आगरा: कोविड-19 का बच्चों पर काफी असर हो रहा है. बच्चे मोटापा और चिड़चिड़ेपन का शिकार हो रहे हैं. घरों में बंद रहने से बच्चों की शारीरिक और मानसिक वृद्धि, मूड डिसआर्डर भी बढ़ा है. इसको लेकर पीडियाट्रिक्स भी चिंतित हैं. ऐसे तमाम बिंदुओं पर शनिवार को देशभर से आए पीडियाट्रिक्स ने ताजनगरी में चर्चा की. पीडियाट्रिक्स ने इंडियन एकेडमी ऑफ पीडिएट्रिक (आईएपी) और ग्रोथ डेवलपमेंट एंड बिहेवियर पीडिएट्रिक की दो दिवसीय GDBPCON-2021 ने मंथन कर रहे हैं कि कोविड-19 से बच्चों पर किस तरह का असर हो रहा है और इसका क्या समाधान है, इस पर मंथन किया जा रहा है.
बता दें कि, इंडियन एकेडमी ऑफ पीडिएट्रिक (आईएपी) और ग्रोथ डेवलपमेंट एंड बिहेवियर पीडिएट्रिक की दो दिवसीय GDBPCON-2021 में वर्कशॉप का आयोजन किया गया. पहले दिन अभिभावक, शिक्षक, नर्स और डॉक्टर्स के शामिल हुए, जिसमें विशेषज्ञों ने अपनी रिसर्च को भी साझा किया और सभी से उनके अनुभव जाने. एमआरयू कांफ्रेंस के उद्घाटन समारोह में आए मुख्य अतिथि यूपी सरकार के डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन डॉ. एनसी प्रजापति ने कहा कि प्रदेश के हर मेडिकल कॉलेज में अब मल्टी डिस्पिलनरी रिसर्च यूनिट (एमआरयू) स्थापित की जाएंगी. अभी कानपुर और नोएडा में एमआरयू शुरू की जा चुकी है. जिससे सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों को शोध करने में मदद मिलेगी. इसका लाभ अप्रत्यक्ष रूप से मरीजों को मिलेगा.
बच्चों की जिद पर नो टेंशन
महाराष्ट्र से आए वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सुचित ताम्बोली ने बताया कि कभी भी बच्चे की जिद को पूरा नहीं करें. यदि वो किसी बात को लेकर रो रहा है तो उसे रोने दें, वह कुछ देर बाद चुप हो जाएगा. बच्चों की जिद को लेकर के एक रिसर्च हुआ है, जिसे टाइम आफ टैक्निक कहते हैं. जिसमें यह सामने आया है कि जो बच्चे जिद्दी हैं वो सामान्य व्यवहार करने पर ठीक हो जाते हैं. इसलिए कभी भी बच्चों की जिद को लेकर टेंशन नहीं लेनी चाहिए कि हमारा बच्चा जिद्दी हो गया है. उसको आप सामान्य व्यवहार से बदल सकते हैं. इसको लेकर 500 बच्चों पर रिसर्च किया गया था, जिसमें 40% बच्चों में टाइम आफ टैक्निक से बदवाल आया है.
मोबाइल से रखे बच्चों को दूर
वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अजय श्रीवास्तव ने बताया कि, जीरो से 2 साल तक के बच्चे को कभी भी मोबाइल नहीं देना चाहिए. 2 साल से 5 साल तक के बच्चे को विशेष परिस्थिति आने पर ही कुछ समय के लिए मोबाइल देखने के लिए दें. यदि बच्चा खाना खा रहा है तो उसे कभी मोबाइल देखने के लिए नहीं दें क्योंकि, इससे बच्चे ओवरईटिंग का शिकार हो जाते हैं. उनका मोटापा बढ़ जाता है, इसका प्रतिकूल प्रभाव बच्चों के रेटिना पर भी पड़ता है. हमारी आपसे यही अपील रहती है कि आप बच्चे को कम से कम मोबाइल देखने दें. हो सके तो एक वक्त का खाना बच्चे के साथ बैठकर के जरूर खाएं.
बच्चों में आए व्यवहार को लेकर विशेषज्ञ चिंतित
आयोजन सचिव डॉ. अरुण जैन ने बताया कि, दो दिवसीय नेशनल कांफ्रेंस में देशभर के बाल रोग विशेषज्ञ आए हुए हैं. जो कोविड-19 के दौरान बच्चों पर हुए प्रतिकूल प्रभाव पर अपने-अपने अनुभव और रिसर्च को साझा कर रहे हैं. पहले दिन शनिवार को कॉन्फ्रेंस में अभिभावक, शिक्षक, नर्स और अन्य लोगों की वर्कशॉप हुई, जिसमें तमाम ऐसी चीजें सामने आई हैं. उनको लेकर डॉक्टर चिंतित हैं कि आगे भविष्य में किस तरह से बच्चों के व्यवहार बदलाव लाया जाए. कोविड-19 के दौरान दो साल से बच्चे घर में रहे हैं. इस दौरान भी उन्होंने घर का खाना नहीं खाया, जंक फूड खूब खाया गया है. इसी की वजह से बच्चों में मोटापा बढ़ा है. जंक फूड से बच्चों का वजन तो बढ़ गया लेकिन, वो अंदर से कुपोषण का शिकार हुए हैं. उन्होंने कहा कि यह गरीब घरों की बात नहीं है, आज बड़े-बड़े घरों के बच्चे भी कुपोषण का शिकार हैं जो चिंता का विषय है. हमने अभिभावकों को कहा है कि, वह बच्चों को ज्यादा से ज्यादा घर का बना हुआ खाना खिलाएं, डाइट चार्ट बनाएं, इसके साथ ही एक्सरसाइज भी कराएं. डाइट और एक्सरसाइज से ही बच्चे की ग्रोथ होगी.
छह साल पीछे चली गई बच्चों की क्षमता
वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप चावला ने बताया कि, कोविड-19 के 2 साल में बच्चों का जो अच्छा मानसिक और शारीरिक विकास होता है, वो हो नहीं पाया. इससे बच्चों की क्षमता (एफिशिएंसी) करीब 6 साल पीछे चली गई है. इस कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञ भी चिकित्सकों को यह बता रहे हैं कि ऐसे बच्चों के उपचार में हमें किन-किन सावधानी को बरतना है, क्या-क्या उपचार करने हैं, क्या व्यवस्था रखनी है. इसके साथ ही अभिभावक और शिक्षकों को भी हमने इसको लेकर टिप्स दिए हैं.
बच्चों के मेंटली डवलपमेंट पर पड़ा असर
दिल्ली एनसीआर से आईं वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ प्रियंका जैन ने बताया कि, कोविड-19 साल के दौरान बच्चों के डेवलपमेंट पर और ट्रीटमेंट पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. जो बच्चे पहले से मेंटली रिटारडेड थे उन्हें बेहतर उपचार नहीं मिला. हम एक साल में बच्चे का बेहतर डवलपमेंट कर सकते हैं लेकिन, कोविड की वजह से बच्चे की विशेष डायग्नोज हुई और ना ही उसके बिहेवियर चेंज पर कोई विशेष एहतियात बरती गई. इससे फिजिकल हेल्थ ही नहीं, मेंटली डवलपमेंट पर भी असर पड़ा है.