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अम्बेडकरनगर: ये दरगाह हिन्दू-मुस्लिम के लिए है आस्था का केंद्र, विदेशों से आते हैं जायरीन

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Published : Sep 28, 2019, 7:16 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:26 PM IST

उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर जिले में विश्व प्रसिद्ध सूफी संत हजरत मखदूम अशरफ की दरगाह हिन्दू-मुस्लिम दोनों सम्प्रदायों के लिए आस्था का केंद्र है. इस समय मखदूम अशरफ की 633वां उर्स मनाया जा रहा है.

मखदूम अशरफ की 633वां उर्स मनाया जा रहा है.

अम्बेडकरनगर: जिले में मुख्यालय से लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित सूफी संत मखदूम अशरफ सिमनानी की दरगाह सभी सम्प्रदयों की आस्था का केंद्र है, जिसे लोग किछौछा शरीफ के नाम से जानते हैं. सैकड़ों साल पूर्व खाड़ी के सिम्नान प्रदेश से अपनी बादशाहत छोड़कर आए इसी स्थान को मखदूम साहब ने अपनी कर्मभूमि बनाई और बिना किसी भेद भाव के लोगों की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. इस समय मखदूम अशरफ की 633वां उर्स मनाया जा रहा है.

मखदूम अशरफ की 633वां उर्स मनाया जा रहा है

दुनिया भर से आते हैं लाखों लोग
इस मौके पर दुनिया भर के लाखों लोग यहां आते हैं. इस दरगाह पर आस्था रखने वाले दोनों समुदायों के लोग बिना किसी भेदभाव के मजार पर आकर अपनी परेशानियों को दूर करने के लिए दुआ मांगते हैं. लोगों का अटूट विश्वास है कि मखदूम साहब की दरगाह पर मांगी गई मन्नत जरूर पूरी होती है.

अमन चैन और भाईचारे की मांगते हैं दुआ
वैसे तो यहां आने वाले श्रद्धालुओं का तांता साल भर लगा रहता है, लेकिन इस्लामिक मुहर्रम महीने की 27वीं और 28वीं तारीख को मखदूम साहब के उर्स पर देश-विदेश से लाखों की संख्या लोग आकर जियारत करतें हैं. इस मौके की सबसे खास बात ये है कि खिरका (मखदूम साहब द्वारा पहना गया विशेष कपड़ा) पहनकर मुल्क में अमन चैन, भाईचारे और दुनिया भर से आये लोगों के लिए दुआ मांगी गई.

दरगाह के पास है एक नीर शरीफ
दरगाह के पास एक नीर शरीफ भी है, जिसमें लोग नहाते हैं और इसका पानी भर कर घरों को भी ले जाते हैं. लोगों का मानना है कि ये नीर शरीफ हजरत मखदूम अशरफ ने खुद बनवाई और इसका पानी कभी कम नहीं होता. सबसे खास बात ये है कि इस पानी को जांच किया गया है. हर शोध में ये पानी पीने योग्य बताया गया है. लोगों का विश्वास है कि नीर शरीफ में नहाने से हर तरह के मर्ज दूर हो जाते हैं.

मखदूम साहब की नहीं थी कोई औलाद
बता दें कि मखदूम साहब के बारे में ये भी कहा जाता है कि उनकी कोई औलाद नहीं थी और उनके मरने के बाद उनके भांजे सबसे पहले इस दरगाह के सज्जादा नासीन बने और तबसे ये परंपरा चली आ रही है कि उसी खानदान से इस दरगाह के सज्जादा नशीं बनाये जाते हैं, जो मखदूम साहब के उर्स के मौके पर सारी रस्म अदायगी करते हैं.

फकीर बढ़चढ़ कर लेते हैं हिस्सा
इसमें जो सबसे खास बात ये है कि मखदूम साहब के उर्स के मौके पर सज्जादा नशीं उनका खास कपड़ा खिरका (हजरत मखदूम अशरफ का पहना हुआ कपड़ा) पहनकर ही उनके आस्ताने पर जाकर लोगों की भलाई के लिए दुआएं मांगते हैं. इस खिरके की एक झलक पाने और छूने के लिए लोग बेताब रहते हैं. इस मौके पर यहां के फकीर भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.

