अलीगढ़: चेहल्लुम के मौके पर शहर में एएमयू स्थित इमामबाड़ा बेतुस सलात से जुलूस निकाला गया. इसमें मातमदारों ने सीनाजनी कर इमाम हुसैन को याद किया. इसमें शहर के कई अंजुमनों ने भाग लिया. यह मुहर्रम के ताजिया दफनाए जाने के चालीसवें दिन मनाया जाता है.
वास्तव में चेहल्लुम हजरत इमाम हुसैन की शहादत का 40वां होता है. हजरत इमाम हुसैन पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हैं. वहीं जुलूस इमामबाड़ा से शुरू होकर एसएस नॉर्थ और साउथ होते हुए स्टाफ क्लब, वीसी लॉज, ज्योग्राफी डिपार्टमेंट से होते हुए वापस प्रारंभ स्थल पर पहुंचा. जुलूस के दौरान हाथ में अलम था और लोग इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद कर रहे थे.
इसमें वृद्ध, महिला, पुरुष और बच्चे भी शामिल रहे. प्रो. लतीफ हुसैन काजमी ने बताया कि जुलूस में अंजुमन तंजीम उल अजा, अंजुमन अब्बासिया मेडिकल कॉलोनी, लश्कर हुसैनी अमीर निशा, समेत कई लोगों ने मातम किया.
इस मौके पर मुस्तफा बिलग्रामी ने बताया कि इमाम हुसैन के साथ बहुत जुल्म हुआ था. उन्होंने बताया कि हम आतंकवाद, दहशतगर्द के खिलाफ हैं. मुल्क में लोग अमन, चैन और शांति, सद्भावना के साथ एकजुट होकर रहें तभी देश की कामयाबी तरक्की संभंव है.
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मोहसिन ने बताया कि हजरत साहब की शहादत के 40 दिन बाद चेहल्लुम मनाया जाता है. जुलूस में अलम, ताबूत के साथ मातम किया गया. लोगों को यह मालूम रहे कि यजीद कौन था और उसने किस तरह दीन-ए -इस्लाम को मिटाने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि हमें बुराई का साथ नहीं देना चाहिए.
एएमयू के फिलॉसफी डिपार्टमेंट के चेयरमैन प्रोफेसर लतीफ हसन काजमी ने कहा कि यह कुर्बानी सच और इंसाफ के लिए थी. इमाम हुसैन ने बुराई के सामने सर नहीं झुकाया और कर्बला के मैदान में कुर्बानी दे दी. इंसानियत के लिए उन्होंने अपनी कुर्बानी दी.
इस दौरान रक्तदान शिविर भी लगाया गया. यह शिविर 2007 से लगातार लगाया जा रहा है. इसमें महिला, पुरुष और युवाओं ने ब्लड डोनेट दिया. वहीं जगह जगह पर सबीले भी लगाई गई.