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आजादी की लड़ाई में इस वैश्या का भी अहम योगदान, अंग्रेजों से राज उगलवाकर कर मौत की नींद सुला देती थी - अलीगढ़ में आजादी की लड़ाई

आजादी की लड़ाई में अलीगढ़ का भी योगदान इतिहास में दर्ज है. यहां 24 वीरांगनाओं ने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों से लोहा लिया था. जिनमें देशभक्त तवायफ स्वरूपा उर्फ पुगलो वेश्या का नाम भी शामिल है.

सुरेंद्र शर्मा ने बताया.
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Published : Aug 15, 2023, 6:29 PM IST

सुरेंद्र शर्मा ने बताया.

अलीगढ़: आजादी के 76 वर्ष पूर्ण होने पर देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. देश की इस आजादी की लड़ाई में अलीगढ़ भी पीछे नहीं रहा है. देश को आजादी दिलाने में तवायफ स्वरूपा उर्फ पुगलो वैश्या का नाम भी इतिहास में दर्ज है. जैसा नाम है, वैसा ही गुण था. क्षत्रिय परिवार से ताल्लुक रखने वाली स्वरूपा असाधारण सौंदर्य की मलिका थी. एक तुर्क सरदार की उस पर नजर पड़ गई और उसने उसका अपहरण करवा लिया. वह तुर्क सरदार भी देशभक्त के रंग में रंग चुका था. जिसका प्रभाव स्वरूपा पर भी पड़ा.

आजादी के रंग में रंगी वीरांगनाः आजादी के अमृत महोत्सव के जिला संयोजक सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि देश में बहुत ही वीरांगनाओं ने अपना योगदान दिया. इस योगदान में अलीगढ़ भी अग्रणी रहा है. शहर की 24 वीरांगनाओं को या फांसी हुई या उन्हें जेल भेज दिया गया था. इन्हीं वीरांगनाओं में मातृशक्ति स्वरूपा को पुगलो वैश्या के नाम से लोग जानते हैं. उन्होंने बताया कि इन वीरांगनाओं में स्वरूपा का नाम भी शामिल था. स्वरूप एक क्षत्रिय कन्या थी. जिसे तुर्क सरदार ने अपने सैनिकों से अपहरण करवाकर शादी कर लिया था. लेकिन तुर्क सरदार देश भक्त था. आजादी के रंग में रंगे तुर्क सरदार को 1856 में अंग्रेजों ने पकड़ कर फांसी दे दी. तुर्क सरदार को फांसी दिए जाने के बाद स्वरूपा के पास जीवन यापन का साधन नहीं रहा. जिसके बाद स्वरूपा शहर के रूप के बाजार में आकर बैठ गई थी. लेकिन स्वरूपा के अंदर देशभक्ति का जज्बा भरा हुआ था.

बरगद के पेड़ पर दी गई फांसीः सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि यहां से स्वरूपा की कहानी शुरू हो गई. उस समय अलीगढ़ में स्वरूपा के रूप की बाजार में रौनक थी. इस दौरान वह अपने एक ब्राह्मण प्रेमी के साथ रहती भी थी. देर रात महफिल में अंग्रेजो शराब पिलाना और उनसे राज उगलवाना स्वरूपा का शगल बन चुका था. जिले के हाकिम और दरोगा भी उसके तलबगार थे. किसी भी तरह का खतरा महसूस होने पर वह अपने दुश्मनों को शराब में जहर भी दे देती थी. इस दौरान स्वरूपा ने अनगिनत देश के गद्दारों के साथ अंग्रेजों को मौत की नींद सुला दी थी. इस काम में स्वरूपा का साथ उनका ब्राह्मण प्रेमी भी देता था. स्वरूपा की कारगुजारियों की जानकारी होने पर अंग्रेजों ने उन्हें उसके ब्राह्मण प्रेमी के साथ 1856 में कोल तहसील में बरगद के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया था. शहर के गांधी पार्क के मामू-भांजा इमामबाड़े में स्वरूपा की कब्र बनी हुई है. जो उनके देशभक्ति होने का सबूत है. लेकिन आज यहां की दीवारें खंडहर में बदल चुकी हैं. अब मामू भांजा इलाके में पुगलो के नाम से मार्केट बन गई है. वक्फ बोर्ड के कब्जे वाली इस जमीन में मार्केट के पीछे यहां इमामबाड़ा बना हुआ है.


