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सात लाख का पैकेज छोड़ गरीबों को दे रहे शिक्षा

अमरोहा के अशोक अपनी 7 लाख रुपये सालाना की नौकरी छोड़ कर गरीब बच्चों का भविष्य संवारने में लगे हैं. वो देश के बच्चों को पढ़ा कर देश को और भी मजबूत करना चाहते हैं. पेश है अशोक से खास बातचीत...

नौकरी छोड़ कर रहे सेवा
नौकरी छोड़ कर रहे सेवा
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Published : Jan 25, 2021, 4:39 PM IST

Updated : Jan 25, 2021, 8:03 PM IST

अमरोहा: समाज अभी कई दूसरों के लिए अच्छा सोचने के साथ ही उनका भला भी करते हैं. ऐसे ही हैं अशोक कोहली. वह अपनी 7 लाख रुपये सालाना की नौकरी छोड़ कर गरीब बच्चों का भविष्य संवारने में लगे हैं. अशोक कोहली ने गरीबों की जिंदगी में खुशियां लाने की पहल की है. अशोक गरीब परिवारों के बच्चों को जूते कपड़े देने के साथ ही उनकी पढ़ाई का भी खर्च उठा रहे हैं. वह देश के बच्चों को पढ़ा कर देश के भविष्य को मजबूती प्रदान करना चाहते हैं.

अशोक कोहली से खास बात-चीत
अपने खर्च पर चला रहे स्कूल

अशोक कोहली गजरौला चौपला पुलिस चौकी क्षेत्र के मोहल्ला सरदार नगर के रहने वाले हैं. उन्होंने रुड़की से एमबीए किया हुआ है. वह हरिद्वार की एक कंपनी का 7 लाख का सालाना के पैकेज को छोड़कर गरीब परिवारों को खुशियां बांट रहे हैं. सितंबर में उन्होंने सड़क किनारे रहने वाले गरीब बागड़ी समुदाय के रहने वाले परिवारों के बच्चों को जूते, चप्पल, कपड़े आदि मुहैया करवाएं थे. इसके बाद उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए मोहनलाल जयपुर के पुराने भवन में निःशुल्क पाठशाला शुरू की. इसमें उन्होंने अपने खर्च पर पांच 5-5 हजार में 3 शिक्षक रखे. ये शिक्षक रोजाना बच्चों को पढ़ाते हैं. इसमें तकरीबन 180 बच्चे रोजाना पढ़ने आते हैं.

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नौकरी छोड़ कर रहे सेवा
किसी से नहीं लेते पैसे

अशोक कोहली ने बताया कि उन्होंने गजरौला के सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई की है. उन्हें इंग्लिश का भी अच्छा ज्ञान है. वो बच्चों को भी इंग्लिश पढ़ाते हैं. खास बात यह है कि इस मुहिम से जुड़ने वाले लोगों से वह आर्थिक मदद नहीं लेते, बल्कि उनसे सिर्फ पाठ्य सामग्री ही लेते हैं. बच्चों को घर से लाने और छोड़ने की जिम्मेदारी अशोक कोल्ही की ही है.

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बच्चे ले रहे शिक्षा
ऐसे हुई शुरुआत

अशोक कोहली ने बताया कि बीते सितंबर में वह अपनी 5 साल की बेटी आर्या कोहली के साथ शहर के गजरौला इंदिरा चौक पर खरीदारी करने के लिए आए थे. उस दौरान उनकी बेटी ने सड़क पर गुब्बारे बेचते हुए दो मासूम बच्चों को देखा और पूछा कि पापा ये बच्चे नहीं पढ़ते क्या? उन दोनों मासूमों से बात की तो उन्होंने बताया कि पढ़ाई के लिए पैसे नहीं हैं. गुब्बारे बेचकर पेट भरते हैं. इसके बाद से ही गरीब बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने के लिए योजना बनाई और पाठशाला शुरू कर दी. किशोर सैनी ने बताया कि हमारा उद्देश्य अधिक से अधिक बच्चों को शिक्षित करना है, फिर चाहे वह कितने भी गरीब हों.

अमरोहा: समाज अभी कई दूसरों के लिए अच्छा सोचने के साथ ही उनका भला भी करते हैं. ऐसे ही हैं अशोक कोहली. वह अपनी 7 लाख रुपये सालाना की नौकरी छोड़ कर गरीब बच्चों का भविष्य संवारने में लगे हैं. अशोक कोहली ने गरीबों की जिंदगी में खुशियां लाने की पहल की है. अशोक गरीब परिवारों के बच्चों को जूते कपड़े देने के साथ ही उनकी पढ़ाई का भी खर्च उठा रहे हैं. वह देश के बच्चों को पढ़ा कर देश के भविष्य को मजबूती प्रदान करना चाहते हैं.

अशोक कोहली से खास बात-चीत
अपने खर्च पर चला रहे स्कूल

अशोक कोहली गजरौला चौपला पुलिस चौकी क्षेत्र के मोहल्ला सरदार नगर के रहने वाले हैं. उन्होंने रुड़की से एमबीए किया हुआ है. वह हरिद्वार की एक कंपनी का 7 लाख का सालाना के पैकेज को छोड़कर गरीब परिवारों को खुशियां बांट रहे हैं. सितंबर में उन्होंने सड़क किनारे रहने वाले गरीब बागड़ी समुदाय के रहने वाले परिवारों के बच्चों को जूते, चप्पल, कपड़े आदि मुहैया करवाएं थे. इसके बाद उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए मोहनलाल जयपुर के पुराने भवन में निःशुल्क पाठशाला शुरू की. इसमें उन्होंने अपने खर्च पर पांच 5-5 हजार में 3 शिक्षक रखे. ये शिक्षक रोजाना बच्चों को पढ़ाते हैं. इसमें तकरीबन 180 बच्चे रोजाना पढ़ने आते हैं.

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किसी से नहीं लेते पैसे

अशोक कोहली ने बताया कि उन्होंने गजरौला के सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई की है. उन्हें इंग्लिश का भी अच्छा ज्ञान है. वो बच्चों को भी इंग्लिश पढ़ाते हैं. खास बात यह है कि इस मुहिम से जुड़ने वाले लोगों से वह आर्थिक मदद नहीं लेते, बल्कि उनसे सिर्फ पाठ्य सामग्री ही लेते हैं. बच्चों को घर से लाने और छोड़ने की जिम्मेदारी अशोक कोल्ही की ही है.

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ऐसे हुई शुरुआत

अशोक कोहली ने बताया कि बीते सितंबर में वह अपनी 5 साल की बेटी आर्या कोहली के साथ शहर के गजरौला इंदिरा चौक पर खरीदारी करने के लिए आए थे. उस दौरान उनकी बेटी ने सड़क पर गुब्बारे बेचते हुए दो मासूम बच्चों को देखा और पूछा कि पापा ये बच्चे नहीं पढ़ते क्या? उन दोनों मासूमों से बात की तो उन्होंने बताया कि पढ़ाई के लिए पैसे नहीं हैं. गुब्बारे बेचकर पेट भरते हैं. इसके बाद से ही गरीब बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने के लिए योजना बनाई और पाठशाला शुरू कर दी. किशोर सैनी ने बताया कि हमारा उद्देश्य अधिक से अधिक बच्चों को शिक्षित करना है, फिर चाहे वह कितने भी गरीब हों.

Last Updated : Jan 25, 2021, 8:03 PM IST
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