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अलीगढ़: AMU में सबरीमाला टेंपल के जजमेंट पर हुआ व्याख्यान - amu organized lecture on Judgment of sabarimala temple

उत्तर प्रदेश अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सबरीमाला टेंपल जजमेंट के विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. इस दौरान प्रख्यात कानूनविद प्रोफेसर वीरेन्द्र कुमार ने कहा कि प्रजातांत्रिक धर्मनिर्पेक्ष राज्य में सामाजिक समरस्ता का एक मात्र माध्यम विभिन्नता में एकता है.

सबरीमाला टेंपल के जजमेंट पर हुआ व्याख्यान.
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Published : Sep 3, 2019, 2:44 PM IST

अलीगढ़: एएमयू के विधि संकाय में सबरीमाला टेंपल जजमेंट के विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. इस दौरान प्रख्यात कानूनविद प्रोफेसर वीरेन्द्र कुमार ने कहा कि प्रजातांत्रिक धर्मनिर्पेक्ष राज्य में सामाजिक समरस्ता का एक मात्र माध्यम विभिन्नता में एकता है.

सबरीमाला टेंपल के जजमेंट पर हुआ व्याख्यान.

विभिन्नता का यह अर्थ नहीं है कि इससे समाज में भेदभाव का बोध किया जाए. बल्कि इसका सार भारत जैसे भिन्नताओं के देश को एक बहुरंगी संस्कृति प्रदान करना है, जो देश को और मजबूत बनाता है. हमें दूसरों के धार्मिक विश्वास, पूजा और आराधना के तरीकों पर प्रश्न नहीं उठाना चाहिए. बल्कि हमें विभिन्न आस्थाओं के मध्य समरसता के उन मार्गों को प्रशस्त करना है.

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उन्होंने कहा कि सबरी माला मन्दिर मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने समाज के विभिन्न स्तरों पर आस्था की स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता के मध्य अन्तर स्पष्ट करने का प्रयास किया है. जजमेंट ने संविधान में छुपी हुई समानता के अधिकार को उजागर करने का काम किया है. ऐसे मामलों में मतभेद होते हैं. कुछ लोग पक्ष में होते हैं तो कुछ लोग विपक्ष में होते हैं, लेकिन मैजोरिटी जजमेंट को माना जाता है.

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इस मौके पर विधि संकाय के शकील समदानी ने कहा कि धार्मिक मामलों पर जजमेंट देना बहुत मुश्किल होता है. जज का खुद भी अपना मजहब होता है, लेकिन एक जज के लिए सबसे बड़ा मजहब संविधान ही है. उसी के अनुसार ही काम करना है. उन्होंने कहा कि भारतीय न्यायपालिका ऐसे मामलों में बहुत ईमानदारी से फैसला करती है.

अलीगढ़: एएमयू के विधि संकाय में सबरीमाला टेंपल जजमेंट के विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. इस दौरान प्रख्यात कानूनविद प्रोफेसर वीरेन्द्र कुमार ने कहा कि प्रजातांत्रिक धर्मनिर्पेक्ष राज्य में सामाजिक समरस्ता का एक मात्र माध्यम विभिन्नता में एकता है.

सबरीमाला टेंपल के जजमेंट पर हुआ व्याख्यान.

विभिन्नता का यह अर्थ नहीं है कि इससे समाज में भेदभाव का बोध किया जाए. बल्कि इसका सार भारत जैसे भिन्नताओं के देश को एक बहुरंगी संस्कृति प्रदान करना है, जो देश को और मजबूत बनाता है. हमें दूसरों के धार्मिक विश्वास, पूजा और आराधना के तरीकों पर प्रश्न नहीं उठाना चाहिए. बल्कि हमें विभिन्न आस्थाओं के मध्य समरसता के उन मार्गों को प्रशस्त करना है.

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उन्होंने कहा कि सबरी माला मन्दिर मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने समाज के विभिन्न स्तरों पर आस्था की स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता के मध्य अन्तर स्पष्ट करने का प्रयास किया है. जजमेंट ने संविधान में छुपी हुई समानता के अधिकार को उजागर करने का काम किया है. ऐसे मामलों में मतभेद होते हैं. कुछ लोग पक्ष में होते हैं तो कुछ लोग विपक्ष में होते हैं, लेकिन मैजोरिटी जजमेंट को माना जाता है.

