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जानिए आगरा के सबसे ऐतिहासिक ताजिये की खास बात, जिसे आज किया जायेगा सुपुर्द-ए-खाक - Shia Muslim Community

ताजनगरी आगरा के सभी ताजिये मंगलवार को न्यू आगरा स्थित कर्बला में सुपुर्द-ए-खाक होंगे. सबसे पहले पाय चौकी इमामबाड़े का ताजिया उठाया जाएगा. जुलूस में लोग काले कपड़े पहन कर इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयायियों की शहादत को याद करेंगे.

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आगरा का ताजिया
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Published : Aug 9, 2022, 3:15 PM IST

आगरा: जिले में मोहर्रम के पाक महीने के 10वें दिन ताजियेदारी की रस्म अदा होती हैं. इसके तहत फब्बारा स्थित कटरा दबकैयान पाय चौकी के इमामबाड़े में शहर का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक ताजिया रखा गया है. इसे देखने के लिए हजारों की भारी भीड़ जियारत करने पहुंचती हैं. इस मौके पर नई वक्फ कमेटी के उपाध्यक्ष शरीफ खान ने बताया कि, कटरा दबकैयान पाय चौकी के इमामबाड़े में रखे जाने वाला फूलों का ताजिया सबसे बड़ा हैं. यह फूलों का ताजिया 323 वर्ष पुराना है. जिसे हमारे पूर्वज रखते आ रहे हैं. साथ ही इसकी एक खासियत हैं. इसे सजाने के लिए फूल अजमेर से मंगाए जाते हैं. इसकी गुम्बद चांदी की होती है. वहीं, सुपुर्द-ए-खाक के जुलूस के लिए सबसे पहले पाय चौकी इमामबाड़े का सबसे बड़ा ताजिया उठता है. उसके बाद शहर के तमाम छोटे-बड़े ताजिये कर्बला के लिए कूच करते हैं. मोहर्रम के पाक माह में शहर में हजारों की संख्या में ताजिये रखे जाते हैं.

क्यों रखा जाता हैं ताजिया
मोहर्रम इस्लामिक वर्ष का पहला महीना होता है. इसे महीने की 10वीं तारीख को मनाया जाता है. इसे "आशूरा" भी कहा जाता है. इसे शिया मुस्लिम समुदाय के लोग गम के रूप में मनाते हैं. इस दिन इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयायियों की शहादत को याद किया जाता है. पूरी दुनियां के मुसलमान मुहर्रम की नौ और दस तारीख को रोजा रखते हैं और मस्जिदों और घरों में इबादत करते हैं.

वक्फ कमेटी के उपाध्यक्ष शरीफ खान ने दी जानकारी
कर्बला के युद्ध मे इमाम हुसैन का हुआ था कत्ल आज से लगभग 1400 साल पहले तारीक-ए-इस्लाम मे कर्बला की जंग हुई थी. यह जंग जुल्म के खिलाफ ,इंसाफ के लिए लड़ी गयी थीं. इस्लाम धर्म के पवित्र मदीना से कुछ दूर "शाम" में मुआविया नामक शासक का दौर था. मुआविया की मृत्यु के बाद शाही वारिस के रूप में यजीद की दुष्टता मौजूद थीं. वह शाम की गद्दी पर बैठाया गया. यजीद चाहता था कि, उसके गद्दी पर बैठने की घोषणा इमाम हुसैन करे.क्योंकि इमाम हुसैन पैगम्बर मोहम्मद साहब नवासे थे. शाम में इमाम हुसैन का प्रजा पर गहरा प्रभाव था. यजीद को इस्लामी शासक मानने से हजरत मोहम्मद के घराने ने साफ इंकार कर दिया था. इस बात से यजीद बेतहाशा नाराज था. इमाम हुसैन ने यजीद के जुल्मो को देख कर अपने नाना हजतर मोहम्मद साहब का शहर मदीना छोड़ने का फैसला ले लिया था.

