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लक्ष्मण किला के संस्थापक आचार्य युगलानन्य शरण की मनाई गई 201वीं जयंती - लक्ष्मण किला

कोविड-19 की चुनौतियों के बीच रसिक परंपरा के आचार्य पीठ लक्ष्मण किला के आचार्य युगलानन्य शरण की 201वीं जयंती सादगीपूर्ण मनाई गई. वर्तमान किलाधीश महंत मैथिलीरमण शरण ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

लक्ष्मण किला के संस्थापक आचार्य युगलानन्य शरण.
लक्ष्मण किला के संस्थापक आचार्य युगलानन्य शरण.
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Published : Nov 22, 2020, 8:23 AM IST

Updated : Nov 22, 2020, 9:36 AM IST

अयोध्या : अयोध्या अद्भुत है. यहां संतों की पंरपरा भी विराट है. जो अलग-अलग स्थानों पर भले रहते है लेकिन उनके उद्देश्यों में समानता दिखाई पड़ती है. रसिक परंपरा के आचार्य पीठ लक्ष्मण किला के आचार्य युगलानन्य शरण ऐसे ही महापुरुष थे. पीठ पर उनकी 201वीं जयंती कोविड-19 की चुनौतियों के बीच सादगीपूर्ण मनाई गई. वर्तमान किलाधीश महंत मैथिलीरमण शरण ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

लक्ष्मण किला के संस्थापक आचार्य युगलानन्य शरण.
लक्ष्मण किला के संस्थापक आचार्य युगलानन्य शरण.

रसिकोपासना के आचार्य पीठ

युगलानन्य शरण जी महाराज की तपस्थली लक्ष्मण किला रसिकोपासना के आचार्य पीठ के रूप में स्थित है. स्वामी जी युगल प्रियाशरण जीवाराम जी महाराज के शिष्य थे. वर्ष 1818 में नालंदा के ईशरामपुर में जन्मे स्वामी युगलानन्य शरण जी का रामानंदीय वैष्णव संप्रदाय में विशिष्ट स्थान है.

महंत मैथिलीरमण शरण.

अद्वितीय विद्वान के साथ गायन विद्या के थे गहरे जानकार

किलाधीश महंत मैथिलीरमण शरण ने बताया कि संस्कृत, उर्दू, अरबी एवं गुरुमुखी के अद्वितीय विद्वान होने के साथ ही गायन विद्या में भी गहरी पैठ रखते थे. गोविंद सिंह की जन्मभूमि हरिमंदिर पटना में रहकर गुरुग्रंथ साहब की व्याख्या भी करते रहे. युगलानन्य शरण जी पटना से काशी, चित्रकूट होते हुए अयोध्या आए.

92 ग्रंथों की किए थे रचना

युगलानन्य शरण जी ने रघुवर गुण दर्पण, पारस भाग श्रीसीताराम नाम प्रताप प्रकाश, सद्गुरू प्रताप सागर बिंदु, इश्कक्रांति, धामकांति, मधुर मंजमाला, शत सिद्धांत सार समेत 92 ग्रंथों की रचना की है. आनंद की लहर में इस कद्र डूब जाते थे कि गाते-गाते नृत्य करने लगते थे. उन्होंने घृताची कुंड पर 14 महीने का व्रत लेकर सीतारामनाम जप किया था. निरमोहिया से लागी लगनियां उनका प्रिय पद था.

एक भक्त ने उन्हें दान की थी 52 बीघा की भूमि

युगलानन्य शरण की तपश्चर्या से अभिभूत होकर एक भक्त ने लगभग 52 बीघा विस्तार में भूमि उन्हें दान स्वरूप दी थी. जहां पर लक्ष्मण किला स्थित है. कालांतर में लक्ष्मण किला की नींव पड़ी थी, जिसके यह संस्थापक हैं. सरयू के तट पर स्थित यह आश्रम श्रीसीताराम जी की आराधना के साथ ही श्रीरामनवमी, सावन झूला व श्रीराम विवाहोत्सव के आयोजन के रूप में मशहूर है. लक्ष्मण किला को स्पर्श कर बहती हुई सरयू सूर्यास्त के समय बहुत सुंदर लगने लगती हैं.

