आगरा: घड़ियालों का घर कही जाने वाली चंबल नदी में इन दिनों कछुओं के संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है. चंबल नदी में कई प्रजाति के कछुए पाए जाते हैं. इनमें विलुप्तप्राय सॉल प्रजाति के कछुए भी शामिल हैं. जो अब सिर्फ चंबल में ही पाए जाते हैं. चंबल नदी में 500 मादाएं प्रजनन कर रही हैं. कोरोना काल में चंबल में मौजूद 10 प्रजाति के कछुओं की रिकॉर्ड नेस्टिंग हुई थी. हैचिंग में जन्मे 5,000 बच्चे चंबल की गोद में पहुंच गए हैं. बाह क्षेत्र में वन विभाग और टर्टल सर्वाइवल एलायंस पिछले 11 साल से चंबल में कछुओं के संरक्षण पर काम कर रहे हैं. जिसके सुखद परिणाम सामने आए हैं.
टर्टल सर्वाइवल एलायंस (टीएसए) के प्रोजेक्ट ऑफीसर पवन पारीक ने बताया कि शोध में पाया गया कि कछुओं की सॉल प्रजाति सिर्फ चंबल में ही बची है. चंबल के अलावा गंगा नदी में सिर्फ 1-2 प्रतिशत आबादी बची है. हालांकि कछुओं की ढोर प्रजाति भी चंबल में बड़ी तादाद में है. चंबल में इस समय सॉल व ढोर के अलावा सुंदरी, मोरपंखी, कटहवा, भूतकाथा, स्योत्तर, पचेडा, पार्वती, पहाड़ी त्रिकुटकी कछुओं की कोरोना काल में रिकॉर्ड नेस्टिंग हुई है. हैचिंग पीरियड चल रहा है. बाह के रेंजर आरके सिंह राठौड़ ने बताया कि हैचिंग में जन्मे 5,000 कछुओं के बच्चे चंबल नदी की गोद में पहुंच गए हैं. हैचिंग को लेकर वन विभाग का अमला नियमित निगरानी कर रहा है.
गंगा की सफाई करेंगे चंबल के कछुए
नमामि गंगे अभियान के तहत चंबल के ढोर प्रजाति के कछुओं को गंगा की सफाई के लिए चुना गया है. कुकरैल प्रजनन केंद्र लखनऊ की टीम चंबल से ढोर प्रजाति के कछुओं के अण्डे ले गई थी. टर्टल सर्वाइवल एलायंस की टीम की देख-रेख में इनकी हैचिंग होगी और वयस्क होने पर चंबल नदी में छोड़े जाएंगे.
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गढायता कछुआ संरक्षण केंद्र में बनाई हैचरी
इटावा और बाह रेंज से नेस्टिंग सीजन में टर्टल सर्वाइवल एलायंस की टीम अण्डों को कलेक्ट कर गढायता कछुआ संरक्षण केन्द्र में बनाई गई हैचरी में रखती है. टीएसए के प्रोजेक्ट ऑफिसर पवन पारीक ने बताया कि वर्ष 2010 से उनकी टीम कछुओं के संरक्षण पर काम कर रही है. इस साल तीन सौ कछुए नेस्ट हैचरी में पैदा हुए थे. हैचिंग में जन्मे 5,000 बच्चों को दोनों रेंजों के जिन घाटों से अण्डे कलेक्ट किए थे, उन्हीं पर छोड़ दिया गया है.
जागरुकता से बदली सूरत, बढ़ी आबादी
बाढ़, नदी किनारे पर कछवारी, चोरी छिपे होने वाले खनन और मछली पकड़ने को डाले गये जाल में फंसकर होने वाली मौत से कछुओं की आबादी तेजी से घटी थी. वन विभाग के साथ टीएसए के जागरुकता अभियान से हाल बदले हैं. नेस्टिंग से लेकर हैचिंग सीजन तक अण्डों की रखवाली से भी प्रजनन का ग्राफ बढ़ा है.
मांस और औषधीय गुणों के लिए होती है तस्करी
कछुए के मांस और उसमें मौजूद औषधीय गुणों के कारण बिहार, बंगाल के रास्ते विदेशों तक उनकी तस्करी होती है. चंबल से वाया कानपुर होने वाली तस्करी को इटावा में पिछले दो सालों में पकड़े जाने से कुछ हद तक अंकुश लगा है. रेंजर आरके सिंह राठौड़ ने बताया कि बाह रेंज में तस्करी को कड़ाई से रोका गया है. क्षेत्र में कोई तस्करी जैसी सूचना नहीं मिलती है.