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मुफलिसी में जी रहा दंतेवाड़ा नक्सली हमले में शहीद जमरुल हसन का परिवार

छत्तीसगढ़ के ताड़ मेटला (दंतेवाड़ा) में नक्सली हिंसा में शहीद हुए CRPF जवान जमरुल हसन के परिवार को कोई सरकारी सुविधा नहीं मिली है. परिवार का आरोप है कि 10 साल बाद भी परिवार के किसी भी सदस्य को नौकरी नहीं मिली है. पेंशन के अलावा और कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है.

दंतेवाड़ा में शहीद सैनिक.
दंतेवाड़ा में शहीद सैनिक.
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Published : Apr 13, 2021, 5:08 PM IST

अलीगढ़: सरकारें वायदे करती हैं. शहीद सैनिकों के सम्मान में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएंगी. उनके परिवार को कोई पीड़ा नहीं होने दी जाएगी, लेकिन सन 2010 में छत्तीसगढ़ के ताड़ मेटला (दंतेवाड़ा) में नक्सली हिंसा में शहीद सैनिक को सम्मान देना भूल गई. ताड़ मेटला के नक्सली हिंसा में 76 सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए थे. जिसमें जमरुल हसन ने भी शहादत दी थी. आज उनका परिवार अलीगढ़ के जमालपुर इलाके में रह रहा है. जमरुल अपने पीछे पत्नी, तीन बेटियां और एक पुत्र को छोड़ गए. इनके परिवार की देख रेख का जिम्मा सरकार का था, लेकिन सरकार ने इनकी तकलीफों को देखना बंद कर दिया है. शहीद जमरुल के परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी नसीब नहीं हुई. पत्नी शबीना का इलाज आर्मी के अस्पताल में मयस्सर नहीं है. दस साल से ज्यादा समय हो गया, लेकिन सरकार ने कोई वायदा पूरा नहीं किया. सिर्फ पेंशन से ही परिवार को गुजर बसर हो रहा है.

शहीद जमरुल हसन का परिवार.

दंतेवाड़ा नक्सली हमले में हुए शहीद

CRPF के शहीद जवान जमरुल हसन का परिवार संभल में रहता था, लेकिन उनकी मौत के बाद परिवार के लोग अलीगढ़ आ गए. 6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में जमरुल हसन मारे गए. जमरुल हसन के बेटे आमिर कहते हैं कि सरकार ने वायदे बहुत किए थे, लेकिन पूरे नहीं किए गए. घटना के 10 साल से ज्यादा समय हो गया, लेकिन शहीद के परिवार को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थी. वह पूरी नहीं हुई. परिवार के सदस्य को नौकरी नहीं मिली है तो वहीं मां को मिलने वाले पेंशन से ही परिवार का गुजर-बसर चल रहा है.

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आमिर ने उठाई परिवार की जिम्मेदारी

शहीद जवान के पुत्र आमिर ने बताया कि मेरे परिवार के किसी सदस्य को नौकरी नहीं दी गई है. 10 साल पहले आमिर बहुत छोटे थे और पिता के शहीद होने के बाद बहुत मुश्किलें पैदा हुई. आमिर की तीन बहने हैं. जिसमें दो की शादी हो गई है और एक की शादी अभी होना बाकी है. मां शबीना अक्सर बीमार रहती हैं. उनके पांच ऑपरेशन हो चुके हैं. ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारी और शुगर लेवल हाई रहता है. हर दूसरे साल मां शबीना का ऑपरेशन कराना पड़ता है और यह सब जिम्मेदारी खुद आमिर वहन कर रहे हैं.

मां रहती है बीमार

उन्होंने बताया कि बड़ी बहन अलीगढ़ में है और उन्होंने संभल छोड़कर अलीगढ़ आने के लिए कहा था और यहां पर मां की देखभाल भी अच्छी हो जाएगी. आमिर बताते हैं कि मां के डॉक्यूमेंट सेना के अधिकारियों को भेजा गया, लेकिन इलाज में कोई मदद नहीं मिली. वहीं सेना के अस्पताल से भी राहत नहीं मिली. प्राइवेट अस्पताल में ही आमिर मां का इलाज करा रहे हैं. उन्होंने कहा कि सरकारी सिस्टम के चलते ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते. इसलिए मां को प्राइवेट अस्पताल में ही इलाज करा रहे हैं. आमिर ने बताया कि सरकार वैसे तो सुविधाएं देने के बहुत वादे करती है, लेकिन सिर्फ पेंशन के सिवाय कुछ नहीं मिला. उन्होंने कहा कि शहीद पिता के नाम से किसी सड़क मार्ग का भी नाम नहीं रखा गया.