महाराज श्री स्वप्न में भी अयोध्या से बाहर जाना पसंद नहीं करते थे. लेकिन एक बार वह स्वप्न में जगन्नाथ भगवान का दर्शन करने पुरी पहुंच गए. धाम छूटने का अनुभव होते ही वह स्वप्न में ही रोने लगे तो इस पर भगवान जगन्नाथ ने उनकी भावना को समझ कर कहा कि मैं ही राम हूं. इस घटना का जिक्र उन्होंने धामकांति पुस्तक में किया है. गौरतलब है कि अयोध्या के कई ऐसे संत हुए जो अयोध्या से बाहर नहीं गए.

अयोध्या : अयोध्या अद्भुत है. यहां संतों की पंरपरा भी विराट है. जो अलग-अलग स्थानों पर भले रहते है लेकिन उनके उद्देश्यों में समानता दिखाई पड़ती है. रसिक परंपरा के आचार्य पीठ लक्ष्मण किला के आचार्य युगलानन्य शरण ऐसे ही महापुरुष थे. पीठ पर उनकी 201वीं जयंती कोविड-19 की चुनौतियों के बीच सादगीपूर्ण मनाई गई. वर्तमान किलाधीश महंत मैथिलीरमण शरण ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

लक्ष्मण किला के संस्थापक आचार्य युगलानन्य शरण.
लक्ष्मण किला के संस्थापक आचार्य युगलानन्य शरण.

रसिकोपासना के आचार्य पीठ

युगलानन्य शरण जी महाराज की तपस्थली लक्ष्मण किला रसिकोपासना के आचार्य पीठ के रूप में स्थित है. स्वामी जी युगल प्रियाशरण जीवाराम जी महाराज के शिष्य थे. वर्ष 1818 में नालंदा के ईशरामपुर में जन्मे स्वामी युगलानन्य शरण जी का रामानंदीय वैष्णव संप्रदाय में विशिष्ट स्थान है.

महंत मैथिलीरमण शरण.

अद्वितीय विद्वान के साथ गायन विद्या के थे गहरे जानकार

किलाधीश महंत मैथिलीरमण शरण ने बताया कि संस्कृत, उर्दू, अरबी एवं गुरुमुखी के अद्वितीय विद्वान होने के साथ ही गायन विद्या में भी गहरी पैठ रखते थे. गोविंद सिंह की जन्मभूमि हरिमंदिर पटना में रहकर गुरुग्रंथ साहब की व्याख्या भी करते रहे. युगलानन्य शरण जी पटना से काशी, चित्रकूट होते हुए अयोध्या आए.

92 ग्रंथों की किए थे रचना

युगलानन्य शरण जी ने रघुवर गुण दर्पण, पारस भाग श्रीसीताराम नाम प्रताप प्रकाश, सद्गुरू प्रताप सागर बिंदु, इश्कक्रांति, धामकांति, मधुर मंजमाला, शत सिद्धांत सार समेत 92 ग्रंथों की रचना की है. आनंद की लहर में इस कद्र डूब जाते थे कि गाते-गाते नृत्य करने लगते थे. उन्होंने घृताची कुंड पर 14 महीने का व्रत लेकर सीतारामनाम जप किया था. निरमोहिया से लागी लगनियां उनका प्रिय पद था.

एक भक्त ने उन्हें दान की थी 52 बीघा की भूमि

युगलानन्य शरण की तपश्चर्या से अभिभूत होकर एक भक्त ने लगभग 52 बीघा विस्तार में भूमि उन्हें दान स्वरूप दी थी. जहां पर लक्ष्मण किला स्थित है. कालांतर में लक्ष्मण किला की नींव पड़ी थी, जिसके यह संस्थापक हैं. सरयू के तट पर स्थित यह आश्रम श्रीसीताराम जी की आराधना के साथ ही श्रीरामनवमी, सावन झूला व श्रीराम विवाहोत्सव के आयोजन के रूप में मशहूर है. लक्ष्मण किला को स्पर्श कर बहती हुई सरयू सूर्यास्त के समय बहुत सुंदर लगने लगती हैं.

महाराज श्री स्वप्न में भी अयोध्या से बाहर जाना पसंद नहीं करते थे. लेकिन एक बार वह स्वप्न में जगन्नाथ भगवान का दर्शन करने पुरी पहुंच गए. धाम छूटने का अनुभव होते ही वह स्वप्न में ही रोने लगे तो इस पर भगवान जगन्नाथ ने उनकी भावना को समझ कर कहा कि मैं ही राम हूं. इस घटना का जिक्र उन्होंने धामकांति पुस्तक में किया है. गौरतलब है कि अयोध्या के कई ऐसे संत हुए जो अयोध्या से बाहर नहीं गए.

Last Updated : Nov 22, 2020, 9:36 AM IST
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