अलीगढ़: उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक ऐसा अनोखा मंदिर है जहां गिलहरी रूप में हनुमान जी की पूजा होती है. हनुमान जन्मोत्सव को लेकर यहां कई दिनों तक कार्यक्रम होते हैं. भक्तों का कहना है कि यहां सच्चे मन से पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है. यह मंदिर थाना गांधी पार्क इलाके के अचल सरोवर पर है. यहां करीब 50 से अधिक मंदिर है. लेकिन, गिलहराज मंदिर की मान्यता सबसे ज्यादा है.
मंदिर करीब पांच हजार साल पुराना है. रामचरित मानस में भी हनुमान जी के गिलहरी रूप का वर्णन है. यहां हर मंगलवार को दूरदराज से चलकर लोग हनुमान जी के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. लोगों का कहना है कि यहां 41 दिन दर्शन करने से हर मनोकामना पूरी होती है. लोगों की मान्यता है कि इसके करीब निर्मित सरोवर में स्नान करने से कुष्ठ जैसे असाध्य रोग दूर हो जाते हैं.
देशभर में हनुमान जी के कई मंदिर हैं, जहां भगवान के विभिन्न रूपों की पूजा होती है. लेकिन, अलीगढ़ में हनुमान जी का गिलहरी के रूप में मंदिर स्थापित है. इस मंदिर के महंत कौशल नाथ बताते हैं कि मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है. सबसे पहले यहां महेंद्र नाथ योगी ने प्रतीक की खोज की थी. जो एक सिद्ध योगी थे. कहा जाता है कि हनुमान जी ने इन्हें सपने में साक्षात्कार दिया था. जिसके बाद नाथ संप्रदाय के महंत ने यहां मंदिर का निर्माण कराया.
महेंद्र योगी को हनुमान जी सपने में आए थे और कहा कि अचल ताल पर मैं निवास करता हूं. वहां मेरी पूजा करो. जब महंत ने अपने शिष्य को अचल सरोवर पर खोज करने के लिए भेजा, तो उन्हें वहां मिट्टी के ढेर पर बहुत सारी गिलहरी मिली. जिन्हें हटाकर फावड़े से खोदाई की, तो जमीन के नीचे मूर्ति निकली. यह मूर्ति गिलहरी के रूप में हनुमान जी की थी. बाद में यहां पर मंदिर की स्थापना की गई.
महाभारत काल में श्री कृष्ण के भाई दाऊजी ने अचल ताल पर पूजा की थी. अचल ताल के मंदिर में गिलहरी रूप पर हनुमान जी की एक आंख दिखाई देती है. मंगलवार को भारी संख्या में यहां श्रद्धालु पहुंचते हैं और सच्चे मन से गिलहराज मंदिर में पूजा करते हैं. यहां भक्तों के सभी दुखों का नाश होता है. साथ ही जीवन में सुखमय और खुशहाली आती है.
हनुमान जयंती पर यहां देश-विदेश से भक्त दर्शन के लिए आते हैं. मान्यता है कि यहां भगवान गिलहराज को लड्डुओं का भोग लगाने से भक्तों के हर संकट दूर हो जाते हैं. गिलहराज मंदिर के महंत योगी कौशल नाथ महाराज ने बताया कि इस मंदिर की खोज महंत महेंद्र योगी महाराज ने की थी. जो नाथ संप्रदाय के परम सिद्ध योगी थे. विश्व भर में गिलहरी के रूप में हनुमान जी का मंदिर यहीं देखने को मिलता हैं.