आगरा : आज 12 जून है. 262 साल पहले आज के ही दिन सन 1761 में मुगलिया सल्तनत की शाही राजधानी आगरा पर जाट राजा सूरजमल ने अधिकार किया था. एक माह की घेराबंदी और मशक्कत से साम, दाम, दंड और भेद से राजा सूरजमल ने आगरा किला पर अधिकार किया था. जिसका जिक्र तमाम इतिहास की किताबों में हैं. आगरा किला पर यह पहली बार किसी गैर मुस्लिम राजा का अधिकार था, जो करीब 13 साल तक रहा. आइए, जानते हैं कि, आखिर कैसे जाट राजा सूरजमल ने मुगलिया सल्तनत के शाही राजधानी पर अपना अधिकार किया था?
बता दें कि, जाट समाज हर साल 12 जून को विजय दिवस मनाता है. क्योंकि, आज के दिन मुगलिया सल्तनत को जाट राजा सूरजमल ने मात दी थी. उन्होंने मुगलिया राजधानी रहे आगरा किला पर अपना अधिकार किया था. आगरा में सोमवार को जाट समाज की ओर से विजय दिवस मनाया जा रहा है. जिसका एक स्कूल में भव्य कार्यक्रम हो रहा है.
वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि, 'मुगल बादशाह औरंगजेब की 1707 में मौत होने के बाद मुगल सल्तनत कमजोर होती चली गई. अमहद शाह अब्दाली ने मराठाओं को बुरी तरह से कुचल दिया था. इसलिए, मराठा अपनी शक्ति बढ़ाने में लगे हुए थे. वो समय ऐसा था, जब राजस्थान के भरतपुर के जाट राजा शक्तिशाली हो गए. जाट राजा सूरजमल ने सबसे पहले भरतपुर के अधीन अलीगढ़ किया.इसके बाद जाट राजा और उनकी सेना अपने राज्य का दायरा बढ़ाने में लग गई. जाट राजा सूरजमहल ने अपनी सेना नायक बलराम के नेतृत्व में 4000 सैनिकों की फौज से आगरा किला पर कब्जा करने का आदेश दिया. राजा सूरजमहल की सेना साम, दाम, दंड और भेद से आगरा किला पर अधिकार करना चाहती थी. यह मेरी किताब तवारीख ए आगरा और महाराजा सूरजमहल और उनका युग में लिखा हुआ है.'
एक माह बाद किलेदार ने लालच में दिया किले का हक : वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि, 'सेना नायक बलराम अपनी जाट फौज के साथ 3 मई 1761 को आगरा पहुंचा. तब आगरा किला के किलेदार के पास महज 400 सैनिक थे. मगर, किलेदार ने इन्हीं सैनिकों से जाट सेना का मुकाबला किया. एक माह बीत गया, लेकिन बलराम और उसकी फौज किला पर कब्जा नहीं कर सकी. जब चार 4 जून 1761 को अलीगढ़ से जलेसर होकर जाट राजा सूरजमल खुद आगरा किला पर कब्जा करने के लिए आगरा आए. वे भी अपनी भारी फौज के दम पर आगरा किला पर कब्जा नहीं कर सके तो उन्होंने आगरा किला के रक्षकों के परिवार को जो शहर रह रहे थे, उन्हें बंधक बनाया. उन्हें किले के सामने खड़ा कर दिया. जिससे आगरा किला के रक्षकों का मनोबल टूट गया. इस पर आगरा किला के किलेदार ने एक लाख रुपये और पांच गांव देने के आश्वासन पर आगरा किले का हक राजा सूरजमल को दिया. इस तरह 12 जून 1761 को आगरा किला पर जाट राजा सूरजमल का अधिकार हुआ. यह आगरा किला पर किसी गैर मुस्लिम शासक का पहली बार अधिकार हुआ था. मगर, बाद में राजा सूरजमल ने किलेदार को भी ना एक लाख रुपए दिए और न ही गांव. बल्कि, उससे आगरा किला से खजाने का हिसाब भी मांग लिया.'
50 लाख रुपये, गोला, बारूद और तोप ले गए भरतपुर : वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि, 'एक माह की घेराबंदी और मशक्कत के बाद जाट राजा सूरजमल ने जब आगरा किला पर अपना अधिकार कर लिया तो यहां के खजाने पर नजर गई. राजा सूरजमहल आगरा से हाथी, घोड़ा, गोला, बारूद, तोप और पत्थर के सामान यहां से भरतपुर ले गए. आगरा किला के खजाने में तब 50 लाख रुपए मिले थे. जिसे सूरजमल ने भरतपुर भिजवा दिया था. इसके साथ ही सूरजमल के समय पर ताजमहल में भी नुकसान पहुंचाया गया था. जाट राजा सूरजमल के कहने पर ताजमहल के मुख्य गुम्मद में मुमताज की जहां पर कब्र है, वहां पर चांदी का दरवाजा था. यहां से जाट सेना मुमताज की कब्र का चांदी का दरवाजा उतरवा कर अपने साथ ले गए थे.'
सन 1774 में मुगल के अधिकार में आया किला : वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि, 'सन 1763 में जाट राजा सूरजमहल का निधन हो गया तो जाट राजाओं की शक्ति भी कम होती चली गई. इस पर दिल्ली से मुगलिया सल्तनत संभाल रहे मुगल बादशाह शाह आलम ने आगरा किला पर अधिकार के लिए अपनी तैयारी शुरू कर दी. सन 1774 में आगरा किला पर मुगलों का अधिकार हो गया. इस तरह करीब 13 साल तक आगरा किला पर जाट राजाओं का अधिकार रहा.'