुनौती के कारण रामनगरी के संतों व नागरिकों को दो गज की दूरी व मास्क की सुरक्षा व्यवस्था के साथ उनकी सुविधाओं को लेकर आवश्यक प्रबंध किया है. परिक्रमा करते समय देवताओं के मंत्र का जप मन ही मन करते रहना चाहिए.

जगद्गुरु रामानुजाचार्य डॉ राघवाचार्य ने पंचकोसी परिक्रमा की मान्यता के बारे में जानकारी दी. उनके अनुसार दैवीय शक्ति का तेज एवं बल प्राप्त करने के लिए भक्त को दाएं हाथ की ओर परिक्रमा करनी चाहिए. परिक्रमा करते समय देवताओं के मंत्र का जप मन ही मन करते रहना चाहिए. परिक्रमा के दौरान धक्का-मुक्की करना, बात करना वर्जित है. देवी-देवता को प्रिय तुलसी, रुद्राक्ष अथवा कमलगट्टे की माला धारण करना चाहिए.

जानें पंचकोसी 14 कोसी परिक्रमा का महत्व

प्रत्येक पग में मिलता है अश्वमेघ यज्ञ के समान फल

उन्होंने कहा कि पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु की प्रतिमा की परिक्रमा के संबंध में कहा गया है कि जो भक्त भक्ति से भगवान श्री हरी की परिक्रमा पग उठा कर धीरे-धीरे करता है. वह प्रत्येक पग के चलने में एक-एक अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त करता है. श्रद्धालु भक्त जितने पग परिक्रमा करते हुए चलता है वह उतने सहस्त्र कल्पों तक भगवान श्री हरि विष्णु के धाम में उनके साथ प्रसन्नता पूर्वक रहता है.

14 कोस में अयोध्या नगर और पंच कोस में अयोध्या का क्षेत्र आता है

उदासीन ऋषि आश्रम, रानोपाली के महंत डॉ भरत दास के अनुसार अयोध्या में मुख्य तौर से 3 प्रकार की परिक्रमा होती है. पहली 84 कोसी, दूसरी 14 कोसी और तीसरा पंच कोसी. इसमें 84 कोस में अवध क्षेत्र, 14 कोस में अयोध्या नगर और पंच कोस में अयोध्या का क्षेत्र आता है. इसलिए तीन परिक्रमा कार्तिक माह में होती है जिसमें भारी संख्या में लोग शामिल होते हैं. जन्म जन्मांतर में अनेकों पापों को नष्ट करने के लिए परिक्रमा की जाती है.

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14 कोसी परिक्रमा से मिलती है पापों से मुक्ति
उन्होंने बताया कि परिक्रमा का मुख्य उद्देश्य ये है कि हिन्दू धर्म के मुताबिक जीवात्मा 84 लाख योनियों में भ्रमण करती है. ऐसे में जन्म जन्मांतर में अनेकों पाप भी किए होते हैं. इन पापों को नष्ट करने के लिए परिक्रमा की जाती है. कहा जाता है कि परिक्रमा में पग-पग पर पाप नष्ट होते हैं.नवमी को किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता

अयोध्या की 14 कोसी परिक्रमा अक्षय नवमी को होती है. ऐसा कहा जाता है कि इस परिक्रमा के दौरान भगवान विष्णु का देवोत्थान (जागना) होता है. इस वजह से इस दौरान किए गए काम क्षरण नहीं होते. पंचकोसी परिक्रमा अयोध्या क्षेत्र में हर एकादशी को होती है. इस तरह से हर महीने में दो बार ये परिक्रमा होती है. इस परिक्रमा का उद्देश्य पापों को नष्ट करना होता है. कार्तिक माह की देवोत्थानी एकादशी की परिक्रमा विशेष फलदायी है. इस दिन भगवान विष्णु चतुर्मास के बाद शयन से उठते हैं.

जो असमर्थ वो ऐसे करें परिक्रमा

जिन लोगों को चलने में परेशानी है, वो रामकोट क्षेत्र की परिक्रमा भी कर सकते हैं. जो लोग रामकोट क्षेत्र की परिक्रमा करने में भी असमर्थ हैं वो अयोध्या में स्थ‍ित कनक भवन या किसी मंदिर की परिक्रमा भी कर सकते हैं. अयोध्या में श्रद्धालु मां सरयू में डुबकी लगाने के साथ ही परिक्रमा आरंभ करते हैं. इस दौरान वे नागेश्वरनाथ मंदिर, हनुमानगढ़ी व कनक भवन के अलावा श्रीरामजन्मभूमि में विराजमान रामलला सहित अयोध्या के समस्त तीर्थों की परिक्रमा कर लेते हैं.

ज्योतिषी गिरीश पाठक के अनुसार

22 नवम्बर की रात एक बजकर 56 मिनट से आरंभ होकर अक्षय नवमी के पर्व पर 14 कोसी परिक्रमा होगी जो 23 को पूरे दिन व रात दो बजकर 50 मिनट तक चलेगी. देवोत्थानी एकादशी के पर्व पर 24 नवंबर को निर्धारित मुहूर्त भोर चार बजकर 11 मिनट से आरम्भ होकर 25 नवंबर को देर रात पांच बजकर 57 मिनट तक चलती रहेगी. इस परिक्रमा में मेलार्थियों के साथ स्थानीय नागरिक भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. मेला का समापन चार नवम्बर को पूर्णिमा स्नान के साथ होगा.

