अमेठी: अमृतकुंड पर स्थापित मां कालिकन भवानी का रोचक इतिहास है. नवरात्रि के दिनों में यहां श्रद्धालुओं का हुजूम देखते ही बनता है. मान्यता है कि महर्षि च्यवन मुनि की तपोस्थली के सगरा तालिका के सरोवर में स्नान करके समस्त चर्म रोगों का विनाश होना यहा के शक्तिपीठ अध्यात्म से जुड़ा है.
संग्रामपुर विकासखंड मुख्यालय पर स्थित मां कालिकन धाम का वर्णन श्रीमद्भागवत के तीसरे अध्याय और सुखसागर में किया गया है. अयोध्या के राजा सरियाद के एक ही पुत्री थी जिसका नाम सुकन्या था. सुकन्या वन विहार के दौरान मां कालिकन मंदिर में आयी थी. इस दौरान महर्षि च्यवन मुनि यहां पर तपस्या कर रहे थे. तप करते-करते महर्षि के शरीर पर दीमक लग गया और उनकी आंखें दीमक के बीच मणि की तरह चमक रही थी.
कौतूहल वश सुकन्या मणि समझकर दीमक के बीच से कांटे द्वारा मणि निकालने का प्रयास करने लगी तभी महर्षि की आंखें फूट गई और उन्हें कष्ट होने लगा. इसके बाद राजा सरियाद के पशुओं में ज्वर फैल गया. एक साथ पशुओं में एक ही बीमार होने पर राजा को दैवीय प्रकोप की आशंका हो गई.राजा द्वारा जानकारी करने पर सुकन्या ने बताया कि उन्होंने अपराध किया है. राजा ने तपस्वी के पास पहुंचकर महर्षि के शरीर को साफ कर बाहर निकाला. शाप से बचने के लिए राजा ने सुकन्या का विवाह महर्षि के साथ कर वापस चले गए.
अश्विनी कुमार ने महर्षि की ज्योति वापस दिलाने की बात कही
कालांतर में अश्विनी कुमार महर्षि की तपोस्थली पर आए और उन्होंने महर्षि को युवा होने और उनकी ज्योति वापस करने की बात कही. अश्विनी कुमार ने कहा कि बदले में महर्षि को यज्ञ में हिस्सा और सोमपान करना होगा. वार्ता तय होने पर अश्विनी कुमार ने तपोस्थली के पास बारह तालिका बनाई. जो वर्तमान में सगरा का रूप ले लिया है.
उस सरोवर में अश्विनी कुमार ने औषधि डाल और महर्षि के साथ सरोवर में डुबकी लगाई. डुबकी लगाने के बाद बाहर निकलने पर दोनों एक रूप के निकले जिससे सुकन्या विचलित हो गई. इसके बाद सुकन्या ने अश्विनी कुमार की आराधना की तो वे देव लोक वापस चले गए. महर्षि की आंखों की ज्योति और युवा हो जाने पर सुकन्या व महर्षि एक साथ प्रेम से रहने लगे.
अश्विनी कुमार को मिला यज्ञ में हिस्सा
राजा सरियाद कुछ दिन बाद बेटी का हालचाल जानने तपोस्थली पर आए तो युवा ऋषि देखकर उन्हे बेटी पर क्रोध आ गया. सुकन्या द्वारा घटना की जानकारी पर वे शांत हो गए. महर्षि द्वारा राजा सरियाद को सोमयज्ञ कराने का निर्देश दिया. यज्ञ में सारे देवता आए उनमें अश्विनी कुमार को भी बुलाया गया.
इसके बाद सबको सोमपान कराया जाने लगा. तभी इन्द्र क्रोधित होकर आसन पर खड़े हो गए और राजा सरियाद को मारने के लिए इंद्र ने वज्र उठा लिया. महर्षि ने वज्र को स्तंभित कर कहा कि ये देवताओं की सेवा करते हैं. इसलिए इन्हें यज्ञ में हिस्से के साथ-साथ सोमपान करने का पूरा अधिकार है. इसके बाद यज्ञ समाप्त हो गया.
मां भगवती अष्टभुजी ने की अमृत की रक्षा
यज्ञ के बाद देवताओं ने निर्णय लिया कि अमृत की रक्षा कौन करेगा. देवताओं और महर्षि ने शक्ति का आह्वान किया तो मां भगवती अष्टभुजी के रूप में प्रकट हुईं. देवताओं और महर्षि के अनुनय पर भगवती अमृत की रक्षा के लिए तैयार हुई और अमृतकुण्ड पर शिला के रूप में स्थान ले लिया. इसके बाद देवता देव लोक चले गए. प्रलयकाल के दौरान अमेठी के राजा भगवान बख्श को स्वप्न आया तो उन्होंने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया.
घंटिया है आस्था का प्रतीक
दीवारों पर टगी घंटिया आस्था का प्रतीक है. जिन श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी हो जाती है वो इस मंदिर में घंटी बांध देता है.