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इस मौके पर विधि संकाय के शकील समदानी ने कहा कि धार्मिक मामलों पर जजमेंट देना बहुत मुश्किल होता है. जज का खुद भी अपना मजहब होता है, लेकिन एक जज के लिए सबसे बड़ा मजहब संविधान ही है. उसी के अनुसार ही काम करना है. उन्होंने कहा कि भारतीय न्यायपालिका ऐसे मामलों में बहुत ईमानदारी से फैसला करती है.

Intro:अलीगढ़ : प्रख्यात कानूनविद तथा यूजीसी ऐमेरेटस फेलो प्रोफेसर वीरेन्द्र कुमार ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के विधि विभाग में डा अम्बेडकर चेयर के तत्वाधान में धार्मिक स्वतंत्रता  : भारतीय संविधान के अन्तर्गत इसकी पहचान तथा स्वायत्ता ,साबरी माला मन्दिर मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय विषय पर आयोजित लेक्चर प्रस्तुत किया. प्रो वीरेन्द्र ने कहा कि एक प्रजातांत्रिक धर्मनिर्पेक्ष राज्य में सामाजिक समरस्ता का एक मात्र माध्यम विभिन्नता में एकता है उन्होंने कहा कि विभिन्नता का यह अर्थ नहीं है कि इससे समाज में भेदभाव का बोध किया जाए. बल्कि इसका सार भारत जैसे भिन्नताओं के देश को एक बहुरंगी संस्कृति प्रदान करना है. जो देश को और मजबूत बनाता है.





Body: उन्होंने कहा कि हमें दूसरों के धार्मिक विश्वास अथवा पूजा एवं आराधना के तरीकों पर प्रश्न नहीं उठाना चाहिये. बल्कि हमें विभिन्न आस्थाओं के मध्य समरसता के उन मार्गों को प्रशस्त करना है. जिनको देश के संविधान ने न केवल मान्यता प्रदान की है. बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता को भारतीय संस्कृति की आत्मा करार दिया है.  प्रो  वीरेन्द्र कुमार ने कहा कि साबरी माला मन्दिर मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने समाज के विभिन्न स्तरों पर आस्था की स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता के मध्य अन्तर स्पष्ट करने का प्रयास किया है. इससे विभिन्न धार्मिक समुदायों में आस्था के आधार पर बंटे हुये वर्गों की भारतीय संविधान के अन्तर्गत धार्मिक स्वतंत्रता के विषय में महत्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न होते हैं.  


Conclusion:उन्होंने  सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विश्लेषण किया. विधि संकाय में हर साल अंबेडकर चेयर लेक्चर आयोजित किया जाता है . सबरीमाला टेंपल के जजमेंट पर राइट टू रिलीजन पर प्रो वीरेन्द्र ने व्याख्यान दिया. सबरीमाला टेंपल पर जजमेंट 4 - 1 से जीता गया. सबरीमाला जजमेंट से जो बातें संविधान में छुपी हुई थी. इसने समानता के अधिकार को उजागर करने का काम किया है.  इस मामले में प्रोफेसर वीरेन्द्र कुमार ने कहा कि ऐसे मामलों में मतभेद होते हैं. कुछ लोग पक्ष में होते हैं तो कुछ लोग विपक्ष में होते हैं. लेकिन मजोरिटी जजमेंट को माना जाता है. इस मौके पर विधि संकाय के शकील समदानी ने कहा कि धार्मिक मामलों पर जजमेंट देना बहुत मुश्किल होता है. लेकिन धार्मिक मामले को संविधान की रोशनी में देखना है. उन्होंने कहा कि जज का खुद भी अपना मजहब होता है. लेकिन एक जज के लिए सबसे बड़ा मजहब संविधान ही है. उसी के अनुसार ही काम करना है. जो जजों के लिए बहुत मुश्किल होता है. उन्होंने कहा कि भारतीय न्यायपालिका ऐसे मामलों में बहुत ईमानदारी से फैसला करता है. प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार ने कहा यहां प्रश्न फ्रीडम ऑफ फेथ एंड वर्शिप की है. यहां मामला आदमी व महिला का नहीं है. 

बाइट - प्रो वीरेन्द्र कुमार, प्रोफेसर एमरेट्स, पंजाब विश्वविद्यालय

आलोक सिंह, अलीगढ़
9837830535


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