अयोध्या: प्रत्येक कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की नवमी को अयोध्या की 14 कोसी व देवोत्थानी एकादशी को पंचकोसी परिक्रमा की परंपरा है. हालांकि जिला प्रशासन ने कोविड-19 की चुनौती के कारण रामनगरी के संतों व नागरिकों को दो गज की दूरी व मास्क की सुरक्षा व्यवस्था के साथ उनकी सुविधाओं को लेकर आवश्यक प्रबंध किया है. परिक्रमा करते समय देवताओं के मंत्र का जप मन ही मन करते रहना चाहिए.

जगद्गुरु रामानुजाचार्य डॉ राघवाचार्य ने पंचकोसी परिक्रमा की मान्यता के बारे में जानकारी दी. उनके अनुसार दैवीय शक्ति का तेज एवं बल प्राप्त करने के लिए भक्त को दाएं हाथ की ओर परिक्रमा करनी चाहिए. परिक्रमा करते समय देवताओं के मंत्र का जप मन ही मन करते रहना चाहिए. परिक्रमा के दौरान धक्का-मुक्की करना, बात करना वर्जित है. देवी-देवता को प्रिय तुलसी, रुद्राक्ष अथवा कमलगट्टे की माला धारण करना चाहिए.

जानें पंचकोसी 14 कोसी परिक्रमा का महत्व

प्रत्येक पग में मिलता है अश्वमेघ यज्ञ के समान फल

उन्होंने कहा कि पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु की प्रतिमा की परिक्रमा के संबंध में कहा गया है कि जो भक्त भक्ति से भगवान श्री हरी की परिक्रमा पग उठा कर धीरे-धीरे करता है. वह प्रत्येक पग के चलने में एक-एक अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त करता है. श्रद्धालु भक्त जितने पग परिक्रमा करते हुए चलता है वह उतने सहस्त्र कल्पों तक भगवान श्री हरि विष्णु के धाम में उनके साथ प्रसन्नता पूर्वक रहता है.

14 कोस में अयोध्या नगर और पंच कोस में अयोध्या का क्षेत्र आता है

उदासीन ऋषि आश्रम, रानोपाली के महंत डॉ भरत दास के अनुसार अयोध्या में मुख्य तौर से 3 प्रकार की परिक्रमा होती है. पहली 84 कोसी, दूसरी 14 कोसी और तीसरा पंच कोसी. इसमें 84 कोस में अवध क्षेत्र, 14 कोस में अयोध्या नगर और पंच कोस में अयोध्या का क्षेत्र आता है. इसलिए तीन परिक्रमा कार्तिक माह में होती है जिसमें भारी संख्या में लोग शामिल होते हैं. जन्म जन्मांतर में अनेकों पापों को नष्ट करने के लिए परिक्रमा की जाती है.

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14 कोसी परिक्रमा से मिलती है पापों से मुक्ति
उन्होंने बताया कि परिक्रमा का मुख्य उद्देश्य ये है कि हिन्दू धर्म के मुताबिक जीवात्मा 84 लाख योनियों में भ्रमण करती है. ऐसे में जन्म जन्मांतर में अनेकों पाप भी किए होते हैं. इन पापों को नष्ट करने के लिए परिक्रमा की जाती है. कहा जाता है कि परिक्रमा में पग-पग पर पाप नष्ट होते हैं.नवमी को किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता

अयोध्या की 14 कोसी परिक्रमा अक्षय नवमी को होती है. ऐसा कहा जाता है कि इस परिक्रमा के दौरान भगवान विष्णु का देवोत्थान (जागना) होता है. इस वजह से इस दौरान किए गए काम क्षरण नहीं होते. पंचकोसी परिक्रमा अयोध्या क्षेत्र में हर एकादशी को होती है. इस तरह से हर महीने में दो बार ये परिक्रमा होती है. इस परिक्रमा का उद्देश्य पापों को नष्ट करना होता है. कार्तिक माह की देवोत्थानी एकादशी की परिक्रमा विशेष फलदायी है. इस दिन भगवान विष्णु चतुर्मास के बाद शयन से उठते हैं.

जो असमर्थ वो ऐसे करें परिक्रमा

जिन लोगों को चलने में परेशानी है, वो रामकोट क्षेत्र की परिक्रमा भी कर सकते हैं. जो लोग रामकोट क्षेत्र की परिक्रमा करने में भी असमर्थ हैं वो अयोध्या में स्थ‍ित कनक भवन या किसी मंदिर की परिक्रमा भी कर सकते हैं. अयोध्या में श्रद्धालु मां सरयू में डुबकी लगाने के साथ ही परिक्रमा आरंभ करते हैं. इस दौरान वे नागेश्वरनाथ मंदिर, हनुमानगढ़ी व कनक भवन के अलावा श्रीरामजन्मभूमि में विराजमान रामलला सहित अयोध्या के समस्त तीर्थों की परिक्रमा कर लेते हैं.

ज्योतिषी गिरीश पाठक के अनुसार

22 नवम्बर की रात एक बजकर 56 मिनट से आरंभ होकर अक्षय नवमी के पर्व पर 14 कोसी परिक्रमा होगी जो 23 को पूरे दिन व रात दो बजकर 50 मिनट तक चलेगी. देवोत्थानी एकादशी के पर्व पर 24 नवंबर को निर्धारित मुहूर्त भोर चार बजकर 11 मिनट से आरम्भ होकर 25 नवंबर को देर रात पांच बजकर 57 मिनट तक चलती रहेगी. इस परिक्रमा में मेलार्थियों के साथ स्थानीय नागरिक भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. मेला का समापन चार नवम्बर को पूर्णिमा स्नान के साथ होगा.

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