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KGMU में इलाज तो बढ़िया है लेकिन इमरजेंसी में बेड मिल जाए तो शुक्र मनाना... - LUCKNOW KGMU

यूपी के विभिन्न जिलों से पहुंचे मरीजों और तीमारदारों ने बताई आपबीती.

केजीएमयू में इमरजेंसी इलाज में बाधा.
केजीएमयू में इमरजेंसी इलाज में बाधा. (Photo Credit ; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 8, 2025, 9:23 AM IST

लखनऊ : किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में प्रदेशभर से मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, लेकिन यहां मरीज के साथ रहने वाले तीमारदार भी बीमार पड़ने लगते हैं. मरीजों का कहना है कि यहां पर इलाज अच्छा होता है, इसलिए चाहे जितनी भी दिक्कत हो फिर भी यहीं पर आते हैं. यहां भीड़ इतनी होती है कि मरीज की जांच के लिए तीमारदार इधर से उधर भागता रहता है. दो से तीन दिन अस्पताल का चक्कर लगाने के बाद मरीज को अस्पताल में इलाज उपलब्ध होता है. केजीएमयू में प्रदेश के अन्य जिलों से मरीज इलाज के लिए आते हैं और यहां पर इलाज कराना तीमारदारों को इतना भारी पड़ जाता है कि मरीज के साथ उनकी भी तबीयत अधमरी हो जाती है.


मरीजों ने बताया कि अस्पताल परिसर में मरीज को भर्ती कराना बेहद मुश्किल है. इस दौरान तीमारदार की हालत गंभीर हो जाती है. जांच के लिए इधर उधर भगाया जाता है. बाहर से आने वाले लोगों को मालूम नहीं होता कि कौन सी जांच कहां हो रही है. इसके लिए कहीं हेल्प भी नहीं मिलती है. नाम के लिए हेल्प डेस्क है, लेकिन वहां पर भी किसी को कोई सही जानकारी नहीं होती है.

सीतापुर निवासी महिला तीमारदार ने बताया कि उसके पांच साल के बेटे सर्जरी बीते 3 महीने पहले हुई थी. बच्चे कब मलद्वार नहीं था. केजीएमयू के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने बच्चे का ऑपरेशन कर मलद्वार बनाया. यहां पर भर्ती कराने में दिक्कत होती है, लेकिन यहां पर इलाज अच्छा होता है. मरीज को दिखाने या भर्ती कराने में सुबह से शाम हो जाती है. यहां पर जिसका सोर्स है उसका इलाज ही आसानी से हो सकता है. गरीब लोगों का इलाज यहां पर होना मुश्किल है. क्योंकि यहां पर भर्ती कराने में ही तीमारदारों की हालत खराब हो जाती है. कई दिनों तक मरीज को लेकर इधर से उधर लेकर भटकते रहते हैं. अक्सर डॉक्टर बोलते हैं कि दूसरे विभाग में जाएं. कोई केजीएमयू पुरानी बिल्डिंग भेजता है, फिर उधर से दूसरे विभाग में भेज दिया जाता है. इधर से उधर भटकने में मरीज की तबीयत और ज्यादा खराब हो जाती है. हम भी चार दिन बाद मरीज को अस्पताल में भर्ती करा पाए.


लखीमपुर निवासी सूरज शुक्ला ने बताया कि इमरजेंसी केस को केजीएमयू में भर्ती कराने में तीमारदार की हालत खराब हो जाती हैं. लखीमपुर से मरीज को लेकर आए थे. मरीज की हालत काफी गंभीर थी. मरीज की हड्डी पांच जगह से टूटी थी. एक पैर में तीन जगह और दूसरे पैर में दो जगह पैर की हड्डी टूटी हुई थी. मरीज को भर्ती कराने में तीन दिन लग गए. 48 घंटे के बाद मरीज को इलाज मिल पाया. यहां पर इलाज कराना बहुत मुश्किल होता है. गंभीर मरीज को तीन दिन बाद इलाज मिला और तीन दिनों तक मरीज को लेकर हम इधर से उधर भटकते रहे. यहां पर किसी भी कर्मचारी का व्यवहार अच्छा नहीं है न कोई कायदे से बात करता है. डॉक्टर एक जगह से दूसरी जगह जांच के लिए जब भेजते हैं तो मरीज को साथ लेकर दर-दर भटकना पड़ता है और किसी को पता नहीं होता है कि कौन सी जांच कहां होनी हैं.


