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नमामि गंगे प्रोजेक्ट को धार देने के लिए अवध विश्वविद्यालय ने बढ़ाया कदम, प्रदूषण मुक्त होगी गंगा - अयोध्या समाचार

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग ने एक नया कदम उठाया है. उनका दावा है कि नई तकनीक का शवदाह गृह हिंदू धर्म की मान्यताओं को पूरा करेगा. अंतिम संस्कार में समय भी कम लगेगा और कपाल क्रिया की भी समुचित व्यवस्था होगी.

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अवध विश्वविद्यालय नमामि गंगे प्रोजेक्ट में बढ़ाएगा कदम.
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Published : Jan 11, 2020, 3:48 AM IST

अयोध्या: भारत सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत करके गंगा को स्वच्छ करने का बीड़ा उठाया है. वहीं गंगा को लेकर मान्यता इतनी प्रबल है कि इस प्रोजेक्ट में जनता अपनी भागीदारी तय नहीं कर पा रही है. उत्तर प्रदेश के 25 जिलों में 400 से अधिक ऐसे शवदाह स्थल स्थल हैं, जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं है. यह तथ्य डॉ. राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के एक सर्वे में सामने आया है.

अवध विश्वविद्यालय नमामि गंगे प्रोजेक्ट में बढ़ाएगा कदम.
हिंदू मान्यता के अनुसार मानव शरीर पांच तत्वों से बना होता है. व्यक्ति की जब मृत्यु होती है तो अंतिम संस्कार के दौरान पांच तत्वों की बेहद आवश्यकता होती है. इन पांच तत्वों के बिना शव का अंतिम संस्कार पूरा नहीं होता. ये पांच तत्व हैं आकाश, पवित्र जल, अग्नि, खुला आसमान और शुद्ध हवा. इनमें से चार तत्व खुला आसमान यानी आकाश, जल और हवा विशुद्ध रूप से नदी के किनारे उपलब्ध होती है. बाकी एक तत्व अग्नि हमेशा पवित्र मानी जाती है. इसे आवश्यकता के अनुसार कहीं भी प्रज्वलित किया जा सकता है. इसी मान्यता के चलते नदी तट पर अंतिम संस्कार करना बेहद उपयुक्त माना गया है.उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर 450 अवैध शवदाह स्थलडॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग की एक सर्वे की मानें तो उत्तर प्रदेश में बलिया से बिजनौर तक गंगा नदी के तट पर करीब 45 हजार 14 स्थल हैं, जिनका सरकार के पास डेटा नहीं है. विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विनोद चौधरी का कहना है कि विश्वविद्यालय की ओर से इस विषय में एक शोध किया जा रहा है. इसके लिए उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के तट पर स्थित शवदाह स्थलों का सर्वे किया गया है.

यह सर्वे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से बिजनौर तक कुल 25 जिलों के 150 ब्लॉकों के एक हजार 350 गांव में हुआ, जहां गंगा नदी बहती है. इन क्षेत्रों में 450 ऐसे शवदाह स्थल चिन्हित किए गए, जिनका सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है. यह शोध यह जानने के लिए किया गया कि लोग सरकार द्वारा स्थापित विद्युत शवदाह गृह में शव का अंतिम संस्कार क्यों नहीं करना चाहते? शोध में पता चला कि अवैध शवदाह स्थल लोगों के विद्युत शवदाह गृह से दूर भागने का परिणाम हैं.

विद्युत शवदाह गृह हिंदू मान्यताओं के अनुकूल नहीं
विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करना आसान तो है, लेकिन यह हिंदू धर्म की मान्यताओं पर खरा नहीं उतरता. ऐसा इसलिए है क्योंकि विद्युत शवदाह गृह में कपाल क्रिया समुचित रूप से संभव नहीं हो पाती. शायद इसी के चलते बड़ी संख्या में लोग नदी के तट पर शव का अंतिम संस्कार करना तो चाहते हैं, लेकिन वे शवदाह गृह का रुख नहीं करते.

अवध विवि विकसित करेगा नई तकनीक का शवदाह गृह
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरणविदों की मानें तो विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार के दौरान हिंदू धर्म की मान्यताएं पूरी नहीं होती, इसलिए लोग शव का अंतिम संस्कार इसमें करने से बचते हैं. इसके लिए विश्वविद्यालय नई तकनीकी विकसित कर रहा है.

विश्वविद्यालय की पर्यावरण विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर विनोद चौधरी का कहना है कि इस तकनीक का कंप्यूटर टेस्ट हो चुका है, फिजिकल टेस्ट होना बाकी है. इसके लिए किसी संस्था की आवश्यकता है. विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से नगर निगम प्रशासन से बात की जा रही है. जैसे ही स्थान उपलब्ध हो जाता है, इसका फाइनल टेस्ट किया जाएगा.

