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सावन स्पेशल: सावन में कजरी के गीत हुए गायब, सूनी पड़ी हैं पेड़ों की डाल

जनपद में सावन के महीने में लोग शिव की पूजा करते हैं. इसके साथ ही पेड़ों में झूले डाले जाते हैं और कजरी गीत गाए जाते हैं. वहीं आधुनिकता की इस दौड़ में अब झूले और कजरी गीत गायब हो गए हैं.

सावन में कजरी के गीत हुए गायब
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Published : Aug 4, 2019, 2:13 PM IST

Updated : Aug 4, 2019, 3:14 PM IST

अमेठी: एक समय वो था जब लोगों को सावन का इंतजार होता था. सावन का महीना आते ही गांव की गलियों से लेकर शहर तक पेड़ों पर झूले पड़ जाते थे. महिलाएं झूला झूलती थीं और कजरी के गीत गाया करती थीं. 'झूला पड़ा कदम की डारि, झूले ब्रिज के नर-नारी अरे रामा पेंग बढ़ावे राधा प्यारी, पिया को लागे प्यारी रे हारी' कजरी के गीत गाकर महिलाएं मनोरंजन किया करती थीं.

सावन में कजरी के गीत हुए गायब

समय धीरे-धीरे बदलता गया और सावन के महीने में गाये जाने वाला कजरी कहीं गुम सा हो गया. सावन का महीना चल रहा है. पांच अगस्त को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाएगा, लेकिन अब तक न पेड़ों पर झूले पड़े और न ही कहीं कजरी के गीत सुनाई दे रहे हैं.

सावन के महीने में गाये जाने वाला गीत कजरी और पेड़ों पर से गायब होते झूले को लेकर जनपद के साहित्यकार जगदीश पीयूष का कहना है कि कजरी और सावन के गीतों को याद करके अब हम लोग रोमांचित हो जाते हैं. 'मोहे सावन में झूला झूला दा, मुंदरी गढ़ा दिया ना अबकी सावन में मुंदरी गढ़ऊबे, उंगरी सजायी देबे ना'.

क्या कारण है कि अब कजरी के गीत नहीं सुनाई देते

यह त्योहार मुख्य रूप से लड़कियों का था. सबसे पहले भगवान शंकर की पूजा पार्वती ने हरियाली तीज पर की थी तब से ये परम्परा चली आ रही है. शादी के बाद लड़कियां सावन में जब ससुराल से पहली बार मायके आती थीं, तब झूला झूलती थीं. सहेलियों के साथ कजरी के गीत गाकर मनोरंजन किया करती थीं.

किसान खेतों में धन बोने के बाद अपने खाली समय को बहुत ही संजीदे तरीके से अपने उल्लास में शामिल करता था. मगर आज के समय में पुराने जमाने में जो कजरी के गीत सुनाई पड़ते थे वह अब नहीं सुनने को मिलते. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोगों के पास अब समय नहीं है. इंसान सिनेमा, टीवी, मोबाइल में व्यस्त हो चुका है. पहले के समय में मिलने वाले गांव के कुएं से पानी खींचने के लिए एक नहन होती थी, जिससे उस नहन से पेड़ों पर झूले डाले जाते थे आज वो नहन गायब है.

कजरी क्या है?
कजरी पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध लोकगीत है. इसे सावन के महीने में गाया जाता है. अर्थशास्त्री गायन की विधा के रूप में भी विकसित हुआ और इसके गायन में बनारस घराने का खास दखल है. कजरी गीतों में वर्षा ऋतु का वर्णन, विरह-वर्णन तथा राधा कृष्ण की लीलाओं का वर्णन अधिकतर मिलता है. इसमें शृंगार रस की प्रधानता होती है. उत्तर प्रदेश में कजरी जाने का प्रचार खूब पाया जाता है.

अमेठी: एक समय वो था जब लोगों को सावन का इंतजार होता था. सावन का महीना आते ही गांव की गलियों से लेकर शहर तक पेड़ों पर झूले पड़ जाते थे. महिलाएं झूला झूलती थीं और कजरी के गीत गाया करती थीं. 'झूला पड़ा कदम की डारि, झूले ब्रिज के नर-नारी अरे रामा पेंग बढ़ावे राधा प्यारी, पिया को लागे प्यारी रे हारी' कजरी के गीत गाकर महिलाएं मनोरंजन किया करती थीं.

सावन में कजरी के गीत हुए गायब

समय धीरे-धीरे बदलता गया और सावन के महीने में गाये जाने वाला कजरी कहीं गुम सा हो गया. सावन का महीना चल रहा है. पांच अगस्त को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाएगा, लेकिन अब तक न पेड़ों पर झूले पड़े और न ही कहीं कजरी के गीत सुनाई दे रहे हैं.

सावन के महीने में गाये जाने वाला गीत कजरी और पेड़ों पर से गायब होते झूले को लेकर जनपद के साहित्यकार जगदीश पीयूष का कहना है कि कजरी और सावन के गीतों को याद करके अब हम लोग रोमांचित हो जाते हैं. 'मोहे सावन में झूला झूला दा, मुंदरी गढ़ा दिया ना अबकी सावन में मुंदरी गढ़ऊबे, उंगरी सजायी देबे ना'.