लखीमपुर निवासी मोहम्मद शरीफ ने बताया कि इलाज के लिए मरीज को दो दिन पहले लेकर अस्पताल में आए थे और रात का समय था. 48 घंटे बाद मरीज को भर्ती किया गया. वहीं जिस रात हम अस्पताल में मरीज को लेकर आए थे वहां पर रात भर इधर से उधर हमें भगाया गया. कहीं इस जांच के लिए कहीं उस जांच के लिए. तमाम जांचों के लिए हमें अस्पताल परिसर में कम से कम 50 बार चक्कर लगाने पड़े हैं. उसके बाद भी भारतीय नहीं किया गया दो दिन बाद तक मरीज तड़पता रहा और मरीज को देखकर हमारी भी सांस अटकती रही. जांच के लिए इधर से उधर इतना ज्यादा भगा दिया जाता है कि मरीज के साथ तीमारदार की भी हालत गंभीर हो जाती है.


केजीएमयू प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने बताया कि केजीएमयू अस्पताल में रोजाना करीब 10 हजार लोग इलाज के लिए आते हैं. मरीजों की संख्या अधिक होने की वजह से मरीज को भर्ती कराने में थोड़ा समय लगता है. केजीएमयू ट्रामा सेंटर में 460 बेड है और बेड फुल हो जाने के कारण मरीज को भर्ती करने में समस्या आती हैं. हालांकि अस्पताल में जितने भी मरीज आते हैं उन्हें अच्छे से देखा जाता है. हमारी और डॉक्टरों की यही कोशिश होती है कि जितने भी मरीज हैं उन्हें बेहतर से बेहतर चिकित्सा सुविधा मिले. कर्मचारियों के व्यवहार के लिए कई बार मीटिंग भी होती है जिस पर खुद कुलपति कर्मचारियों से बातचीत करते हैं और उन्हें मरीजों और तीमारदारों के साथ कायदे से बात करने के लिए कहते हैं. हालांकि इस पर यह भी नियम है कि अगर कोई कर्मचारी की शिकायत आती है तो उस पर कड़ी कार्रवाई होगी.

यह भी पढ़ें : केजीएमयू में इलाज के अभाव में मरीज की मौत, 13 घंटे तक एक विभाग से दूसरे विभाग भेजा - King George s Medical University

यह भी पढ़ें : 3 वर्षीय बेटे का शव घर ले जाने के लिए परिजनों ने मांगी भीख, KGMU ट्रॉमा सेंटर में इलाज के दौरान हुई थी मौत - LUCKNOW KGMU TRAUMA CENTRE

लखनऊ : किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में प्रदेशभर से मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, लेकिन यहां मरीज के साथ रहने वाले तीमारदार भी बीमार पड़ने लगते हैं. मरीजों का कहना है कि यहां पर इलाज अच्छा होता है, इसलिए चाहे जितनी भी दिक्कत हो फिर भी यहीं पर आते हैं. यहां भीड़ इतनी होती है कि मरीज की जांच के लिए तीमारदार इधर से उधर भागता रहता है. दो से तीन दिन अस्पताल का चक्कर लगाने के बाद मरीज को अस्पताल में इलाज उपलब्ध होता है. केजीएमयू में प्रदेश के अन्य जिलों से मरीज इलाज के लिए आते हैं और यहां पर इलाज कराना तीमारदारों को इतना भारी पड़ जाता है कि मरीज के साथ उनकी भी तबीयत अधमरी हो जाती है.


मरीजों ने बताया कि अस्पताल परिसर में मरीज को भर्ती कराना बेहद मुश्किल है. इस दौरान तीमारदार की हालत गंभीर हो जाती है. जांच के लिए इधर उधर भगाया जाता है. बाहर से आने वाले लोगों को मालूम नहीं होता कि कौन सी जांच कहां हो रही है. इसके लिए कहीं हेल्प भी नहीं मिलती है. नाम के लिए हेल्प डेस्क है, लेकिन वहां पर भी किसी को कोई सही जानकारी नहीं होती है.

