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औरैया: चंबल में बागवानी का सफल प्रयोग, किसानों को कर रही प्रेरित - किसान अजय तिवारी

उत्तर प्रदेश में औरैया के बीहड़ इलाकों में किसान अजय तिवारी बागवानी का सफल प्रयोग कर किसानों में उम्मीद जगा रहे हैं. ईटीवी भारत ने किसान अजय तिवारी से की खास बातचीत.

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अजय तिवारी
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Published : Dec 14, 2019, 11:20 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:17 PM IST

औरैया: गांव बबाइन के किसान अजय तिवारी बीहड़ में फलों की अच्छी पैदावार कर लोगों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं. चंबल यमुना की घाटी में गांव सेंगनपुर में जन्मे अजय तिवारी की शिक्षा ग्रामीण परिवेश में हुई. शुरू से ही नए-नए प्रयोगों का जुनून ने मन में बागवानी का शौक जगा दिया.

औरैया के किसान अजय तिवारी.

विषम परिस्थितियां भी नहीं डिगा पाई हौसला
विषम हालातों और प्रतिकूल मौसम की परवाह किए बगैर अजय ने अपनी निजी भूमि पर बागवानी की शुरुआत की. भूमि बिलायती बबूल और झाड़ियो से भरी हुई थी. झाड़ियों को साफ कर अजय ने वहां केला, अनार, नीबू, सन्तरा और मौसमी फसलों को लगाया. इस समय उनके लगाए गए पेड़ों पर फल आ गए हैं.

इसे भी पढ़ें - कानपुर: गंगा का निरीक्षण कर अटल घाट की ओर लौटे पीएम मोदी

किसान अजय तिवारी बताते हैं कि यमुना, सिंध और पहुज नदियों के संगम किनारे फैले दुर्गम चम्बल की बीहड़ जमीन कभी भी खेती के लिए मुफीद नहीं रही. कारण स्पष्ट है कि भौगोलिक विषमताएं और विलायती बबूल सहित कटीली झड़ियाँ जमीन की उर्वरा शक्ति के अत्यधिक दोहन ने हालातों को ज्यादा जटिल बना देते हैं. लेकिन मेहनत मन से की जाए तो कुछ भी असम्भव नहीं है.

औरैया: गांव बबाइन के किसान अजय तिवारी बीहड़ में फलों की अच्छी पैदावार कर लोगों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं. चंबल यमुना की घाटी में गांव सेंगनपुर में जन्मे अजय तिवारी की शिक्षा ग्रामीण परिवेश में हुई. शुरू से ही नए-नए प्रयोगों का जुनून ने मन में बागवानी का शौक जगा दिया.

औरैया के किसान अजय तिवारी.

विषम परिस्थितियां भी नहीं डिगा पाई हौसला
विषम हालातों और प्रतिकूल मौसम की परवाह किए बगैर अजय ने अपनी निजी भूमि पर बागवानी की शुरुआत की. भूमि बिलायती बबूल और झाड़ियो से भरी हुई थी. झाड़ियों को साफ कर अजय ने वहां केला, अनार, नीबू, सन्तरा और मौसमी फसलों को लगाया. इस समय उनके लगाए गए पेड़ों पर फल आ गए हैं.

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किसान अजय तिवारी बताते हैं कि यमुना, सिंध और पहुज नदियों के संगम किनारे फैले दुर्गम चम्बल की बीहड़ जमीन कभी भी खेती के लिए मुफीद नहीं रही. कारण स्पष्ट है कि भौगोलिक विषमताएं और विलायती बबूल सहित कटीली झड़ियाँ जमीन की उर्वरा शक्ति के अत्यधिक दोहन ने हालातों को ज्यादा जटिल बना देते हैं. लेकिन मेहनत मन से की जाए तो कुछ भी असम्भव नहीं है.

