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कुंभ में आयोजित हुआ संतों का सम्मेलन, जैविक खेती पर दिया गया जोर - प्रयागराज न्यूज

रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उत्पन्न कृषि उत्पाद भिन्न-भिन्न बीमारियां पैदा कर रही हैं. इसलिए स्वस्थ समाज का निर्माण करना है, तो जैविक कृषि को अपनाना ही पड़ेगा.

संतों ने जताई चिंता
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Published : Feb 7, 2019, 8:03 PM IST


प्रयागराज: जिले में चल रहे विश्व प्रसिद्ध कुंभ मेला के संगम लोहमार्ग पर स्थित भक्ति वेदांत नगर काशी के पंडाल में गो रक्षा, राष्ट्र रक्षा और जैविक खेती विषय पर एक संत का सम्मेलन का आयोजन हुआ. यहां आए साधु-संतों ने जैविक खेती पर अपनी बात रखी और इसे अपनाने पर जोर दिया.

साधुओं ने जैविक खेती पर दिया जोर
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भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां खेती किसानों की जीविका एक महत्वपूर्ण जरिया है. बीते कुछ सालों से लगातार रासायनिक खादों के प्रयोग से मिट्टी की सेहत और उर्वरकता खराब हो रही है. इससे किसान बहुत परेशान हैं. साथ ही रासायनिक उर्वरक का बहुत अधिक प्रयोग बीमारियों का कारण भी है. कुंभ मेला में आयोजित सम्मेलन में साधु-संतों ने अपनी चिंता व्यक्त की और किसानों से पुरानी पद्धति को वापस लेकर आने को कहा. साधु संतों ने संगोष्ठी के माध्यम से खेती में जैविक उर्वरक के इस्तेमाल पर जोर दिया.

सम्मेलन में बोलते हुए गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि जैविक उर्वरकों के प्रयोग से 80% बीमारियों से मुक्ति पाई जा सकती है. रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उत्पन्न कृषि उत्पाद भिन्न-भिन्न बीमारियां पैदा कर रही हैं. इसलिए स्वस्थ समाज का निर्माण करना है, तो जैविक कृषि को अपनाना ही पड़ेगा.

सम्मेलन में आए हुए साधु संतों ने कहा कि सरकारों के पास मत्स्य पालन, सूअर पालन और मुर्गी पालन के लिए विभिन्न योजनाए हैं, लेकिन गोवंश के संरक्षण और संवर्धन के लिए न तो कोई नीति है और न ही नीयत. सरकार के पास गोवंश के संवर्धन के लिए कोई बजट भी निर्धारित नहीं है. इस स्थिति को बदलना पड़ेगा तभी हम भारत को समृद्ध एवं स्वस्थ बना सकते हैं.

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प्रयागराज: जिले में चल रहे विश्व प्रसिद्ध कुंभ मेला के संगम लोहमार्ग पर स्थित भक्ति वेदांत नगर काशी के पंडाल में गो रक्षा, राष्ट्र रक्षा और जैविक खेती विषय पर एक संत का सम्मेलन का आयोजन हुआ. यहां आए साधु-संतों ने जैविक खेती पर अपनी बात रखी और इसे अपनाने पर जोर दिया.

साधुओं ने जैविक खेती पर दिया जोर
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भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां खेती किसानों की जीविका एक महत्वपूर्ण जरिया है. बीते कुछ सालों से लगातार रासायनिक खादों के प्रयोग से मिट्टी की सेहत और उर्वरकता खराब हो रही है. इससे किसान बहुत परेशान हैं. साथ ही रासायनिक उर्वरक का बहुत अधिक प्रयोग बीमारियों का कारण भी है. कुंभ मेला में आयोजित सम्मेलन में साधु-संतों ने अपनी चिंता व्यक्त की और किसानों से पुरानी पद्धति को वापस लेकर आने को कहा. साधु संतों ने संगोष्ठी के माध्यम से खेती में जैविक उर्वरक के इस्तेमाल पर जोर दिया.

सम्मेलन में बोलते हुए गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि जैविक उर्वरकों के प्रयोग से 80% बीमारियों से मुक्ति पाई जा सकती है. रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उत्पन्न कृषि उत्पाद भिन्न-भिन्न बीमारियां पैदा कर रही हैं. इसलिए स्वस्थ समाज का निर्माण करना है, तो जैविक कृषि को अपनाना ही पड़ेगा.

सम्मेलन में आए हुए साधु संतों ने कहा कि सरकारों के पास मत्स्य पालन, सूअर पालन और मुर्गी पालन के लिए विभिन्न योजनाए हैं, लेकिन गोवंश के संरक्षण और संवर्धन के लिए न तो कोई नीति है और न ही नीयत. सरकार के पास गोवंश के संवर्धन के लिए कोई बजट भी निर्धारित नहीं है. इस स्थिति को बदलना पड़ेगा तभी हम भारत को समृद्ध एवं स्वस्थ बना सकते हैं.

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Intro:कृषि प्रधान देश में लगातार रासायनिक खादों के प्रयोग से बिगड़ रही मिट्टी की सेहत की चिंता साधु संतों को भी है किसान अपने पुरानी पद्धति को लेकर वापस आए उसको लेकर के कुंभ मेला प्रयाग साधु संतों ने संगोष्ठी के माध्यम से इसके प्रयोग पर बल दिया कुंभ मेला प्रयाग राज के संगम लोहमार्ग पर स्थित भक्ति वेदांत नगर काशी के पंडाल में आयोजित गौ रक्षा राष्ट्र रक्षा एवं जैविक कृषि विषय पर एक संत का सम्मेलन आयोजित हुआ जिसमें आए हुए संतों ने जैविक खेती पर अपनी बात रखी


Body:जैविक कृषि विषय पर संत सम्मेलन में श्री काशी से होगी पीठाधीश्वर यतीश सम्राट अनंत श्री विभूषित पूजा गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि किसी के माध्यम से 80% बीमारियों से मुक्ति पाई जा सकती है उर्वरक के प्रयोग से उत्पन्न कृषि उत्पाद ही भिन्न-भिन्न बीमारियां पैदा कर रहे हैं इसलिए भी स्वस्थ समाज का निर्माण करना है तो जैविक कृषि को अपनाना ही पड़ेगा।
भारत कृषि प्रधान देश है और है तथा कृषि और स्वस्थ समाज के लिए नहीं अपितु भारतीय अर्थव्यवस्था और समृद्धि की रेट गोवंश रहा है यह दोनों पुणे से भारत को सोने की चिड़िया बनाना है तो हमें गोवंश संरक्षण व संवर्धन करना ही पड़ेगा परंतु समस्या को बढ़ाने में सरकारों की उदासीनता कहीं अधिक उत्तरदाई है


Conclusion:सम्मेलन में आए हुए साधु संतों ने कहा कि सरकारों के पास मत्स्य पालन सूअर पालन और मुर्गी पालन के लिए नीति है लेकिन गोवंश के संरक्षण व संवर्धन के लिए कोई नीति नहीं है नहीं नियत है और ना ही कोई इसके लिए बजट निर्धारित है इस स्थिति को बदलना पड़ेगा तभी हम भारत को समृद्ध एवं भारतीय समाज को स्वस्थ बना सकते हैं।

बाईट: डॉ राम कमल दास वेदांती

प्रवीण मिश्र
प्रयागराज
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