सीतापुर निवासी महिला तीमारदार ने बताया कि उसके पांच साल के बेटे सर्जरी बीते 3 महीने पहले हुई थी. बच्चे कब मलद्वार नहीं था. केजीएमयू के विशेषज्ञ डॉक्टरों ने बच्चे का ऑपरेशन कर मलद्वार बनाया. यहां पर भर्ती कराने में दिक्कत होती है, लेकिन यहां पर इलाज अच्छा होता है. मरीज को दिखाने या भर्ती कराने में सुबह से शाम हो जाती है. यहां पर जिसका सोर्स है उसका इलाज ही आसानी से हो सकता है. गरीब लोगों का इलाज यहां पर होना मुश्किल है. क्योंकि यहां पर भर्ती कराने में ही तीमारदारों की हालत खराब हो जाती है. कई दिनों तक मरीज को लेकर इधर से उधर लेकर भटकते रहते हैं. अक्सर डॉक्टर बोलते हैं कि दूसरे विभाग में जाएं. कोई केजीएमयू पुरानी बिल्डिंग भेजता है, फिर उधर से दूसरे विभाग में भेज दिया जाता है. इधर से उधर भटकने में मरीज की तबीयत और ज्यादा खराब हो जाती है. हम भी चार दिन बाद मरीज को अस्पताल में भर्ती करा पाए.


लखीमपुर निवासी सूरज शुक्ला ने बताया कि इमरजेंसी केस को केजीएमयू में भर्ती कराने में तीमारदार की हालत खराब हो जाती हैं. लखीमपुर से मरीज को लेकर आए थे. मरीज की हालत काफी गंभीर थी. मरीज की हड्डी पांच जगह से टूटी थी. एक पैर में तीन जगह और दूसरे पैर में दो जगह पैर की हड्डी टूटी हुई थी. मरीज को भर्ती कराने में तीन दिन लग गए. 48 घंटे के बाद मरीज को इलाज मिल पाया. यहां पर इलाज कराना बहुत मुश्किल होता है. गंभीर मरीज को तीन दिन बाद इलाज मिला और तीन दिनों तक मरीज को लेकर हम इधर से उधर भटकते रहे. यहां पर किसी भी कर्मचारी का व्यवहार अच्छा नहीं है न कोई कायदे से बात करता है. डॉक्टर एक जगह से दूसरी जगह जांच के लिए जब भेजते हैं तो मरीज को साथ लेकर दर-दर भटकना पड़ता है और किसी को पता नहीं होता है कि कौन सी जांच कहां होनी हैं.


लखीमपुर निवासी मोहम्मद शरीफ ने बताया कि इलाज के लिए मरीज को दो दिन पहले लेकर अस्पताल में आए थे और रात का समय था. 48 घंटे बाद मरीज को भर्ती किया गया. वहीं जिस रात हम अस्पताल में मरीज को लेकर आए थे वहां पर रात भर इधर से उधर हमें भगाया गया. कहीं इस जांच के लिए कहीं उस जांच के लिए. तमाम जांचों के लिए हमें अस्पताल परिसर में कम से कम 50 बार चक्कर लगाने पड़े हैं. उसके बाद भी भारतीय नहीं किया गया दो दिन बाद तक मरीज तड़पता रहा और मरीज को देखकर हमारी भी सांस अटकती रही. जांच के लिए इधर से उधर इतना ज्यादा भगा दिया जाता है कि मरीज के साथ तीमारदार की भी हालत गंभीर हो जाती है.


केजीएमयू प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने बताया कि केजीएमयू अस्पताल में रोजाना करीब 10 हजार लोग इलाज के लिए आते हैं. मरीजों की संख्या अधिक होने की वजह से मरीज को भर्ती कराने में थोड़ा समय लगता है. केजीएमयू ट्रामा सेंटर में 460 बेड है और बेड फुल हो जाने के कारण मरीज को भर्ती करने में समस्या आती हैं. हालांकि अस्पताल में जितने भी मरीज आते हैं उन्हें अच्छे से देखा जाता है. हमारी और डॉक्टरों की यही कोशिश होती है कि जितने भी मरीज हैं उन्हें बेहतर से बेहतर चिकित्सा सुविधा मिले. कर्मचारियों के व्यवहार के लिए कई बार मीटिंग भी होती है जिस पर खुद कुलपति कर्मचारियों से बातचीत करते हैं और उन्हें मरीजों और तीमारदारों के साथ कायदे से बात करने के लिए कहते हैं. हालांकि इस पर यह भी नियम है कि अगर कोई कर्मचारी की शिकायत आती है तो उस पर कड़ी कार्रवाई होगी.

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