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सात हजार साल पहले आदिमानवों ने बनाई थी रॉक पेंटिंग, पर अब सहेजेगा कौन - fatehpur sikri upright man history

फतेहपुर सीकरी के आसपास अरावली की पहाड़ियों और जंगलों में आज से सात हजार साल पहले आदि मानव रहते थे. इसका प्रमाण अरावली की पहाड़ियों पर बने शिला चित्र (रॉक पेंटिंग) और गुफाएं हैं. वक्त बीतता गया... और ये धरोहरें नष्ट होती गईं... आज इन धरोहरों को सहेजने की जरूरत हैं, लेकिन सवाल उठता है कि आखिर इन्हें सहेजेगा कौन...

history of first capital of mughal empire
फतेहपुर सीकरी रॉक पेंटिंग स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Jan 4, 2021, 7:58 PM IST

आगरा : दुनिया फतेहपुर सीकरी को मुगलिया सल्तनत की पहली राजधानी के नाम से जानती है. हर दिन देश-विदेश से सैलानी यहां बुलंद दरवाजा, अकबर के बनवाए महल और किला देखने आते हैं. मगर, यहां का इतिहास आदिकाल के समय का रहा है. फतेहपुर सीकरी के आसपास अरावली की पहाड़ियों और जंगलों में आज से सात हजार साल पहले आदिमानव रहते थे. इसका प्रमाण मदनपुरा, पतसाल, रसूलपुर, जाजोरी और चुरियारी गांव में मौजूद अरावली की पहाड़ियों पर बने शिला चित्र (रॉक पेंटिंग) और गुफाएं हैं. रॉक पेंटिंग का हजारों साल बाद भी रंग फीका नहीं पड़ा है.

history of first capital of mughal empire
बुलंद दरवाजा.

अवैध खनन से रॉक शेल्टर्स की अनमोल धरोहर नष्ट

रॉक आर्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया की नजर मुगलों की राजधानी रहे फतेहपुर सीकरी के आसपास मौजूद अरावली की पर्वत श्रृंखला में छिपे हजारों साल पुराने इतिहास पर पड़ी. इसके सचिव पुरातत्वविद डॉक्टर गिरिजा कुमार ने 80 के दशक में फतेहपुर सीकरी के आसपास रसूलपुर में 12, मदनपुरा में तीन, जादोली में 8 और 5 साल में 4 रॉक शेल्टर की खोज की थी. उस समय की रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि अवैध खनन से रॉक शेल्टर्स को बहुत क्षति पहुंची है. अवैध खनन से अनमोल धरोहर नष्ट हो रही हैं. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इन रॉक शेल्टर्स के आसपास खनन करने पर रोक लगा दी थी.

स्पेशल रिपोर्ट...

क्या कहते हैं इतिहासकार

इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने अपनी पुस्तक 'तवारीख-ए-आगरा' में फतेहपुर सीकरी के आस-पास के गांव में मौजूद अरावली की पर्वत श्रृंखला में बने दुर्लभ शिला चित्र और इतिहास के बारे में भी लिखा है. इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' का कहना है कि पतसाल, मदनपुरा, रसूलपुर और अन्य गांव में मिली रॉक पेंटिंग में पेड़-पौधे, पशु, समूह नृत्य, हथियारों, हिरण, दंतीला हाथी, नीलगाय और जंगली जानवरों की रॉक पेंटिंग मिली हैं. अनुमान है कि आदिमानव एक-दूसरे से संवाद के लिए इन रॉक पेंटिंग का इस्तेमाल किए होंगे, क्योंकि उस समय संवाद की भाषा साइन लैंग्वेज ही थी. इसके साथ ही इन रॉक पेंटिंग से उस क्षेत्र में पाए जाने वाले जंगली जानवर और वनस्पतियों की जानकारी होती थी.

history of first capital of mughal empire
चट्टानों पर बनीं संरचनाएं.

पर्यावरणविद ने की शिला चित्र के संरक्षण की मांग

पर्यावरणविद डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य का कहना है, 'फतेहपुर सीकरी के पास पहाड़ियों पर बनी शिला चित्र के बारे में मुझे क्लीनिक पर आने वाले ग्रामीण मरीजों ने बताया था. मैं फतेहपुर सीकरी पहुंचा तो सबसे पहले रसूलपुर, मदनपुरा और पतसाल गांवों में मौजूद पहाड़ों पर गया. वहां पर मुझे पहाड़ पर तमाम पेंटिंग मिलीं. हिरण का शिला चित्र बहुत फेमस है. यहां के शिला चित्रों की रिपोर्ट बनाई और एएसआई के पूर्व अधिकारियों से बातचीत की. इसके बाद मैं पर्यटन और संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल से मिलकर उन्हें सभी दस्तावेज दिए और शिला चित्रों को संरक्षित करने की मांग की, जिस पर उन्होंने इन शिला चित्रों को संरक्षित करने के लिए एएसआई के अधिकारियों को निर्देश दिए.'