इसे भी पढ़े-इमाम हुसैन की याद में मातम, पुराने लखनऊ में निकाला गया नवी मोहर्रम का जुलूस

इमाम हुसैन हमेशा के लिए जब मदीना छोड़ कर परिवार सहित इराक की ओर बढ़ने लगे तभी कर्बला शहर के पास यजीद की फौज ने उनके काफिले को घेर लिया. यजीद ने इमाम हुसैन के सामने शर्ते रखी. जिन्हें इमाम हुसैन ने मानने से इनकार कर दिया. शर्त न मानने पर यजीद ने इमाम हुसैन को युद्ध के लिए ललकारा. यजीद से बात करने के दौरान इमाम हुसैन इराक के रास्ते मे ही काफिले के साथ फुरात नदी के किनारे तंबू लगाकर ठहर गए. तंबू हटाने के लिए यजीद ने अपनी फौज को आदेश दिया.

इमाम जंग नहीं चाहते थे कि क्योंकि उनके काफिले में केवल 72 लोग थे. सात मोहर्रम में भीषण गर्मी के दौरान इमाम हुसैन के पास जितना भी राशन था, वह सब खत्म हो गया. इसके तहत 7 मोहर्रम से लेकर 10 तक इमाम हुसैन अपने अनुयायियों के साथ भूखे-प्यासे रहें. 10 मोहर्रम को इमाम हुसैन की तरफ से एक-एक कर अनुयायियों ने यजीद की फौज से लोहा लिया. लेकिन, सभी मारे गए. आखिरी में इमाम हुसैन दुपहर की नमाज अदा करने के बाद कर्बला के युद्ध मे कूद पड़े. जहां इमाम हुसैन शहादत को प्राप्त हुए. इस जंग में इमाम हुसैन के एक बेटे जैनुलआबेदिन जिंदा बचे क्योंकि 10 मोहर्रम पर वह बीमार थे. उन्हीं से महोम्मद साहब की पीढ़ी आगे चली. इसी कुर्बानी की याद में मोहर्रम मनाया जाता है. इसी कारण मोहर्रम का माह गम का माह भी कहा जाता है.
ताजनगरी आगरा के सभी ताजिये मंगलवार को न्यू आगरा स्थित कर्बला में सुपुर्द-ए-खाक होंगे. सबसे पहले पाय चौकी इमामबाड़े का ताजिया उठाया जाएगा. जुलूस में लोग काले कपड़े पहन कर इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयायियों की शहादत को याद करेंगे. इसके अलावा ताजिये आगरा कैंट और बिल्लोचपुरा कर्बला में भी दफनाए जाएंगे.

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आगरा: जिले में मोहर्रम के पाक महीने के 10वें दिन ताजियेदारी की रस्म अदा होती हैं. इसके तहत फब्बारा स्थित कटरा दबकैयान पाय चौकी के इमामबाड़े में शहर का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक ताजिया रखा गया है. इसे देखने के लिए हजारों की भारी भीड़ जियारत करने पहुंचती हैं. इस मौके पर नई वक्फ कमेटी के उपाध्यक्ष शरीफ खान ने बताया कि, कटरा दबकैयान पाय चौकी के इमामबाड़े में रखे जाने वाला फूलों का ताजिया सबसे बड़ा हैं. यह फूलों का ताजिया 323 वर्ष पुराना है. जिसे हमारे पूर्वज रखते आ रहे हैं. साथ ही इसकी एक खासियत हैं. इसे सजाने के लिए फूल अजमेर से मंगाए जाते हैं. इसकी गुम्बद चांदी की होती है. वहीं, सुपुर्द-ए-खाक के जुलूस के लिए सबसे पहले पाय चौकी इमामबाड़े का सबसे बड़ा ताजिया उठता है. उसके बाद शहर के तमाम छोटे-बड़े ताजिये कर्बला के लिए कूच करते हैं. मोहर्रम के पाक माह में शहर में हजारों की संख्या में ताजिये रखे जाते हैं.

क्यों रखा जाता हैं ताजिया
मोहर्रम इस्लामिक वर्ष का पहला महीना होता है. इसे महीने की 10वीं तारीख को मनाया जाता है. इसे "आशूरा" भी कहा जाता है. इसे शिया मुस्लिम समुदाय के लोग गम के रूप में मनाते हैं. इस दिन इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयायियों की शहादत को याद किया जाता है. पूरी दुनियां के मुसलमान मुहर्रम की नौ और दस तारीख को रोजा रखते हैं और मस्जिदों और घरों में इबादत करते हैं.