इसे भी पढ़ें- अखिलेश यादव ने कराया कोरोना टेस्ट, सीएम योगी पर साधा निशाना

अलीगढ़: सरकारें वायदे करती हैं. शहीद सैनिकों के सम्मान में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएंगी. उनके परिवार को कोई पीड़ा नहीं होने दी जाएगी, लेकिन सन 2010 में छत्तीसगढ़ के ताड़ मेटला (दंतेवाड़ा) में नक्सली हिंसा में शहीद सैनिक को सम्मान देना भूल गई. ताड़ मेटला के नक्सली हिंसा में 76 सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए थे. जिसमें जमरुल हसन ने भी शहादत दी थी. आज उनका परिवार अलीगढ़ के जमालपुर इलाके में रह रहा है. जमरुल अपने पीछे पत्नी, तीन बेटियां और एक पुत्र को छोड़ गए. इनके परिवार की देख रेख का जिम्मा सरकार का था, लेकिन सरकार ने इनकी तकलीफों को देखना बंद कर दिया है. शहीद जमरुल के परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी नसीब नहीं हुई. पत्नी शबीना का इलाज आर्मी के अस्पताल में मयस्सर नहीं है. दस साल से ज्यादा समय हो गया, लेकिन सरकार ने कोई वायदा पूरा नहीं किया. सिर्फ पेंशन से ही परिवार को गुजर बसर हो रहा है.

शहीद जमरुल हसन का परिवार.

दंतेवाड़ा नक्सली हमले में हुए शहीद

CRPF के शहीद जवान जमरुल हसन का परिवार संभल में रहता था, लेकिन उनकी मौत के बाद परिवार के लोग अलीगढ़ आ गए. 6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में जमरुल हसन मारे गए. जमरुल हसन के बेटे आमिर कहते हैं कि सरकार ने वायदे बहुत किए थे, लेकिन पूरे नहीं किए गए. घटना के 10 साल से ज्यादा समय हो गया, लेकिन शहीद के परिवार को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए थी. वह पूरी नहीं हुई. परिवार के सदस्य को नौकरी नहीं मिली है तो वहीं मां को मिलने वाले पेंशन से ही परिवार का गुजर-बसर चल रहा है.

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आमिर ने उठाई परिवार की जिम्मेदारी

शहीद जवान के पुत्र आमिर ने बताया कि मेरे परिवार के किसी सदस्य को नौकरी नहीं दी गई है. 10 साल पहले आमिर बहुत छोटे थे और पिता के शहीद होने के बाद बहुत मुश्किलें पैदा हुई. आमिर की तीन बहने हैं. जिसमें दो की शादी हो गई है और एक की शादी अभी होना बाकी है. मां शबीना अक्सर बीमार रहती हैं. उनके पांच ऑपरेशन हो चुके हैं. ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारी और शुगर लेवल हाई रहता है. हर दूसरे साल मां शबीना का ऑपरेशन कराना पड़ता है और यह सब जिम्मेदारी खुद आमिर वहन कर रहे हैं.

मां रहती है बीमार

उन्होंने बताया कि बड़ी बहन अलीगढ़ में है और उन्होंने संभल छोड़कर अलीगढ़ आने के लिए कहा था और यहां पर मां की देखभाल भी अच्छी हो जाएगी. आमिर बताते हैं कि मां के डॉक्यूमेंट सेना के अधिकारियों को भेजा गया, लेकिन इलाज में कोई मदद नहीं मिली. वहीं सेना के अस्पताल से भी राहत नहीं मिली. प्राइवेट अस्पताल में ही आमिर मां का इलाज करा रहे हैं. उन्होंने कहा कि सरकारी सिस्टम के चलते ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते. इसलिए मां को प्राइवेट अस्पताल में ही इलाज करा रहे हैं. आमिर ने बताया कि सरकार वैसे तो सुविधाएं देने के बहुत वादे करती है, लेकिन सिर्फ पेंशन के सिवाय कुछ नहीं मिला. उन्होंने कहा कि शहीद पिता के नाम से किसी सड़क मार्ग का भी नाम नहीं रखा गया.

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