अयोध्या: भारत सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत करके गंगा को स्वच्छ करने का बीड़ा उठाया है. वहीं गंगा को लेकर मान्यता इतनी प्रबल है कि इस प्रोजेक्ट में जनता अपनी भागीदारी तय नहीं कर पा रही है. उत्तर प्रदेश के 25 जिलों में 400 से अधिक ऐसे शवदाह स्थल स्थल हैं, जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं है. यह तथ्य डॉ. राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के एक सर्वे में सामने आया है.
यह सर्वे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से बिजनौर तक कुल 25 जिलों के 150 ब्लॉकों के एक हजार 350 गांव में हुआ, जहां गंगा नदी बहती है. इन क्षेत्रों में 450 ऐसे शवदाह स्थल चिन्हित किए गए, जिनका सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है. यह शोध यह जानने के लिए किया गया कि लोग सरकार द्वारा स्थापित विद्युत शवदाह गृह में शव का अंतिम संस्कार क्यों नहीं करना चाहते? शोध में पता चला कि अवैध शवदाह स्थल लोगों के विद्युत शवदाह गृह से दूर भागने का परिणाम हैं.
विद्युत शवदाह गृह हिंदू मान्यताओं के अनुकूल नहीं
विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करना आसान तो है, लेकिन यह हिंदू धर्म की मान्यताओं पर खरा नहीं उतरता. ऐसा इसलिए है क्योंकि विद्युत शवदाह गृह में कपाल क्रिया समुचित रूप से संभव नहीं हो पाती. शायद इसी के चलते बड़ी संख्या में लोग नदी के तट पर शव का अंतिम संस्कार करना तो चाहते हैं, लेकिन वे शवदाह गृह का रुख नहीं करते.
अवध विवि विकसित करेगा नई तकनीक का शवदाह गृह
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरणविदों की मानें तो विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार के दौरान हिंदू धर्म की मान्यताएं पूरी नहीं होती, इसलिए लोग शव का अंतिम संस्कार इसमें करने से बचते हैं. इसके लिए विश्वविद्यालय नई तकनीकी विकसित कर रहा है.
विश्वविद्यालय की पर्यावरण विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर विनोद चौधरी का कहना है कि इस तकनीक का कंप्यूटर टेस्ट हो चुका है, फिजिकल टेस्ट होना बाकी है. इसके लिए किसी संस्था की आवश्यकता है. विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से नगर निगम प्रशासन से बात की जा रही है. जैसे ही स्थान उपलब्ध हो जाता है, इसका फाइनल टेस्ट किया जाएगा.
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