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अलीगढ़: जिला अस्पताल में बढ़ रहा नवजात शिशुओं की मौत का आंकड़ा

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के महिला अस्पताल में पिछले 3 महीने में 47 शिशुओं की मौत हो चुकी है. यहां वेंटिलेटर की कमी और मौके पर ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं होने से शिशुओं की जिंदगी बचाने में दिक्कत आ रही है.

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बढ़ रहा नवजात शिशुओं की मौत का आंकड़ा.
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Published : Jan 27, 2020, 3:40 PM IST

अलीगढ़: जिला महिला अस्पताल में स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में पिछले 3 महीने में 47 नवजात शिशुओं की मौत हो चुकी है. औसतन हर महीने जिले के अस्पतालों में करीब 900 बच्चे जन्म लेते हैं. मोहन लाल गौतम जिला अस्पताल में केवल 14 ही न्यू बॉर्न केयर यूनिट है.

बढ़ रहा नवजात शिशुओं की मौत का आंकड़ा.

नवजात शिशुओं को बीमारी से बचाने के लिए वेंटिलेटर की जरूरत होती है, लेकिन वेंटिलेटर की कमी व मौके पर ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं होने से शिशुओं की जिंदगी बचाने में दिक्कत आ रही है. हालांकि जिला अस्पताल में लेवल टू इंसेंटिव केयर यूनिट है, जबकि यहां लेवल थ्री स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट की जरूरत है.

बाहर से आकर भर्ती होने वाले शिशुओं की मृत्यु दर अधिक

मोहन लाल गौतम महिला जिला अस्पताल में बाहर से आकर भर्ती होने वाले शिशुओं की मृत्यु, अस्पताल में जन्मे शिशुओं से अधिक है. 47 मृत शिशुओं में 33 बाहर से आकर भर्ती हुए थे. यानी कि महीने में करीब 15 से अधिक नवजात की मृत्यु हो जाती है. मोहनलाल गौतम महिला अस्पताल के अंदर एसएनसीयू संचालित है, लेकिन यहां केवल 14 बेड हैं, जिनमें से सात इंडोर और सात बाहर से आने वाले शिशुओं के लिए आरक्षित हैं.

डॉक्टर ने मौत की कुछ और वजह बताई

हाल ही में गोरखपुर और राजस्थान में शिशुओं की मौत का मामला सामने आने पर सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं को लेकर सवाल उठने लगे, लेकिन अलीगढ़ के महिला सरकारी अस्पताल में मौत की वजह कुछ और ही है. यहां के प्रभारी डॉ. जीपी शर्मा ने बताया कि शिशुओं की मौत की वजह सांस लेने में दिक्कत, जन्म के समय दिक्कत, समय से पूर्व जन्मे नवजात, शिशुओं का कम वजन व हाइपोथर्मिया आदि कारण है. उन्होंने बताया कि 5 से 10 प्रतिशत नवजात अक्सर गंभीर हो जाते है, जिन्हें बचाना मुश्किल होता है.

सीएमओ डॉ. गीता प्रधान कहती हैं कि नवजात शिशुओं की संख्या ज्यादा हो जाती है और सुविधाएं होने का पूरा दावा कर रही है.उन्होंने बताया कि बाहर से आने वाले बच्चों के साथ समस्या रहती है, उनकी हालत खराब होती है इसलिए डेथ होती है. डॉ. गीता ने कहा कि ज्यादा बच्चे होने पर भी यह दिक्कत आती है.

अलीगढ़: जिला महिला अस्पताल में स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में पिछले 3 महीने में 47 नवजात शिशुओं की मौत हो चुकी है. औसतन हर महीने जिले के अस्पतालों में करीब 900 बच्चे जन्म लेते हैं. मोहन लाल गौतम जिला अस्पताल में केवल 14 ही न्यू बॉर्न केयर यूनिट है.

बढ़ रहा नवजात शिशुओं की मौत का आंकड़ा.