Intro:स्लग--चंबल के बीहडों में बदलाव का नया दौर

रिपोर्ट--विशाल त्रिपाठी।

स्थान--औरैया।

मोब--9897641154


एंकर--चंबल का बीहड़ जो डकैतों की शरण स्थली के रूप में जाना जाता था जहां डकैतों की गोलियों की गूंज से चंबल घाटी का सीना कांप जाता था , आज चंबल के उन्हीं बीहडों मे एक नये दौर की शुरुआत हो गयी है ।
चंबल का नाम सुनते ही लोगों के दिल मे एक खौफ जाग जाता था वो खौफ था डकैतों का जिनकी गोलियों की गडगडाहट से चंबल के पानी मे जलजला आ जाता था।आज चंबल के बीहड मे बदलाव आ चुका है डकैतों का सफाया हो चुका है।अब यहां के किसान फलों के पेड लगाकर एक नये दौर की शुरुआत कर चुके हैं , अनार ,केला आम जैसे फलों की पैदावार कर नये रोजगार के अवसर ढूंढ चुके है।

Body:वीओ--बबाइन गांव के इस किसान ने बीहड मे फलों की अच्छी पैदावार कर एक नये दौर को जन्म दिया है।यहाँ चम्बल घाटी में घोल रहे फलों की मिठास
पंचनद के बीहड़ में जन्मे उन्नतशील किसान अजय ने दिखयी उम्मीदों की राह।बबूल की कंटीली छाती को चीरकर उगाये मौसमी फलों को जनपद वासियों ने सराहा।हौसला हो तो आसमां में भी सुराख हो जाए।

Conclusion:वीओ--गर एक पत्थर तो उछालो यारो ।किसी शायर की यह पक्तियां बीहड़ी किसान अजय तिवारी पर सटीक बैठती है। जिन्होंने अपने बागवानी के शौक के लिए बीहड़ के दुर्गम कंटीली पथरीली उबड़ खाबड़ जमीन को चीरकर मौसमी फलों को उगा डाला। असम्भव को सम्भव कर दिखाने वाले अजय ने किसानों में एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया।चम्बल यमुना की घाटी में बसे गांव सेंगनपुर में जन्मे अजय तिवारी की शिक्षा ग्रामीण परिवेश में हुई। शुरू से ही नए नए प्रयोगों का जुनून ने बागवानी का शौक मन जगा। मगर विषम हालातो और प्रतिकूल मौसम की परवाह किये बिना अजय ने अपनी निजी भूमि जो कि बिलायती बबूल और झाड़ियो को साफ कर केला अनार नीबू सन्तरा और मौसमी के रोपित ही नही किया बल्कि रात दिन की कड़ी मेहनत के बल पर कम समय मे ही फलों को उगा कर साबित कर दिया कि मेहनत और लगन से सब सम्भव है। बकौल तिवारी यह उनकी उम्मीदों को सफलता का मूर्त रूप है। बताते है कि चम्बल यमुना सिंध पहुज और क्वारी नदियों के संगम किनारे फैले दुर्गम बीहड़ कभी भी खेती के लिए मुफीद नही रहे। कारण स्पष्ट है कि भौगोलिक विषमताएं और विलायती सहित कटीली झड़ियाँ जमीन की उर्वरा शक्ति के अत्यधिक दोहन ने हालातों को और जटिल बना दिया है। तो वंही पूर्व में दस्युओं के आतंक ने यंहा किसानों का खेती से मोहभंग सा कर दिया। परिणामस्वरूप जरूरतों को पूरा करने लोग शहरों की ओर पलायन कर गए। ऐसे में बंजर होती जा रही जमीनों पर बागवानी का सफल प्रयोग किसानों में उम्मीद जगा रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग से 9 किलोमीटर दूरी पर ववाइन के समीप स्थित बीहड़ में अजय अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं।यह कहानी उन किसानों के लिए एक सबक है जो प्रतिकूल मौसम का बहाना बनाकर खेती को दरकिनार कर देते हैं।

बाइट किसान।
Last Updated : Sep 10, 2020, 12:17 PM IST
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