आगरा: सावन माह में शिव की आराधना का बड़ा महत्व है. सावन के मौके पर श्रद्धालु अपनी आस्था के अनुसार भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना करते हैं. सुबह से ही शिवालयों में श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी कतारें लग जाती है.
आज बात होगी आगरा के सिकंदरा में यमुना किनारे स्थित कैलाश महादेव मंदिर की. जोकि देश में एक मात्र मंदिर है. जहां पर दो शिवलिंग स्थापित हैं. पौराणिक कथा के मुताबिक, त्रेता युग में भगवान परशुराम और उनके पिता ऋषि जमदग्नि ने इन शिवलिंग को कैलाश पर्वत से लाकर यहां पर स्थापित किया था. तभी से यहां पर यह विराजमान हैं.
बेहद सिद्ध मंदिर है कैलाश धाम
ये मंदिर बहुत सिद्ध माना जाता है. मान्यता है कि यहां जो भी मुराद सच्चे दिल से मांगी जाती है, वो जरूर पूरी होती है. हर सोमवार को कैलाश धाम में भक्तों का जमावड़ा लगता है. वहीं सावन के दिनों में तो दूर-दूर से भक्त यहां आकर महादेव की पूजा अर्चना करते हैं. तमाम कांवड़िए भी यहां महादेव का जलाभिषेक करते हैं.
हजारों साल पुराने हैं शिवलिंग
कैलाश मंदिर के महंत गौरव गिरि का कहना है कि यहां पर हजारों साल से एक ही जिलहिरी में दो शिवलिंग विराजमान हैं. विश्व में कहीं पर एक ही जिलहिरी में दो शिवलिंग नहीं मिलेंगे. यह दोनों ही शिवलिंग भगवान परशुराम और उनके पिता जमदग्नि के हाथों स्थापित हैं. आज से हजारों साल पहले आगरा में रुनकता के पास रेणुका क्षेत्र था. यहां पर मुनि जमदग्नि, उनकी धर्मपत्नी रेणुका और पुत्र परशुराम रहते थे. उस आश्रम को रेणुका कहा जाता था. रेणुकाधाम का वर्णन श्रीमद् भागवत गीता में भी है.
कैलाश मंदिर के महंत गौरव गिरि ने बताया कि ऋषि जमदग्नि और भगवान परशुराम रेणुका क्षेत्र से कैलाश पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या करने जाते थे. तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए. भगवान शिव ने पिता-पुत्र से वरदान मांगने के लिए कहा. इस पर पिता-पुत्र ने भगवान शिव से कहा कि रेणुका धाम से यहां पर आने में समय बहुत बर्बाद होता है. परशुराम ने कहा कि, मेरी मां रेणुका भी आपकी भक्त हैं. मगर, वे आने जाने में असमर्थ रहती हैं. इसलिए आप हमारे स्थान पर हमारे साथ चलें. भगवान शिव ने कहा कि, कैलाश के कण-कण में मैं हूं. आप किसी भी कण को ले जाएं. मैं उसी कण में विराजमान हो जाउंगा. इस पर भगवान शिव के वरदान पर भगवान परशुराम और उनके पिता जमदग्नि मुनि कैलाश पर्वत से दो शिवलिंग लेकर अपने धाम रुनकता क्षेत्र के लिए चल दिए. रेणुका धाम से 4 किलोमीटर दूर यमुना किनारे तभी संध्या वंदन का समय हो गया. इस पर पिता-पुत्र ने यमुना किनारे शिवलिंग रखे. यमुना में स्नान किया. पूजा-अर्चना की. इसके बाद जब शिवलिंग उठाने का प्रयास किया. तभी आकाशवाणी हुई. कि, मैं अचलेश्वर हूं. मुझे यहीं पर स्थापित कर दिया जाए. तभी से यह जुड़वा ज्योतिर्लिंग यहां विराजमान हैं.
मनोकामना होती है पूर्ण
श्रद्धालु सुबोध अग्रवाल ने बताया कि वे पिछले 10 सालों से भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने आ रहे हैं. यहां वे पूजा-पाठ के साथ जो भी मांगते हैं. उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है. फिरोजाबाद से आईं श्रद्धालु सुरेखा बतातीं है कि मंदिर की मान्यता के बारे उन्होंने सुना था. इसलिए वह यहां पर आई हैं. आज उन्हें भगवान शिव के यहां आकर दर्शन करने का सौभाग्य मिला. जिससे उनका मन बड़ा प्रसन्न है.
सब पर रहती है बाबा की कृपा
श्रद्धालु दिनेश कहा कहना है कि, वे पिछले कई सालों से यहां आते हैं. यहां आने पर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यहां पर पूजा करने से जहां सब दुख दूर होते हैं. मन को शांति भी मिलती है. श्रद्धालु विक्रम सिंह का कहना है कि, वे पिछले 3-4 सालों से यहां आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि भोलेबाबा की ऐसी कृपा उनपर है कि वे सप्ताह में 2-3 बार यहां दर्शन करते हैं.
हर सोमवार उमड़ती है भारी भीड़
आगरा-दिल्ली नेशनल हाईवे पर सिकंदरा से 3 किलोमीटर दूर यमुना किनारे कैलाश मंदिर है. यहां पर हर सोमवार को भारी भीड़ उमड़ती है. आगरा और उसके आसपास के जिलों से भी श्रद्धालु यहां बड़ी संख्या में दर्शन-पूजन करने आते हैं. सावन मास में इतनी भीड़ होती है कि आगरा-दिल्ली नेशनल हाइवे तक बंद करना पड़ता है.
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