'40 साल पहले पटल पर आईं थी गुफाएं व शिला चित्र'

वरिष्ठ टूरिस्ट गाइड शमशुद्दीन का कहना है कि मदनपुरा की गुफाएं और शिला चित्र आज से 40 साल पहले पटल पर आईं थी. तब हमने शिला चित्रों के रखरखाव की मांग की थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ. अगर शिला चित्रों और गुफाओं का संरक्षण किया जाए तो आगरा में पर्यटकों के लिए एक नया पर्यटन स्थल बन सकता है, जो वहां के लोगों के लिए रोजगार देगा. वहां पर विकास भी होगा.

history of first capital of mughal empire
चट्टानों पर बनीं संरचनाएं.

'मदनपुरा की गुफाओं में निवास करते थे आदिमानव'

इतिहासकार राज किशोर 'राजे' का कहना है कि फतेहपुर सीकरी के पास गांव पतसाल में लाल रंग से हिरण का एक शिला चित्र है. आश्चर्य की बात यह है कि 7 हजार साल में भी इस शिला चित्र का रंग फीका नहीं पड़ा है. यह शिला चित्र बहुत ही सुंदर है. इसे गौर से देखने पर इसमें हिरण के दौड़ने और उसकी मांसपेशियां भी स्पष्ट दिखाई देती हैं. रसूलपुर में कुछ प्यालियां बनी हुई हैं. मदनपुरा में कुछ गुफाएं हैं. जिनमें आदिमानव निवास करता था. गुफाओं की बनावट ऐसी है कि, उसमें जंगली और अन्य जानवर नहीं जा सकते थे.

'प्रस्ताव बनाकर भेजा एएसआई मुख्यालय'

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) विभाग के आगरा सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार का कहना है कि फतेहपुर सीकरी के पास गांव रसूलपुर, पतसाल और मदनपुरा सहित अन्य गांव में अरावली की पहाड़ियों में रॉक पेंटिंग (शिला चित्र) सन् 1959 में रिपोर्ट हुए. इसके बाद उन पर कई बार काम हुआ. कई रिसर्च हुए. कई रिसर्च आर्टिकल भी उन पर पब्लिश हैं. उन्होंने बताया कि जहां पर अरावली की पहाड़ियों में रॉक पेंटिंग और गुफाएं मिली हैं, वहां पर 10 किलोमीटर की परिधि में सुप्रीम कोर्ट की ओर से खनन बंद है. अभी प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है. इसके तहत चाहे राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, इन गुफाओं और रॉक पेंटिंग को संरक्षण में ले ले, जिससे इनको संरक्षित किया जा सके.

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अरावली की पहाड़ियां.

रोजगार के बनेंगे नए अवसर

एएसआई ने फतेहपुर सीकरी के आसपास मिलीं दुर्लभ गुप्त काल से सात हजार साल पुरानी 'रॉक पेंटिंग' और गुफाओं के संरक्षण का प्रस्ताव तैयार किया है, जिससे इतिहास को सहेजा जा सके. आगरा में नए पर्यटन स्थल से जहां पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा तो वहीं रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे.

आगरा : दुनिया फतेहपुर सीकरी को मुगलिया सल्तनत की पहली राजधानी के नाम से जानती है. हर दिन देश-विदेश से सैलानी यहां बुलंद दरवाजा, अकबर के बनवाए महल और किला देखने आते हैं. मगर, यहां का इतिहास आदिकाल के समय का रहा है. फतेहपुर सीकरी के आसपास अरावली की पहाड़ियों और जंगलों में आज से सात हजार साल पहले आदिमानव रहते थे. इसका प्रमाण मदनपुरा, पतसाल, रसूलपुर, जाजोरी और चुरियारी गांव में मौजूद अरावली की पहाड़ियों पर बने शिला चित्र (रॉक पेंटिंग) और गुफाएं हैं. रॉक पेंटिंग का हजारों साल बाद भी रंग फीका नहीं पड़ा है.

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बुलंद दरवाजा.

अवैध खनन से रॉक शेल्टर्स की अनमोल धरोहर नष्ट

रॉक आर्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया की नजर मुगलों की राजधानी रहे फतेहपुर सीकरी के आसपास मौजूद अरावली की पर्वत श्रृंखला में छिपे हजारों साल पुराने इतिहास पर पड़ी. इसके सचिव पुरातत्वविद डॉक्टर गिरिजा कुमार ने 80 के दशक में फतेहपुर सीकरी के आसपास रसूलपुर में 12, मदनपुरा में तीन, जादोली में 8 और 5 साल में 4 रॉक शेल्टर की खोज की थी. उस समय की रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि अवैध खनन से रॉक शेल्टर्स को बहुत क्षति पहुंची है. अवैध खनन से अनमोल धरोहर नष्ट हो रही हैं. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इन रॉक शेल्टर्स के आसपास खनन करने पर रोक लगा दी थी.

स्पेशल रिपोर्ट...

