आगरा: जिले के फतेहपुर सीकरी में बुलन्द दरवाजा जैसी प्रसिद्ध इमारत से महज आठ किलोमीटर दूर एक गांव है दूरा, जिसे पूर्व में दुर्वासागण नाम से भी जाना जाता था. इस गांव के करीब एक तिहाई युवा अपने परिवार को छोड़कर विदेश के हर कोने में जाकर अपनी कला का लोहा मनवा चुके हैं, लेकिन यहां के स्थानीय कारीगर और उनके परिवार के लोग सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.
कारीगरी के लिए है मशहूर
इस गांव के लोग देश-विदेश में संगमरमर और गुलाबी पत्थर से मंदिर में मूर्तियां बनाते हैं. यहां के युवा इतने कुशल कारीगर हैं कि अपनी कारीगरी का लोहा मनवा चुके हैं. इन कारीगरों ने देश के हर प्रांत में कारीगरी का काम किया है. बीएसपी सरकार में लखनऊ अम्बेडकर पार्क में जो हाथी बने थे, वो भी इसी गांव के कारीगरों द्वारा ही बनाए गए थे. मंदिर और मूर्तियां बनाने में गांव के कारीगर दूर-दूर तक प्रसिद्ध हैं.
सुविधाओं के लिए तरस रहा परिवार
यहां के कारीगरों और उनके परिवार असुविधाओं की मार झेल रहे हैं. यहां पर आज भी गांव की महिलाओं को दूर से पानी भरकर लाना पड़ता है. शाम 5 बजे के बाद गांव में आने जाने के लिए कोई साधन भी नहीं है, जिसके कारण देरी से आने वाले गांववासियों को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यह गांव मूल सुविधाओं से आज भी बहुत पीछे है. गांववासियों ने सरकार से गुहार लगाई है. इनका कहना है कि इस बारे में उन्होंने कई बार लिखित में अवगत भी कराया है, कोई सुनवाई नहीं होती है.