क्या कारण है कि अब कजरी के गीत नहीं सुनाई देते

यह त्योहार मुख्य रूप से लड़कियों का था. सबसे पहले भगवान शंकर की पूजा पार्वती ने हरियाली तीज पर की थी तब से ये परम्परा चली आ रही है. शादी के बाद लड़कियां सावन में जब ससुराल से पहली बार मायके आती थीं, तब झूला झूलती थीं. सहेलियों के साथ कजरी के गीत गाकर मनोरंजन किया करती थीं.

किसान खेतों में धन बोने के बाद अपने खाली समय को बहुत ही संजीदे तरीके से अपने उल्लास में शामिल करता था. मगर आज के समय में पुराने जमाने में जो कजरी के गीत सुनाई पड़ते थे वह अब नहीं सुनने को मिलते. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोगों के पास अब समय नहीं है. इंसान सिनेमा, टीवी, मोबाइल में व्यस्त हो चुका है. पहले के समय में मिलने वाले गांव के कुएं से पानी खींचने के लिए एक नहन होती थी, जिससे उस नहन से पेड़ों पर झूले डाले जाते थे आज वो नहन गायब है.

कजरी क्या है?
कजरी पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध लोकगीत है. इसे सावन के महीने में गाया जाता है. अर्थशास्त्री गायन की विधा के रूप में भी विकसित हुआ और इसके गायन में बनारस घराने का खास दखल है. कजरी गीतों में वर्षा ऋतु का वर्णन, विरह-वर्णन तथा राधा कृष्ण की लीलाओं का वर्णन अधिकतर मिलता है. इसमें शृंगार रस की प्रधानता होती है. उत्तर प्रदेश में कजरी जाने का प्रचार खूब पाया जाता है.

Intro:अमेठी। एक समय वो था जब लोगो को सावन का इंतजार होता था। सावन का महीना आते ही गाव की गलियों से लेकर शहर तक पेड़ो पर झूले पड जाते थे। महिलाएं झूला झूलती थी और कजरी के गीत गाया करती थी। "झूला पड़ा कदम की डारि, झूले ब्रिज के नर-नारी अरे रामा पेंग बढ़ावे राधा प्यारी,पिया को लागे प्यारी रे हारी" कजरी के गीत गाकर महिलाएं मनोरंजन किया करती थी और इस परम्परा को जीवित रखती थी। समय धीरे-धीरे बदलता गया और सावन के महीने में गाये जाने वाला कजरी कही गुम सा हो गया। सावन का महीना चल रहा है पाँच अगस्त को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाएगा। लेकिन अब तक न पेड़ो पर झूले पड़े और न ही कही कजरी के गीत सुनाई दे रहे है।

सावन के महीने में गाये जाने वाला गीत कजरी और पेड़ो पर से गायब होते झूले को लेकर जनपद के साहित्यकार जगदीश पीयूष से ईटीवी भारत ने बात किया तो उन्होंने कहा कि कजरी और सावन के गीतों को याद करके अब हम लोग रोमांचित हो जाते है। "मोहे सावन में झूला झूला दा,मुंदरी गढ़ा दिया ना अबकी सावन में मुंदरी गढ़ऊबे, उँगरी सजायी देबे ना"





Body:क्या कारण है कि अब कजरी के गीत नही सुनायी देते-

यह त्योहार मुख्य रूप से लड़कियों का था। सबसे पहले भगवान शंकर की पूजा पार्वती ने हरियाली तीज पर की थी तब से ये परम्परा चली आ रही है। शादी के बाद लडकिया सावन में जब ससुराल से पहली बार मायके आती थी तब झूला झूलती थी, सहेलियों के साथ कजरी के गीत गा कर मनोरंजन किया करती थी। किसान खेतो में धन बोने के बाद अपने खाली समय को बहुत ही संजीदे तरीके से अपने उल्लास में शामिल करता था।मगर आज के समय मे पुराने जमाने मे जो कजरी के गीत,सावन दिखाई नही पड़ते वो अब नही दिखते। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोगो के पास अब समय नही है। इंसान,सिनेमा,टीवी, मोबाइल में व्यस्त हो चुका है। पहले के समय मे मिलने वाले गाँव के के कुएं से पानी खिंचने के लिए एक नहन होती थी जिससे उस नहन से पेड़ो पर झूले डाले जाते थे। आज वो नहन गायब है।


Conclusion:कजरी क्या है?

कजरी पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध लोकगीत है। इसे सावन के महीने में गाया जाता है। अर्थशास्त्री गायन की विधा के रूप में भी विकसित हुआ और इसके गायन में बनारस घराने की खास दखल है। कजरी गीतों में वर्षा ऋतु का वर्णन, विरह-वर्णन तथा राधा कृष्ण की लीलाओं का वर्णन अधिकतर मिलता है। इसमें शृंगार रस की प्रधानता होती है। उत्तर प्रदेश में कजरी जाने का प्रचार खूब पाया जाता है।

"देखो सावन में हिंडोला झूलै
छैला छाय रहे मधुबन में
आयी सावन की बहार
हरि संग डारि-डारि गलबहियाँ
हरि बिन जियरा मोरा तरसे
झूला झूलन हम लागी हो रामा
अजहू न आयल तोहर छोटी ननदी
तरसत जियरा हमार नैहर में"


वन-टू-वन (जगदीश पीयूष, साहित्यकार)




Last Updated : Aug 4, 2019, 3:14 PM IST
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