वक्फ कमेटी के उपाध्यक्ष शरीफ खान ने दी जानकारी
कर्बला के युद्ध मे इमाम हुसैन का हुआ था कत्ल आज से लगभग 1400 साल पहले तारीक-ए-इस्लाम मे कर्बला की जंग हुई थी. यह जंग जुल्म के खिलाफ ,इंसाफ के लिए लड़ी गयी थीं. इस्लाम धर्म के पवित्र मदीना से कुछ दूर "शाम" में मुआविया नामक शासक का दौर था. मुआविया की मृत्यु के बाद शाही वारिस के रूप में यजीद की दुष्टता मौजूद थीं. वह शाम की गद्दी पर बैठाया गया. यजीद चाहता था कि, उसके गद्दी पर बैठने की घोषणा इमाम हुसैन करे.क्योंकि इमाम हुसैन पैगम्बर मोहम्मद साहब नवासे थे. शाम में इमाम हुसैन का प्रजा पर गहरा प्रभाव था. यजीद को इस्लामी शासक मानने से हजरत मोहम्मद के घराने ने साफ इंकार कर दिया था. इस बात से यजीद बेतहाशा नाराज था. इमाम हुसैन ने यजीद के जुल्मो को देख कर अपने नाना हजतर मोहम्मद साहब का शहर मदीना छोड़ने का फैसला ले लिया था.

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इमाम हुसैन हमेशा के लिए जब मदीना छोड़ कर परिवार सहित इराक की ओर बढ़ने लगे तभी कर्बला शहर के पास यजीद की फौज ने उनके काफिले को घेर लिया. यजीद ने इमाम हुसैन के सामने शर्ते रखी. जिन्हें इमाम हुसैन ने मानने से इनकार कर दिया. शर्त न मानने पर यजीद ने इमाम हुसैन को युद्ध के लिए ललकारा. यजीद से बात करने के दौरान इमाम हुसैन इराक के रास्ते मे ही काफिले के साथ फुरात नदी के किनारे तंबू लगाकर ठहर गए. तंबू हटाने के लिए यजीद ने अपनी फौज को आदेश दिया.

इमाम जंग नहीं चाहते थे कि क्योंकि उनके काफिले में केवल 72 लोग थे. सात मोहर्रम में भीषण गर्मी के दौरान इमाम हुसैन के पास जितना भी राशन था, वह सब खत्म हो गया. इसके तहत 7 मोहर्रम से लेकर 10 तक इमाम हुसैन अपने अनुयायियों के साथ भूखे-प्यासे रहें. 10 मोहर्रम को इमाम हुसैन की तरफ से एक-एक कर अनुयायियों ने यजीद की फौज से लोहा लिया. लेकिन, सभी मारे गए. आखिरी में इमाम हुसैन दुपहर की नमाज अदा करने के बाद कर्बला के युद्ध मे कूद पड़े. जहां इमाम हुसैन शहादत को प्राप्त हुए. इस जंग में इमाम हुसैन के एक बेटे जैनुलआबेदिन जिंदा बचे क्योंकि 10 मोहर्रम पर वह बीमार थे. उन्हीं से महोम्मद साहब की पीढ़ी आगे चली. इसी कुर्बानी की याद में मोहर्रम मनाया जाता है. इसी कारण मोहर्रम का माह गम का माह भी कहा जाता है.
ताजनगरी आगरा के सभी ताजिये मंगलवार को न्यू आगरा स्थित कर्बला में सुपुर्द-ए-खाक होंगे. सबसे पहले पाय चौकी इमामबाड़े का ताजिया उठाया जाएगा. जुलूस में लोग काले कपड़े पहन कर इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयायियों की शहादत को याद करेंगे. इसके अलावा ताजिये आगरा कैंट और बिल्लोचपुरा कर्बला में भी दफनाए जाएंगे.

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