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सुरेंद्र शर्मा ने बताया.

अलीगढ़: आजादी के 76 वर्ष पूर्ण होने पर देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. देश की इस आजादी की लड़ाई में अलीगढ़ भी पीछे नहीं रहा है. देश को आजादी दिलाने में तवायफ स्वरूपा उर्फ पुगलो वैश्या का नाम भी इतिहास में दर्ज है. जैसा नाम है, वैसा ही गुण था. क्षत्रिय परिवार से ताल्लुक रखने वाली स्वरूपा असाधारण सौंदर्य की मलिका थी. एक तुर्क सरदार की उस पर नजर पड़ गई और उसने उसका अपहरण करवा लिया. वह तुर्क सरदार भी देशभक्त के रंग में रंग चुका था. जिसका प्रभाव स्वरूपा पर भी पड़ा.

आजादी के रंग में रंगी वीरांगनाः आजादी के अमृत महोत्सव के जिला संयोजक सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि देश में बहुत ही वीरांगनाओं ने अपना योगदान दिया. इस योगदान में अलीगढ़ भी अग्रणी रहा है. शहर की 24 वीरांगनाओं को या फांसी हुई या उन्हें जेल भेज दिया गया था. इन्हीं वीरांगनाओं में मातृशक्ति स्वरूपा को पुगलो वैश्या के नाम से लोग जानते हैं. उन्होंने बताया कि इन वीरांगनाओं में स्वरूपा का नाम भी शामिल था. स्वरूप एक क्षत्रिय कन्या थी. जिसे तुर्क सरदार ने अपने सैनिकों से अपहरण करवाकर शादी कर लिया था. लेकिन तुर्क सरदार देश भक्त था. आजादी के रंग में रंगे तुर्क सरदार को 1856 में अंग्रेजों ने पकड़ कर फांसी दे दी. तुर्क सरदार को फांसी दिए जाने के बाद स्वरूपा के पास जीवन यापन का साधन नहीं रहा. जिसके बाद स्वरूपा शहर के रूप के बाजार में आकर बैठ गई थी. लेकिन स्वरूपा के अंदर देशभक्ति का जज्बा भरा हुआ था.

बरगद के पेड़ पर दी गई फांसीः सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि यहां से स्वरूपा की कहानी शुरू हो गई. उस समय अलीगढ़ में स्वरूपा के रूप की बाजार में रौनक थी. इस दौरान वह अपने एक ब्राह्मण प्रेमी के साथ रहती भी थी. देर रात महफिल में अंग्रेजो शराब पिलाना और उनसे राज उगलवाना स्वरूपा का शगल बन चुका था. जिले के हाकिम और दरोगा भी उसके तलबगार थे. किसी भी तरह का खतरा महसूस होने पर वह अपने दुश्मनों को शराब में जहर भी दे देती थी. इस दौरान स्वरूपा ने अनगिनत देश के गद्दारों के साथ अंग्रेजों को मौत की नींद सुला दी थी. इस काम में स्वरूपा का साथ उनका ब्राह्मण प्रेमी भी देता था. स्वरूपा की कारगुजारियों की जानकारी होने पर अंग्रेजों ने उन्हें उसके ब्राह्मण प्रेमी के साथ 1856 में कोल तहसील में बरगद के पेड़ पर फांसी पर लटका दिया था. शहर के गांधी पार्क के मामू-भांजा इमामबाड़े में स्वरूपा की कब्र बनी हुई है. जो उनके देशभक्ति होने का सबूत है. लेकिन आज यहां की दीवारें खंडहर में बदल चुकी हैं. अब मामू भांजा इलाके में पुगलो के नाम से मार्केट बन गई है. वक्फ बोर्ड के कब्जे वाली इस जमीन में मार्केट के पीछे यहां इमामबाड़ा बना हुआ है.


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