नवजात शिशुओं को बीमारी से बचाने के लिए वेंटिलेटर की जरूरत होती है, लेकिन वेंटिलेटर की कमी व मौके पर ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं होने से शिशुओं की जिंदगी बचाने में दिक्कत आ रही है. हालांकि जिला अस्पताल में लेवल टू इंसेंटिव केयर यूनिट है, जबकि यहां लेवल थ्री स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट की जरूरत है.

बाहर से आकर भर्ती होने वाले शिशुओं की मृत्यु दर अधिक

मोहन लाल गौतम महिला जिला अस्पताल में बाहर से आकर भर्ती होने वाले शिशुओं की मृत्यु, अस्पताल में जन्मे शिशुओं से अधिक है. 47 मृत शिशुओं में 33 बाहर से आकर भर्ती हुए थे. यानी कि महीने में करीब 15 से अधिक नवजात की मृत्यु हो जाती है. मोहनलाल गौतम महिला अस्पताल के अंदर एसएनसीयू संचालित है, लेकिन यहां केवल 14 बेड हैं, जिनमें से सात इंडोर और सात बाहर से आने वाले शिशुओं के लिए आरक्षित हैं.

डॉक्टर ने मौत की कुछ और वजह बताई

हाल ही में गोरखपुर और राजस्थान में शिशुओं की मौत का मामला सामने आने पर सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं को लेकर सवाल उठने लगे, लेकिन अलीगढ़ के महिला सरकारी अस्पताल में मौत की वजह कुछ और ही है. यहां के प्रभारी डॉ. जीपी शर्मा ने बताया कि शिशुओं की मौत की वजह सांस लेने में दिक्कत, जन्म के समय दिक्कत, समय से पूर्व जन्मे नवजात, शिशुओं का कम वजन व हाइपोथर्मिया आदि कारण है. उन्होंने बताया कि 5 से 10 प्रतिशत नवजात अक्सर गंभीर हो जाते है, जिन्हें बचाना मुश्किल होता है.

सीएमओ डॉ. गीता प्रधान कहती हैं कि नवजात शिशुओं की संख्या ज्यादा हो जाती है और सुविधाएं होने का पूरा दावा कर रही है.उन्होंने बताया कि बाहर से आने वाले बच्चों के साथ समस्या रहती है, उनकी हालत खराब होती है इसलिए डेथ होती है. डॉ. गीता ने कहा कि ज्यादा बच्चे होने पर भी यह दिक्कत आती है.

Intro:अलीगढ़  : अलीगढ़ के जिला महिला अस्पताल में स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में पिछले 3 महीने में 47 नवजात शिशुओं की मौत हुई है. यहां मौत का कारण सांस लेने में दिक्कत, पैदा होने में परेशानी, संक्रमण, समय से पूर्व जन्मे नवजात, नवजात का वजन कम होना या हाइपोथर्मिया बताया जा रहा है . औसतन हर महीने करीब जिल के अस्पतालों  में  करीब 900 बच्चे जन्म लेते हैं.  मोहन लाल गौतम जिला अस्पताल में केवल 14 ही न्यू बोर्न केयर यूनिट है. नवजात शिशुओं को बीमारी से बचाने के लिए वेंटिलेटर की जरूरत होती है लेकिन वेंटिलेटर की कमी से व मौके पर ऑक्सीजन नहीं उपलब्ध होने से शिशुओं की जिंदगी बचाने में आ  दिक्कत आ रही है . हालांकि जिला अस्पताल में  लेवल टू  इंसेंटिव केयर यूनिट है. जबकि यहां लेवल थ्री स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट की जरूरत है. 


मोहन लाल गौतम महिला जिला अस्पताल में बाहर से आकर भर्ती होने वाले शिशुओं की मृत्यु अस्पताल में जन्मे शिशुओं से अधिक है .47 मृत शिशुओं में 33 बाहर से आकर भर्ती हुए थे. यानी कि महीने में करीब 15 से अधिक नवजात की मृत्यु हो जाती है. मोहनलाल गौतम महिला अस्पताल के अंदर एसएनसीयू संचालित है. लेकिन यहां केवल 14 बेड है. जिनमें से सात इंडोर और सात बाहर से आने वाले शिशुओं के लिए आरक्षित है.







