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आगरा: सावन में नहीं पड़ते झूले, कजरी भी भूले - आगरा समाचारा

आगरा में सावन का महीना शिव भक्‍तों में विशेष उत्‍साह लेकर आता है. चारों ओर भक्ति का माहौल होता है. सावन के महीने में पेड़ों की शाखाओं पर झूले डाले जाते हैं और सखी संग हंसी-ठिठोली होती थी, लेकिन आधुनिकता और विकास की दौड़ में अब सावन के गीत नहीं सुनाई देते हैं.

सावन में अब नहीं पड़ते है झूले
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Published : Jul 20, 2019, 9:00 PM IST

आगरा: उत्तर प्रदेश के आगरा में बारिश के बाद चारों ओर फैली हरियाली सावन आने का एहसास करा रही है, लेकिन विकास की दौड़ में मन का सावन सूना ही रहता है. सावन महीने में पेड़ाें पर पड़े झूलों पर मस्ती करती सखी और बच्चों की टोलियां अब नजर नहीं आती हैं. इसके साथ ही सावन के गीत और कजरी भी सुनाई नहीं देते हैं.

सावन में अब नहीं पड़ते हैं झूले.
हिंदू धर्म में सावन का विशेष महत्व
हिंदू धर्म के 12 महीनों में सावन का माह अपनी विशेष पहचान रखता है. इस माह में चारों ओर हरियाली छाई रहती है. सावन में होने वाली बारिश से वातावरण ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने मौन व्रत तोड़कर अभी बोलना आरंभ किया हो. गांवों में पेड़ों पर झूला डालकर लोग झूले का आनंद भी उठाते हैं.
विकास की दौड़ में लुप्त हो रहीं परंपराएं
सावन में पहले के समय में स्त्रियां और युवतियां अपने मन की बात गीतों के माध्यम से कहती थीं. 'परदेश गए पिया' का सावन में इंतजार गीतों से बयां करती थीं, लेकिन समय बदल चुका है, आजकल के लोगों को मोबाइल और लैपटॉप से ही फुरसत नहीं है. सावन में जब पानी बरसता है तो विरह की आग और प्रज्जवलित हो जाती है. इसका कई कवियों ने अच्छा चित्रण किया है, लेकिन मौजूदा समय में सिर्फ औपचारिकता भर रह गई है. परंपरा खोती दिखाई दे रही है. अब तो सिर्फ बच्चे ही किसी 1-2 गांव में झूला झूलते दिखाई देते हैं.

सावन में झूलों पर मस्ती करने वाली टोलियां नहीं दिखाई देती हैं. समय के साथ-साथ परंपरा में भी बदलाव आ रहा है. परंपरा को सहेजने के लिए झूलनोत्सव आदि भी नहीं आयोजित किया जाता. विकास की दौड़ में परंपराएं छूटती दिखाई दे रही हैं.

-शीला देवी, ग्रामीण

आगरा: उत्तर प्रदेश के आगरा में बारिश के बाद चारों ओर फैली हरियाली सावन आने का एहसास करा रही है, लेकिन विकास की दौड़ में मन का सावन सूना ही रहता है. सावन महीने में पेड़ाें पर पड़े झूलों पर मस्ती करती सखी और बच्चों की टोलियां अब नजर नहीं आती हैं. इसके साथ ही सावन के गीत और कजरी भी सुनाई नहीं देते हैं.

सावन में अब नहीं पड़ते हैं झूले.
हिंदू धर्म में सावन का विशेष महत्व
हिंदू धर्म के 12 महीनों में सावन का माह अपनी विशेष पहचान रखता है. इस माह में चारों ओर हरियाली छाई रहती है. सावन में होने वाली बारिश से वातावरण ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने मौन व्रत तोड़कर अभी बोलना आरंभ किया हो. गांवों में पेड़ों पर झूला डालकर लोग झूले का आनंद भी उठाते हैं.
विकास की दौड़ में लुप्त हो रहीं परंपराएं
सावन में पहले के समय में स्त्रियां और युवतियां अपने मन की बात गीतों के माध्यम से कहती थीं. 'परदेश गए पिया' का सावन में इंतजार गीतों से बयां करती थीं, लेकिन समय बदल चुका है, आजकल के लोगों को मोबाइल और लैपटॉप से ही फुरसत नहीं है. सावन में जब पानी बरसता है तो विरह की आग और प्रज्जवलित हो जाती है. इसका कई कवियों ने अच्छा चित्रण किया है, लेकिन मौजूदा समय में सिर्फ औपचारिकता भर रह गई है. परंपरा खोती दिखाई दे रही है. अब तो सिर्फ बच्चे ही किसी 1-2 गांव में झूला झूलते दिखाई देते हैं.

