अलीगढ़: एएमयू के विधि संकाय में सबरीमाला टेंपल जजमेंट के विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. इस दौरान प्रख्यात कानूनविद प्रोफेसर वीरेन्द्र कुमार ने कहा कि प्रजातांत्रिक धर्मनिर्पेक्ष राज्य में सामाजिक समरस्ता का एक मात्र माध्यम विभिन्नता में एकता है.
विभिन्नता का यह अर्थ नहीं है कि इससे समाज में भेदभाव का बोध किया जाए. बल्कि इसका सार भारत जैसे भिन्नताओं के देश को एक बहुरंगी संस्कृति प्रदान करना है, जो देश को और मजबूत बनाता है. हमें दूसरों के धार्मिक विश्वास, पूजा और आराधना के तरीकों पर प्रश्न नहीं उठाना चाहिए. बल्कि हमें विभिन्न आस्थाओं के मध्य समरसता के उन मार्गों को प्रशस्त करना है.
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उन्होंने कहा कि सबरी माला मन्दिर मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने समाज के विभिन्न स्तरों पर आस्था की स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता के मध्य अन्तर स्पष्ट करने का प्रयास किया है. जजमेंट ने संविधान में छुपी हुई समानता के अधिकार को उजागर करने का काम किया है. ऐसे मामलों में मतभेद होते हैं. कुछ लोग पक्ष में होते हैं तो कुछ लोग विपक्ष में होते हैं, लेकिन मैजोरिटी जजमेंट को माना जाता है.
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इस मौके पर विधि संकाय के शकील समदानी ने कहा कि धार्मिक मामलों पर जजमेंट देना बहुत मुश्किल होता है. जज का खुद भी अपना मजहब होता है, लेकिन एक जज के लिए सबसे बड़ा मजहब संविधान ही है. उसी के अनुसार ही काम करना है. उन्होंने कहा कि भारतीय न्यायपालिका ऐसे मामलों में बहुत ईमानदारी से फैसला करती है.