Body:हाल ही में गोरखपुर और राजस्थान में शिशुओं की मौत का मामला सामने आने पर सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं को लेकर सवाल उठने लगे. लेकिन अलीगढ़ के महिला सरकारी अस्पताल में मौत की वजह कुछ और है. यहां के प्रभारी डॉ जीपी शर्मा ने बताया कि शिशुओं की मौत की वजह सांस लेने में दिक्कत, पैदा होने में दिक्कत, समय से पूर्व जन्मे नवजात, शिशुओं का कम वजन व हाइपोथर्मिया आदि कारण है. उन्होंने बताया कि 5 से 10 प्रतिशत नवजात अक्सर गंभीर हो जाते है. जिन्हे बचाना मुश्किल होता है. हांलाकि  सीएमओ  डा गीता प्रधान कहती है कि नवजात शिशुओ का संख्या ज्यादा हो जाती है. और सुविधा होने का पूरा दावा कर रही है.उन्होंने बताया कि बाहर से आने वाले बच्चों के साथ समस्या रहती है.उनकी हालत खराब होती है.इसलिए डेथ होती है. डा गीता ने कहा कि बच्चे ज्यादा होने पर दिक्कत आती है. 

महिला जिला अस्पताल में 3 महीने में 598 नवजात शिशु भर्ती कराए गए 

21 सितंबर से 20 अक्टूबर के बीच भर्ती 223 में से 14 नवजात की मौत
21 अक्टूबर से 20 नवंबर के बीच भर्ती 190 में से 17 नवजात की मौत
21 नवंबर से 20 दिसंबर के बीच भर्ती 185 में से 16 नवजात की मौत



Conclusion:हालांकि नवजात शिशुओं की जिंदगी बचाने के लिए वेंटिलेटर की जरूरत होती है. जो कि एसएनसीयू में ही होता है. गंभीर रूप से बीमार नवजात शिशु को जब वेंटिलेटर की जरूरत होती है तो उसे दूसरी जगह रेफर करना पड़ता है. हालांकि इसका व्यावहारिक पक्ष यह है कि वेंटिलेटर की कमी अलीगढ़ में है. ऐसे में वेंटिलेटर की तलाश में वक्त लग जाता है. कई बार तो लोगों को उपलब्ध ही नहीं हो पाता. इसके साथ ही समय पर एसएनसीयू में ऑक्सीजन की भी सुविधा की कमी पड़ जाती है.  

एसएनसीयू में नवजात शिशु की जिंदगी को बचाने का पूरा प्रयास किया जाता है. यहां level-2 इंसेंटिव केयर यूनिट है. हालांकि अगर एसएनसीयू और अधिक बन जाए तो नवजात शिशुओं को फायदा होगा और शिशु मृत्यु दर में और गिरावट आएगी. यहां लेवल 3 एसएनसीयू की जरूरत है . दादी बनी नूर बानो ने बताया कि उनके जुड़वा पोते हुए हैं. लेकिन समय से पहले होने के कारण उनको एसएनसीयू में 15 दिनों से रखा गया है और उन्हें उम्मीद है कि नवजात बच्चा जल्दी ठीक हो जाएगा. सरकारी अस्पताल की तुलना में प्राइवेट अस्पतालों में एसएनसीयू की फीस गरीब आदमी के लिए बहुत महंगा पड़ता है .वही पिता बने दिलीप ने बताया कि उनका बच्चा कमजोर है और पिछले 10 दिनों से एसएनसीयू में भर्ती है.  


बाइट - डा जीपी शर्मा, प्रभारी सीएमएस,मोहन लाल गौतम महिला जिला अस्पताल
बाइट -  डा गीता प्रधान , सीएमओ, अलीगढ़ 
बाइट - नूर बानो . स्थानीय निवासी
बाइट -दिलीप (इनका बच्चा भर्ती है)

पीटीसी ......................आलोक सिंह, अलीगढ़

आलोक सिंह, अलीगढ़
9837830535
 
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