अम्बेडकरनगर: जिले में मुख्यालय से लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित सूफी संत मखदूम अशरफ सिमनानी की दरगाह सभी सम्प्रदयों की आस्था का केंद्र है, जिसे लोग किछौछा शरीफ के नाम से जानते हैं. सैकड़ों साल पूर्व खाड़ी के सिम्नान प्रदेश से अपनी बादशाहत छोड़कर आए इसी स्थान को मखदूम साहब ने अपनी कर्मभूमि बनाई और बिना किसी भेद भाव के लोगों की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. इस समय मखदूम अशरफ की 633वां उर्स मनाया जा रहा है.

मखदूम अशरफ की 633वां उर्स मनाया जा रहा है

दुनिया भर से आते हैं लाखों लोग
इस मौके पर दुनिया भर के लाखों लोग यहां आते हैं. इस दरगाह पर आस्था रखने वाले दोनों समुदायों के लोग बिना किसी भेदभाव के मजार पर आकर अपनी परेशानियों को दूर करने के लिए दुआ मांगते हैं. लोगों का अटूट विश्वास है कि मखदूम साहब की दरगाह पर मांगी गई मन्नत जरूर पूरी होती है.

अमन चैन और भाईचारे की मांगते हैं दुआ
वैसे तो यहां आने वाले श्रद्धालुओं का तांता साल भर लगा रहता है, लेकिन इस्लामिक मुहर्रम महीने की 27वीं और 28वीं तारीख को मखदूम साहब के उर्स पर देश-विदेश से लाखों की संख्या लोग आकर जियारत करतें हैं. इस मौके की सबसे खास बात ये है कि खिरका (मखदूम साहब द्वारा पहना गया विशेष कपड़ा) पहनकर मुल्क में अमन चैन, भाईचारे और दुनिया भर से आये लोगों के लिए दुआ मांगी गई.

दरगाह के पास है एक नीर शरीफ
दरगाह के पास एक नीर शरीफ भी है, जिसमें लोग नहाते हैं और इसका पानी भर कर घरों को भी ले जाते हैं. लोगों का मानना है कि ये नीर शरीफ हजरत मखदूम अशरफ ने खुद बनवाई और इसका पानी कभी कम नहीं होता. सबसे खास बात ये है कि इस पानी को जांच किया गया है. हर शोध में ये पानी पीने योग्य बताया गया है. लोगों का विश्वास है कि नीर शरीफ में नहाने से हर तरह के मर्ज दूर हो जाते हैं.

मखदूम साहब की नहीं थी कोई औलाद
बता दें कि मखदूम साहब के बारे में ये भी कहा जाता है कि उनकी कोई औलाद नहीं थी और उनके मरने के बाद उनके भांजे सबसे पहले इस दरगाह के सज्जादा नासीन बने और तबसे ये परंपरा चली आ रही है कि उसी खानदान से इस दरगाह के सज्जादा नशीं बनाये जाते हैं, जो मखदूम साहब के उर्स के मौके पर सारी रस्म अदायगी करते हैं.

फकीर बढ़चढ़ कर लेते हैं हिस्सा
इसमें जो सबसे खास बात ये है कि मखदूम साहब के उर्स के मौके पर सज्जादा नशीं उनका खास कपड़ा खिरका (हजरत मखदूम अशरफ का पहना हुआ कपड़ा) पहनकर ही उनके आस्ताने पर जाकर लोगों की भलाई के लिए दुआएं मांगते हैं. इस खिरके की एक झलक पाने और छूने के लिए लोग बेताब रहते हैं. इस मौके पर यहां के फकीर भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.

