प्रयागराज : एक ही भाव, हर-हर गंगे की गूंज, न कोई आमंत्रण, न ही कोई बुलावा. सिर पर गठरी लादे और कदम से कदम मिलाकर चलना, एक झुंड में निकलना यही है आस्था का मेला. यह नजारा मौनी अमावस्या स्नान से एक दिन पहले कुंभनगरी में देखा गया. मौनी अमावस्या का प्रमुख स्नान सोमवार को है लेकिन आस्था का रेला प्रयगनागरी में शनिवार से जुटने लगा. न कोई जाति का भेद न कोई भाषा का भेद सभी में एक प्रेम की धारा बह रही है आस्था.
प्रयागराज के रास्ते श्रद्धालुओं से ठसाठस भरे हैं. मेला प्रशासन ने शनिवार से ही पूरी तैयारी कर ली और मेला क्षेत्र में वाहनों पर पूरी तरह से रोक लगा दी. सिर पर गठरी लादे श्रद्धालु पैदल स्नान के लिए पहुंच रहे हैं. इस कुम्भ में आस्था और अध्यात्म के साथ ही आधुनिकता का संगम हो रहा है. दिव्य और भव्य कुम्भ में काफी कुछ बदला है लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वह संगमनगरी आने वाले श्रद्धालुओं के सिर की गठरी.
एक दूजे की पहचान है गठरी और हाथों का झंडा मौनी अमावस्या के दिन स्नान करने के लिए देश के अलग-अलग कोने से आते हैं. श्रद्धालुओं ने बताया कि ये गठरी सिर्फ दाना और कपड़ा रखने के लिए नहीं है बल्कि हम सभी एक दूसरे से बिछड़ न जाए इसके लिए भी महत्वपूर्ण है. अपनों को खोने से बचाती है. इसी तरह कुछ श्रद्धालु हाथों में झंडा लेकर चलते हैं. झंडे के निशान देखकर ग्रुप के लोग अलग नहीं होते हैं.