सावन में झूलों पर मस्ती करने वाली टोलियां नहीं दिखाई देती हैं. समय के साथ-साथ परंपरा में भी बदलाव आ रहा है. परंपरा को सहेजने के लिए झूलनोत्सव आदि भी नहीं आयोजित किया जाता. विकास की दौड़ में परंपराएं छूटती दिखाई दे रही हैं.

-शीला देवी, ग्रामीण

Intro:जनपद आगरा के फतेहाबाद शमशाबाद में बारिश के बाद चारों ओर फैली हरियाली सावन आने का एहसास तो कराती है, लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध व विकास की दौड़ में मन का सावन सूना ही रहता है। सावन में गांव में पेड़ाें की शाखाओं पर पड़े झूलों पर मस्ती करती सखी सहेलियों और बच्चों की टोलियां अब नजर नहीं आती हैं। गांव में इक्का-दुक्का स्थानों पर ही झूला डाला जाता है, लेकिन सावन के वह गीत व कजरी जो पहले सखियां गाती थीं, अब वह नहीं सुनाई Body:सावन में नहीं पड़ते झूले, कजरी भी भूले

स्टोरी :- जनपद आगरा के फतेहाबाद शमशाबाद में बारिश के बाद चारों ओर फैली हरियाली सावन आने का एहसास तो कराती है, लेकिन आधुनिकता की चकाचौंध व विकास की दौड़ में मन का सावन सूना ही रहता है। सावन में गांव में पेड़ाें की शाखाओं पर पड़े झूलों पर मस्ती करती सखी सहेलियों और बच्चों की टोलियां अब नजर नहीं आती हैं। गांव में इक्का-दुक्का स्थानों पर ही झूला डाला जाता है, लेकिन सावन के वह गीत व कजरी जो पहले सखियां गाती थीं, अब वह नहीं सुनाई देतीं। आषाढ़, सावन, भादों और क्वार चार माह चौमासा कहे जाते हैं। पुरानी मान्यताओं के अनुसार चौमासा में संत भी एक ही स्थान पर प्रवास करते हैं। इस माह में यात्रा भी वर्जित मानी जाती है। इन सब में सावन का विशेष महत्व है। सावन को समृद्धि माह माना गया है। इस माह में पड़ने वाले कई त्योहार हमारी संस्कृति की विशिष्टता को पराकाष्ठा पर पहुंचा देते हैं।


हिंदू धर्म में सावन का विशेष महत्व

: हिंदू धर्म के बारह महीनों में सावन का माह अपनी विशेष पहचान रखता है। इस माह में चारों ओर हरियाली छाई रहती है। सावन में होने वाली बारिश में अनेक प्रकार के जीव व जंतु बाहर निकलते हैं। इस समय वातावरण ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने मौन व्रत तोड़कर अभी बोलना आरंभ किया हो। गांवों में पेड़ों पर झूला डालकर लोग झूले का आनंद भी उठाते हैं।

: विकास की दौड़ में लुप्त हो रहीं परंपराएं
सावन के महीने के बारे में घड़ी थाना निवासी संतोष कहते हैं कि पहले के समय में स्त्रियां व युवतियां अपने मन की बात गीतों के माध्यम से कहती थीं। परदेश गए पिया का सावन में इंतजार गीतों से बयां करती थीं, लेकिन समय बदल चुका है, आजकल के लोगों को मोबाइल व लैपटॉप से ही फुरसत नहीं है। जगदीश ने बताया कि सावन में जब पानी बरसता है तो विरह की आग और प्रज्जवलित हो जाती है। इसका कई कवियों ने अच्छा चित्रण किया है। लेकिन मौजूदा समय में सिर्फ औपचारिकता भर रह गई है। परंपरा खोती दिखाई दे रही है। अब तो सिर्फ बच्चे ही किसी 1-2 गांव में झूला झूलते दिखाई देते हैं। शीला देवी ने कहा कि सावन में झूलों पर मस्ती करने वाली टोलियां नहीं दिखाई देती हैं। समय के साथ-साथ परंपरा में भी बदलाव आ रहा है। परंपरा को सहेजने के लिए झूलनोत्सव आदि भी नहीं आयोजित किया जाता। विकास की दौड़ में परंपराएं छूटती दिखाई दे रही हैं।Conclusion:1- शीला देवी
2- जगदीश प्रसाद
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