क्या कहते हैं इतिहासकार

इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने अपनी पुस्तक 'तवारीख-ए-आगरा' में फतेहपुर सीकरी के आस-पास के गांव में मौजूद अरावली की पर्वत श्रृंखला में बने दुर्लभ शिला चित्र और इतिहास के बारे में भी लिखा है. इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' का कहना है कि पतसाल, मदनपुरा, रसूलपुर और अन्य गांव में मिली रॉक पेंटिंग में पेड़-पौधे, पशु, समूह नृत्य, हथियारों, हिरण, दंतीला हाथी, नीलगाय और जंगली जानवरों की रॉक पेंटिंग मिली हैं. अनुमान है कि आदिमानव एक-दूसरे से संवाद के लिए इन रॉक पेंटिंग का इस्तेमाल किए होंगे, क्योंकि उस समय संवाद की भाषा साइन लैंग्वेज ही थी. इसके साथ ही इन रॉक पेंटिंग से उस क्षेत्र में पाए जाने वाले जंगली जानवर और वनस्पतियों की जानकारी होती थी.

history of first capital of mughal empire
चट्टानों पर बनीं संरचनाएं.

पर्यावरणविद ने की शिला चित्र के संरक्षण की मांग

पर्यावरणविद डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य का कहना है, 'फतेहपुर सीकरी के पास पहाड़ियों पर बनी शिला चित्र के बारे में मुझे क्लीनिक पर आने वाले ग्रामीण मरीजों ने बताया था. मैं फतेहपुर सीकरी पहुंचा तो सबसे पहले रसूलपुर, मदनपुरा और पतसाल गांवों में मौजूद पहाड़ों पर गया. वहां पर मुझे पहाड़ पर तमाम पेंटिंग मिलीं. हिरण का शिला चित्र बहुत फेमस है. यहां के शिला चित्रों की रिपोर्ट बनाई और एएसआई के पूर्व अधिकारियों से बातचीत की. इसके बाद मैं पर्यटन और संस्कृति मंत्री प्रहलाद पटेल से मिलकर उन्हें सभी दस्तावेज दिए और शिला चित्रों को संरक्षित करने की मांग की, जिस पर उन्होंने इन शिला चित्रों को संरक्षित करने के लिए एएसआई के अधिकारियों को निर्देश दिए.'

'40 साल पहले पटल पर आईं थी गुफाएं व शिला चित्र'

वरिष्ठ टूरिस्ट गाइड शमशुद्दीन का कहना है कि मदनपुरा की गुफाएं और शिला चित्र आज से 40 साल पहले पटल पर आईं थी. तब हमने शिला चित्रों के रखरखाव की मांग की थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ. अगर शिला चित्रों और गुफाओं का संरक्षण किया जाए तो आगरा में पर्यटकों के लिए एक नया पर्यटन स्थल बन सकता है, जो वहां के लोगों के लिए रोजगार देगा. वहां पर विकास भी होगा.

history of first capital of mughal empire
चट्टानों पर बनीं संरचनाएं.

'मदनपुरा की गुफाओं में निवास करते थे आदिमानव'

इतिहासकार राज किशोर 'राजे' का कहना है कि फतेहपुर सीकरी के पास गांव पतसाल में लाल रंग से हिरण का एक शिला चित्र है. आश्चर्य की बात यह है कि 7 हजार साल में भी इस शिला चित्र का रंग फीका नहीं पड़ा है. यह शिला चित्र बहुत ही सुंदर है. इसे गौर से देखने पर इसमें हिरण के दौड़ने और उसकी मांसपेशियां भी स्पष्ट दिखाई देती हैं. रसूलपुर में कुछ प्यालियां बनी हुई हैं. मदनपुरा में कुछ गुफाएं हैं. जिनमें आदिमानव निवास करता था. गुफाओं की बनावट ऐसी है कि, उसमें जंगली और अन्य जानवर नहीं जा सकते थे.

'प्रस्ताव बनाकर भेजा एएसआई मुख्यालय'

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) विभाग के आगरा सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार का कहना है कि फतेहपुर सीकरी के पास गांव रसूलपुर, पतसाल और मदनपुरा सहित अन्य गांव में अरावली की पहाड़ियों में रॉक पेंटिंग (शिला चित्र) सन् 1959 में रिपोर्ट हुए. इसके बाद उन पर कई बार काम हुआ. कई रिसर्च हुए. कई रिसर्च आर्टिकल भी उन पर पब्लिश हैं. उन्होंने बताया कि जहां पर अरावली की पहाड़ियों में रॉक पेंटिंग और गुफाएं मिली हैं, वहां पर 10 किलोमीटर की परिधि में सुप्रीम कोर्ट की ओर से खनन बंद है. अभी प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है. इसके तहत चाहे राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, इन गुफाओं और रॉक पेंटिंग को संरक्षण में ले ले, जिससे इनको संरक्षित किया जा सके.

history of first capital of mughal empire
अरावली की पहाड़ियां.

रोजगार के बनेंगे नए अवसर

एएसआई ने फतेहपुर सीकरी के आसपास मिलीं दुर्लभ गुप्त काल से सात हजार साल पुरानी 'रॉक पेंटिंग' और गुफाओं के संरक्षण का प्रस्ताव तैयार किया है, जिससे इतिहास को सहेजा जा सके. आगरा में नए पर्यटन स्थल से जहां पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा तो वहीं रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे.

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