इसे भी पढ़ें- शिशिर त्रिपाठी हत्याकांड मामले पर राजनाथ सिंह ने डीजीपी से की बात

अयोध्या: भारत सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत करके गंगा को स्वच्छ करने का बीड़ा उठाया है. वहीं गंगा को लेकर मान्यता इतनी प्रबल है कि इस प्रोजेक्ट में जनता अपनी भागीदारी तय नहीं कर पा रही है. उत्तर प्रदेश के 25 जिलों में 400 से अधिक ऐसे शवदाह स्थल स्थल हैं, जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं है. यह तथ्य डॉ. राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के एक सर्वे में सामने आया है.

अवध विश्वविद्यालय नमामि गंगे प्रोजेक्ट में बढ़ाएगा कदम.
हिंदू मान्यता के अनुसार मानव शरीर पांच तत्वों से बना होता है. व्यक्ति की जब मृत्यु होती है तो अंतिम संस्कार के दौरान पांच तत्वों की बेहद आवश्यकता होती है. इन पांच तत्वों के बिना शव का अंतिम संस्कार पूरा नहीं होता. ये पांच तत्व हैं आकाश, पवित्र जल, अग्नि, खुला आसमान और शुद्ध हवा. इनमें से चार तत्व खुला आसमान यानी आकाश, जल और हवा विशुद्ध रूप से नदी के किनारे उपलब्ध होती है. बाकी एक तत्व अग्नि हमेशा पवित्र मानी जाती है. इसे आवश्यकता के अनुसार कहीं भी प्रज्वलित किया जा सकता है. इसी मान्यता के चलते नदी तट पर अंतिम संस्कार करना बेहद उपयुक्त माना गया है.उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर 450 अवैध शवदाह स्थलडॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग की एक सर्वे की मानें तो उत्तर प्रदेश में बलिया से बिजनौर तक गंगा नदी के तट पर करीब 45 हजार 14 स्थल हैं, जिनका सरकार के पास डेटा नहीं है. विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विनोद चौधरी का कहना है कि विश्वविद्यालय की ओर से इस विषय में एक शोध किया जा रहा है. इसके लिए उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के तट पर स्थित शवदाह स्थलों का सर्वे किया गया है.

यह सर्वे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से बिजनौर तक कुल 25 जिलों के 150 ब्लॉकों के एक हजार 350 गांव में हुआ, जहां गंगा नदी बहती है. इन क्षेत्रों में 450 ऐसे शवदाह स्थल चिन्हित किए गए, जिनका सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है. यह शोध यह जानने के लिए किया गया कि लोग सरकार द्वारा स्थापित विद्युत शवदाह गृह में शव का अंतिम संस्कार क्यों नहीं करना चाहते? शोध में पता चला कि अवैध शवदाह स्थल लोगों के विद्युत शवदाह गृह से दूर भागने का परिणाम हैं.

विद्युत शवदाह गृह हिंदू मान्यताओं के अनुकूल नहीं
विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करना आसान तो है, लेकिन यह हिंदू धर्म की मान्यताओं पर खरा नहीं उतरता. ऐसा इसलिए है क्योंकि विद्युत शवदाह गृह में कपाल क्रिया समुचित रूप से संभव नहीं हो पाती. शायद इसी के चलते बड़ी संख्या में लोग नदी के तट पर शव का अंतिम संस्कार करना तो चाहते हैं, लेकिन वे शवदाह गृह का रुख नहीं करते.

अवध विवि विकसित करेगा नई तकनीक का शवदाह गृह
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरणविदों की मानें तो विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार के दौरान हिंदू धर्म की मान्यताएं पूरी नहीं होती, इसलिए लोग शव का अंतिम संस्कार इसमें करने से बचते हैं. इसके लिए विश्वविद्यालय नई तकनीकी विकसित कर रहा है.

विश्वविद्यालय की पर्यावरण विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर विनोद चौधरी का कहना है कि इस तकनीक का कंप्यूटर टेस्ट हो चुका है, फिजिकल टेस्ट होना बाकी है. इसके लिए किसी संस्था की आवश्यकता है. विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से नगर निगम प्रशासन से बात की जा रही है. जैसे ही स्थान उपलब्ध हो जाता है, इसका फाइनल टेस्ट किया जाएगा.

इसे भी पढ़ें- शिशिर त्रिपाठी हत्याकांड मामले पर राजनाथ सिंह ने डीजीपी से की बात

Intro:अयोध्या: भारत सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत करके गंगा को स्वच्छ करने का बीड़ा उठाया है. वहीं गंगा को लेकर मान्यता इतनी प्रबल है कि इस प्रोजेक्ट में जनता अपनी भागीदारी तय नहीं कर पा रही है. सच यही है. उत्तर प्रदेश के 25 जिलों में 400 से अधिक ऐसे शवदाह स्थल स्थल हैं, जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं है. यह तथ्य डॉ राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के एक सर्वे में सामने आया है.


