आगरा: यमुना एक्सप्रेस-वे पर सात जुलाई को हुए दर्दनाक हादसे के बाद देवदूत की भूमिका निभाने वाले ग्रामीणों को रात में नींद नहीं आती है. ग्रामीणों ने समय पर राहत बचाव कार्य शुरू करके झरना नाले में गिरी अवध डिपो की बस में फंसे 25 से ज्यादा घायल लोगों की जान बचाई थी. इस हादसे में 29 लोगों की मौत हुई थी. अब यमुना एक्सप्रेस वे पर तेज रफ्तार दौड़ रहे वाहनों की आवाज से ग्रामीणों की नींद खुल जाती है. ईटीवी भारत से बातचीत में इन ग्रामीणों ने अपनी पीड़ा जाहिर की.
7 जुलाई की वह भयानक सुबह
7 जुलाई की सुबह 4:30 बजे यमुना एक्सप्रेस वे पर अब तक का सबसे बड़ा सड़क हादसा हुआ था. आगरा के गांव चौगान के पास लखनऊ से दिल्ली जा रही अवध एक्सप्रेस बस के चालक को झपकी आ गई. इसके चलते पहले बस डिवाइडर पर 90 मीटर तक दौड़ती रही फिर बैरिकेड तोड़कर 45 फीट नीचे झरना नाले में जा गिरी थी. इस हादसे में 29 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि बस में सवार 25 लोग घायल हुए थे. इस हादसे को 4 दिन बीत चुके हैं और यमुना एक्सप्रेस-वे अथॉरिटी की ओर से इस हादसे के जख्मों को भरा जा रहा है. झरना नाले के पुल पर नया बैरिकेड्स भी लगा दिया गया है, लेकिन इस हादसे में सबसे पहले राहत कार्य शुरू करने वाले ग्रामीणों की पूरी दिनचर्या बदल गई है.
14 लोगों की जान बचाने वाले निहाल सिंह
हादसे के बाद सबसे पहले मौके पर पहुंचे निहाल सिंह रातों को सो नहीं पा रहे हैं. निहाल ने 14 घायलों को अकेले ही अपने दम पर बस से निकाला था. निहाल सिंह का कहना है कि जब से वह हादसा हुआ है तब से उन्हें रात में नींद नहीं आती. सोते समय लोगों की मदद की चीख-पुकार सुनाई देती है. ऐसे में उनकी नींद खुल जाती है. उसे लगता है कि कोई उसे मदद के लिए बुला रहा है. ग्रामीण प्रेमपाल सिंह का कहना है कि इस राहत कार्य में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी, लेकिन हादसे के बाद से उन्हें भी रात में नींद नहीं आती है. अब तेज रफ्तार वाहनों की आवाज से भी उनकी नींद खुल जाती है और ऐसा लगता है कि कहीं हादसा हो गया है. हमें दौड़ करके मदद करने के लिए जाना चाहिए.