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प्रयागराज: उमड़ा जनसैलाब, हर ओर बह रही आस्था की धारा - prayagraj news

मौनी अमावस्या का प्रमुख स्नान सोमवार को है लेकिन आस्था का रेला प्रयगनागरी में शनिवार से जुटने लगा. न कोई जाति का भेद न कोई भाषा का भेद सभी में एक प्रेम की धारा बह रही है आस्था.

कुम्भ में शाही स्नान
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Published : Feb 4, 2019, 3:20 PM IST

प्रयागराज : एक ही भाव, हर-हर गंगे की गूंज, न कोई आमंत्रण, न ही कोई बुलावा. सिर पर गठरी लादे और कदम से कदम मिलाकर चलना, एक झुंड में निकलना यही है आस्था का मेला. यह नजारा मौनी अमावस्या स्नान से एक दिन पहले कुंभनगरी में देखा गया. मौनी अमावस्या का प्रमुख स्नान सोमवार को है लेकिन आस्था का रेला प्रयगनागरी में शनिवार से जुटने लगा. न कोई जाति का भेद न कोई भाषा का भेद सभी में एक प्रेम की धारा बह रही है आस्था.

कुम्भ में शाही स्नान
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प्रयागराज के रास्ते श्रद्धालुओं से ठसाठस भरे हैं. मेला प्रशासन ने शनिवार से ही पूरी तैयारी कर ली और मेला क्षेत्र में वाहनों पर पूरी तरह से रोक लगा दी. सिर पर गठरी लादे श्रद्धालु पैदल स्नान के लिए पहुंच रहे हैं. इस कुम्भ में आस्था और अध्यात्म के साथ ही आधुनिकता का संगम हो रहा है. दिव्य और भव्य कुम्भ में काफी कुछ बदला है लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वह संगमनगरी आने वाले श्रद्धालुओं के सिर की गठरी.


एक दूजे की पहचान है गठरी और हाथों का झंडा मौनी अमावस्या के दिन स्नान करने के लिए देश के अलग-अलग कोने से आते हैं. श्रद्धालुओं ने बताया कि ये गठरी सिर्फ दाना और कपड़ा रखने के लिए नहीं है बल्कि हम सभी एक दूसरे से बिछड़ न जाए इसके लिए भी महत्वपूर्ण है. अपनों को खोने से बचाती है. इसी तरह कुछ श्रद्धालु हाथों में झंडा लेकर चलते हैं. झंडे के निशान देखकर ग्रुप के लोग अलग नहीं होते हैं.

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प्रयागराज : एक ही भाव, हर-हर गंगे की गूंज, न कोई आमंत्रण, न ही कोई बुलावा. सिर पर गठरी लादे और कदम से कदम मिलाकर चलना, एक झुंड में निकलना यही है आस्था का मेला. यह नजारा मौनी अमावस्या स्नान से एक दिन पहले कुंभनगरी में देखा गया. मौनी अमावस्या का प्रमुख स्नान सोमवार को है लेकिन आस्था का रेला प्रयगनागरी में शनिवार से जुटने लगा. न कोई जाति का भेद न कोई भाषा का भेद सभी में एक प्रेम की धारा बह रही है आस्था.

कुम्भ में शाही स्नान
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प्रयागराज के रास्ते श्रद्धालुओं से ठसाठस भरे हैं. मेला प्रशासन ने शनिवार से ही पूरी तैयारी कर ली और मेला क्षेत्र में वाहनों पर पूरी तरह से रोक लगा दी. सिर पर गठरी लादे श्रद्धालु पैदल स्नान के लिए पहुंच रहे हैं. इस कुम्भ में आस्था और अध्यात्म के साथ ही आधुनिकता का संगम हो रहा है. दिव्य और भव्य कुम्भ में काफी कुछ बदला है लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वह संगमनगरी आने वाले श्रद्धालुओं के सिर की गठरी.


एक दूजे की पहचान है गठरी और हाथों का झंडा मौनी अमावस्या के दिन स्नान करने के लिए देश के अलग-अलग कोने से आते हैं. श्रद्धालुओं ने बताया कि ये गठरी सिर्फ दाना और कपड़ा रखने के लिए नहीं है बल्कि हम सभी एक दूसरे से बिछड़ न जाए इसके लिए भी महत्वपूर्ण है. अपनों को खोने से बचाती है. इसी तरह कुछ श्रद्धालु हाथों में झंडा लेकर चलते हैं. झंडे के निशान देखकर ग्रुप के लोग अलग नहीं होते हैं.

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Intro:कुम्भ 2019: बिन निमंत्रण के पहुंचे संगमनगरी, हर ओर आस्था का रेला 7000668169 प्रयागराज: एक ही भाव, हर हर गंगे की गूंज, न कोई आमंत्रण, न ही कोई बुलावा. सिर पर गठरी लादे और कदम से कदम मिलाकर चलना, एक झुंड में निकलना यही है आस्था का मेला. यह नजारा इन दिनों मौनी अमावस्या स्नान के एक दिन पहले से कुंभनगरी में देखा जा रहा है. मौनी अमावस्या का प्रमुख स्नान सोमवार को है लेकिन आस्था का रेला प्रयगनागरी में शनिवार से जुटने लगी है. यह भीड़ चुनावी नहीं बल्कि मां गंगे का आशीर्वाद लेने और दान पुण्य के लिए है. न कोई जाति का भेद न कोई भाषा का भेद सभी मे एक प्रेम की धारा बह रही है आस्था. सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है.


Body:सड़क और वायू मार्गों से निकल रहे श्रद्धालुओं का रुख संगम नगरी पहुंचे का है. प्रयागराज में चारों तरफ से आने वाले रास्तों में श्रद्धालुओं के भीड़ से ठसाठस है. मेला प्रशासन ने शनिवार से ही पूरी तैयारी कर लिया है और मेला क्षेत्र में वाहनों पर पूरी तरह से रुक लगा दिया गया है. सिर पर गठरी लादे श्रद्धालु पैदल स्नान कर लिए पहुंच रहे हैं. चारों ओर गठरी ही गठरी मेला क्षेत्र में इस समय श्रद्धालुओं के सिर पर गठरी ही गठरी देखने को मिल रहे हैं. इसका मतलब यही उन्हें किसी प्रकार से व्यवस्था की जरूरत नहीं ना आराम की जरूरत है. अगर कुछ भाव और चाह है, वह आस्था की डुबकी लगाने की. इस कुम्भ में आस्था और अध्यात्म के साथ ही आधुनिकता का संगम हो रहा है. दिव्य और भव्य कुम्भ में काफी कुछ बदला है लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वह संगमनगरी आने वाले श्रद्धालुओं के सिर की गठरी.


Conclusion:एक दूजे की पहचान है गठरी और हाथों का झंडा मौनी अमावस्या के दिन स्नान करने के लिए देश के अलग-अलग कोने से आते हैं. श्रद्धालुओं ने बताया कि ये गठरी सिर्फ दाना और कपड़ा रखने के लिए नहीं है बल्कि हम सभी एक दूसरे से बिछड़ न जाए इसके लिए भी महत्वपूर्ण है. अपनों को खोने से बचाती है. इसी तरफ कुछ श्रद्धालु हाथों में झंडा लेकर चलते हैं. झंडे के निशान देखकर ग्रुप के लोग अलग नही होते हैं. कही भी रहे लेकिन ग्रुप का झंडा देख खोने का डर कम होता है और भटकते का भी नही.
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