Intro:स्पेशल स्टोरी

ANCHOR- उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर जिले में विश्व प्रसिद्ध सूफी संत हजरत मखदूम अशरफ की दरगाह हिन्दू मुस्लिम दोनों सम्प्रदायों के आस्था का केंद्र है । साल भर दरगाह पर जायरीनो का ताँता लगा रहता है । लोग अपनी हर तरह की परेसनियों के लिए दरगाह पर आ कर मन्नत मंगाते हैं , इस समय दरगाह के 633 वां उर्स की धूम मची हुई है |

Body:VO-1- अम्बेडकर नगर जिले में मुख्यालय से लगभग 30 की .मी .की दूरी पर स्थित सूफी संत मखदूम अशरफ सिमनानी की दरगाह सभी सम्प्रदयों की आस्था का केंद्र है जिसे लोग किछौछा शरीफ के नाम से जानते हैं । सैकड़ों साल पूर्व खाड़ी के सिम्नान प्रदेश से अपनी बादसाहत छोड़ कर आये इसी स्थान को मखदूम साहब ने अपनी कर्म भूमि बनाई और बिना किसी भेद भाव के लोगों की भलाई के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया । इस समय मखदूम अशरफ की उर्स की धूम मची हुई है , इस मौके पर दुनिया भर के लाखों लोग यहां आते हैं , लोगों का मन्ना है की उस समय मखदूम साहब की दरगाह पर माँगी गयी दुआ जरूर पूरी होती है |

BYTE-1- KASHIM ASHRFI

VO-2- इस दरगाह पर आस्था रखने वाले दोनों समुदायों के लोग बिना किसी भेद भाव के मजार पर आकर अपनी परेसनियों को दूर करने के लिए दुआ मंगतें हैं । लोगों का अटूट विस्वास है की मखदूम साहब की दरगाह पर मांगी गयी मन्नत जरूर पूरी होती है । वैसे तो येहाँ आने वाले श्रधालुओं का ताँता साल भर लगा रहता है ,लेकिन स्लामिक मुहर्रम महीने की 27वीं और 28वीं तारीख़ को मखदूम साहब के उर्स पर देश विदेश से लाखों की संख्या लोग आकर जियारत करतें है । इस मौके की सबसे खास बात ये है की खिरका ( मखदूम साहब द्वारा पहना गया विशेष कपड़ा ) पहनकर मुल्क में अमन चैन , भाई चारे और दुनिया भर से आये लोगो के लिए दुआ माँगी गई |

VO -3- दरगाह के पास एक नीर शरीफ भी है जिसमें लोग नहाते हैं और इसका पानी भर कर घरों को भी ले जाते है । लोगों का मन्ना है कि ये नीर शरीफ हज़रत मखदूम अशरफ ने खुद बनवाई भी और इसका पानी कभी कम नहीं होता । सबसे खास बात ये है कि इस पानी को जाँच किया गया है हर सोध में ये पानी पीने योग्य बताया गया है । लोगों का विस्वास है कि नीर शरीफ में नहाने से हर तरह के मर्ज दूर हो जातें है



Conclusion:VO-4 - इस समय मखदूम अशरफ की 633 वां उर्स मनाया जा रहा है | जिसका परम्परागत तरीके से डंका बजा कर सुरु हुआ | आपको को बताते चले की मखदूम साहब के बारे में ये भी कहा जाता है की उनकी कोई औलाद नहीं थी और उनके मरने के बाद उनके भांजे सबसे पहले इस दरगाह के सज्जादा नासीन बने और तबसे ये परंपरा चली आ रही है की उसी खानदान से इस दरगाह के सज्जादा नशीं बनाये जाते हैं जो मखदूम साहब के उर्स के मौके पर सारी रस्म अदायगी करते है | इसमें जो सबसे खास पहलू है वह ये है की मखदूम साहब के उर्स के मौके पर सज्जादा नशीन उनका खास कपडा खिरका ( हज़रत मखदूम अशरफ का पहना हुआ कपड़ा ) पहन कर ही उनके आस्ताने पर जाकर लोगों की भलाई के लिए दुआएं मांगता है |इस खिरके की एक झलक पाने और छूने के लिए लोग बेताब रहते हैं | इस मौके पर येहाँ के फकीर भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेतें हैं ।

अनुराग चैधरी
अम्बेडकरनगर
9451734102
खबर रैप से जा रही है ।
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:26 PM IST
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