अयोध्या: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पावन नगरी अयोध्या वैसे तो पूरी दुनिया में आध्यात्मिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध है. लेकिन इस पौराणिक शहर के ग्रामीण इलाके में होने वाली मशहूर गेंदे के फूल की खेती अयोध्या को एक अलग पहचान देती है. अयोध्या के ग्रामीण इलाकों में गेंदे के फूल की खेती मशहूर है. इतना ही नहीं अब खेती किसानी का यह काम इलाके के युवाओं के लिए रोजगार का एक बड़ा माध्यम बन चुका है. पढ़े-लिखे युवा भी इस कारोबार में अपना हाथ आजमा रहे हैं.
रामपुर हलवारा गांव में मशहूर है गेंदे की खेती
प्राचीन अयोध्या नगरी से करीब 15 किलोमीटर दूर ग्रामीण इलाके में स्थित रामपुर हलवारा गांव में बड़े पैमाने पर फूलों की खेती का काम ग्रामीण करते हैं. इस काम से जुड़े राम निहाल का कहना है कि बाप-दादा के जमाने से इस पैतृक व्यवसाय से वह जुड़े हैं. उनके और उनके परिवार की जीविका का जरिया यही है.
आय का बड़ा स्रोत बना
इस गांव के ज्यादातर परिवार फूलों की खेती का कारोबार ही करते हैं. अक्टूबर में फूलों के बैरन लगाए जाते हैं. इस खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि बहुत कम समय में फसल तैयार हो जाती है, जिसके बाद ठेकेदारों के माध्यम से फूल बेचे जाते हैं. जानवर भी इस फसल को नुकसान नहीं पहुंचाते और खराब मौसम से भी फसल को कुछ खास नुकसान नहीं होता.
प्रतिदिन 20 से 40 किलो फूलों का निर्यात
हलवारा गांव में एक परिवार रोजाना 20 से 40 किलो तक गेंदे के फूल बेचता है, जिनकी कीमत रोजाना मंडी के रेट से तय होती है. 50 रुपये से लेकर 70 रुपये किलो तक की कीमत में फूलों की बिक्री होती है. इस हिसाब से एक परिवार रोजाना एक हजार से लेकर के दो हजार के बीच मुनाफा कमाता है. खासतौर पर शादी-विवाह के सीजन में यह मुनाफा और बढ़ जाता है. इस खेती के जरिए ही इन परिवारों की पूरे साल भर की अर्थव्यवस्था तय हो जाती है.
प्रदेश के बड़े शहरों में होता है फूलों का निर्यात
किसान फूलचंद ने बताया कि यहां विभिन्न प्रजातियों के फूल उगाए जाते हैं, जिनमें बनारसी गेंदा, सेठिया देसी गेंदा के फूल शामिल हैं. इनमें से बनारसी गेंदे के बीज कोलकाता से मंगाए जाते हैं. इन फूलों का ज्यादातर प्रयोग शादी-विवाह या अन्य कार्यक्रमों में होता है. इसके अलावा पास में ही धार्मिक नगरी अयोध्या होने के कारण मंदिरों में पूजा-पाठ के प्रयोग में यह फूल आते हैं.
इन जिलों में होता है गेंदे का निर्यात
इस गांव से निकलने वाले फूलों का निर्यात लखनऊ, कानपुर, बनारस, गोरखपुर जैसे शहरों में भी होता है. खास तौर पर लखनऊ की मंडी के रेट से ही अयोध्या से निर्यात होने वाले फूलों की कीमत तय होती है. रामपुर हलवारा गांव के लोगों के लिए गेंदे के फूल की खेती उनकी जीविका का सबसे बड़ा साधन है. परिवार के लोग मिल जुलकर फूलों की खेती का कारोबार कई पीढ़ियों से करते चले आ रहे हैं.
इस कारोबार में युवा दिखा रहे रुचि
किसान विपिन ने बताया कि उन्हें यह कारोबार इतना रास आता है कि अब कोई दूसरा कारोबार करने में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं है. बाप-दादा से विरासत के रूप में उन्हें फूलों की खेती का कारोबार मिला है. विपिन का कहना है कि बगल में ही अयोध्या नगरी होने के कारण इस व्यवसाय को खासा मदद मिलती है. जिससे गेंदे के फूलों का कारोबार फलफूल रहा है. विपिन के बच्चे भी पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ इस कारोबार में उनका हाथ बंटाते हैं.
आस्था के साथ जीविका का माध्यम बना
फूलों की खेती करने वाले ग्रामीणों के लिए यह कारोबार उनकी आस्था से भी जुड़ा है. उनका मानना है कि यह फूल अयोध्या के मंदिरों में चढ़ाए जाते हैं, जिससे अपरोक्ष रूप से वह भगवान की सेवा भी कर रहे हैं. परिवार का पेट चलाने के साथ ही फूलों की खेती का कारोबार उनकी भावनाओं से जुड़ गया है. कहीं न कहीं यही वजह है कि गांव का युवावर्ग भी गेंदे के कारोबार में खासा दिलचस्पी दिखा रहा है.