Body:हिंदू मान्यता के अनुसार मानव शरीर पांच तत्वों से बना होता है. जब व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो अंतिम संस्कार के दौरान पांच तत्वों की बेहद आवश्यकता होती है इन पांच तत्वों के बिना शव का अंतिम संस्कार पूरा नहीं होता. ये पांच तत्व हैं आकाश, पवित्र जल, अग्नि, खुला आसमान और शुद्ध हवा. इनमें से चार तत्व खुला आसमान यानी आकाश जल और हवा विशुद्ध रूप से नदी के किनारे उपलब्ध होती है. बाकी एक तत्व अग्नि हमेशा पवित्र मानी जाती है. इसी आवश्यकता के अनुसार कहीं भी प्रज्वलित किया जा सकता है. इसी मान्यता के चलते नदी तट पर अंतिम संस्कार करना बेहद उपयुक्त माना गया है.

उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर 450 अवैध शवदाह स्थल
डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग की एक सर्वे की मानें तो उत्तर प्रदेश में बलिया से बिजनौर तक गंगा नदी के तट पर करीब 45014 स्थल हैं, जिनका सरकार के पास डेटा नहीं है. विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विनोद चौधरी का कहना है कि विश्वविद्यालय की ओर से इस विषय में एक शोध किया जा रहा है. जिसके लिए उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के तट पर स्थित सौदा स्थलों का सर्वे किया गया है. यह सर्वे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से बिजनौर तक कुल 25 जिलों के 150 ब्लाकों के 1350 गांव में हुआ. जहां गंगा नदी बहती है. इन क्षेत्रों में 450 ऐसे शवदाह स्थल चिन्हित किए गए, जिनका सरकार के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है. यह शोध यह जानने के लिए किया गया कि लोग सरकार द्वारा स्थापित विद्युत शवदाह गृह में शव का अंतिम संस्कार क्यों नहीं करना चाहते? शोध में पता चला कि अवैध शवदाह स्थल लोगों के विद्युत शवदाह गृह से दूर भागने का परिणाम हैं.

विद्युत शवदाह गृह हिंदू मान्यताओं के अनुकूल नहीं
विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करना आसान तो है लेकिन यह हिंदू धर्म की मान्यताओं पर खरा नहीं उतरता ऐसा इसलिए है क्योंकि इलेक्ट्रिक क्रिमेटोरिया में कपाल क्रिया समुचित रूप से संभव नहीं हो पाती. शायद इसी के चलते बड़ी संख्या में लोग नदी के तट पर शव का अंतिम संस्कार करना तो चाहते हैं, लेकिन वे शवदाह गृह का रुख नहीं करते.

अवध विवि विकसित करेगा नई तकनीक का शवदाह गृह
डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण विदों की मानें तो विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार के दौरान हिंदू धर्म की मान्यताएं पूरी नहीं होती. इसलिए लोग शव का अंतिम संस्कार इलेक्ट्रिक क्रिमेटोरिया में करने से बचते हैं. इसके लिए विश्वविद्यालय नई तकनीकी विकसित कर रहा है. विश्वविद्यालय की पर्यावरण विज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर विनोद चौधरी का कहना है कि इस तकनीक का कंप्यूटर टेस्ट हो चुका है फिजिकल टेस्ट होना बाकी है. इसके लिए किसी संस्था की आवश्यकता है. विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से नगर निगम प्रशासन से बाद की जा रही है. जैसे ही स्थान उपलब्ध हो जाता है इसका फाइनल टेस्ट किया जाएगा.




Conclusion:नई तकनीक का शवदाह गृह हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुरूप
अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग की मानें तो नई तकनीक का शवदाह गृह हिंदू धर्म की मान्यताओं को पूरा करेगा. अंतिम संस्कार में समय भी कम लगेगा. कपाल क्रिया की भी समुचित व्यवस्था होगी.

दावा है कि अगर यह तकनीकी सफल हो जाती है तो गंगा ही नहीं सरयू के जल को भी दूषित होने से बचाया जा सकेगा. माना जा रहा है कि विश्वविद्यालय का अगर यह प्रयोग सफल हो जाता है तो केंद्र सरकार के गंगा को स्वच्छ बनाने के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट नमामि गंगे को भी धार मिलेगी.

बाइट- विनोद चौधरी, असिस्टेंट प्रोफेसर, अवध विश्वविद्यालय
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