आगराः ताजनगरी से 85 किलोमीटर दूर यमुना किनारे बटेश्वरधाम सभी तीर्थ का भांजा है. यहां यमुना तट पर शिव मंदिर की श्रंखला है. बटेश्वर से तीन किलोमीटर दूर जंगल में शौरीपुर है. शौरीपुर भगवान कृष्ण के पूर्वजों की राजधानी थी. अब शौरीपुर जैन धर्म की आस्था का केंद्र है. शौरीपुर भगवान श्रीकृष्ण के चचेरे भाई और जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ का जन्मस्थल है. यहां देशभर से दिगंबर और श्वेतांबर अनुयायी आते हैं. शौरीपुर में आकर्षण का केंद्र श्वेतांबर अनुयायियों द्वारा बनवाया जा रहा कोर्णाक शैली का भगवान नेमिनाथ का मंदिर है.
राजा शूरसेन ने बसाई थी शौरीपुर नगरी
हजारों वर्ष पूर्व यमुना तट पर शौरीपुर एक विशाल नगरी थी. अब इस नगरी के खंडहर भी नहीं बचे. चंद्रवंश के महाराज शूरसेन ने इस नगरी को बसाया था. उनका वंश आगे चलकर यदुवंश कहलाया. शूरसेन के अंधक वृष्णि आदि पुत्र हुए. अंधक वृष्णि के समुद्र विजय, वासुदेव आदि दस पुत्र और कुंती और माद्री दो पुत्री हुईं. वासुदेव के यहां भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था.
आकाशवाणी नहीं होती तो शौरीपुर में जन्मते कान्हा
जैन धर्म के पुजारियों का कहना है कि वासुदेवजी का विवाह मथुरा में कंस की बहन के साथ तय हुआ था. वासुदेव की बारात शौरीपुर से मथुरा गई थी. वासुदेव और देवकी का विवाह हुआ. जब वासुदेव मथुरा से शौरीपुर के लिए विदा होने लगे तभी आकाशवाणी हुई. आकाशवाणी के बाद कंस ने देवकी और वासुदेव को कैद कर लिया. इस वजह से मथुरा में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ. आकाशवाणी नहीं होती तो भगवान श्रीकृष्ण शौरीपुर में पैदा होते.
शौरीपुर में हुआ था नेमिनाथ का जन्म
समुद्र विजय की रानी शिवा के गर्भ से श्रावण सुदी छठी को भगवान नेमिनाथ का जन्म हुआ था, जो जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर हैं. भगवान नेमिनाथ का विवाह जूनागढ़ (सौराष्ट्र) के राजा उग्रसेन की पुत्री से तय हुआ था. शौरीपुर से चचेरे भाई भगवान श्रीकृष्ण और अन्य यदुवंशी धूमधाम से भगवान नेमिनाथ की बारात लेकर जूनागढ़ गए. जूनागढ़ में हिंसक पशुओं को देख कर भगवान नेमिनाथ कंगन और सेहरा छोड़कर गिरनार पर्वत पर चले गए. वहां पर दीक्षा ग्रहण करके दिगंबर साधु बन गए. फिर तपस्या की.
लोगों को आकर्षित करेगा
उड़ीसा से आए कारीगर सुदर्शन ने बताया कि यह जो मंदिर बन रहा है, इसमें बिल्कुल भी लोहे का उपयोग नहीं किया जा रहा है. यह मंदिर मकराना मार्बल का बन रहा है. उड़ीसा के कोर्णाक मंदिर की तरह ही मंदिर की दीवारों और खंम्भों पर मूर्तियां, पशु, पक्षी और बैल बन रहे हैं. इससे मंदिर की सुंदरता बढ़ेगी तो लोग आकर्षित होंगे.
कोर्णाक मंदिर की प्रतिकृति
उड़ीसा से आए कारीगर मावधचंद बोगडे़ का कहना है कि इस मंदिर में मूर्ति भी बहुत अच्छी है. यहां की दीवारों पर पेड़, बैल, जानवर, हंस आदि बनाए जा रहे हैं, जो लोगों को बहुत ही आकर्षित करेंगे. कोर्णाक मंदिर बहुत पुराना है. हम लोगों को कोर्णाक मंदिर की नकल करके यहां मंदिर की दीवारों और खंभों पर मूर्तियां बना रहे हैं.
यहां पर हैं दो कल्याणक
पुजारी शिवप्रताप सिंह भदौरिया ने बताया है कि यह परमात्मा नेमिनाथ की जन्मभूमि है. यहां पर दो मंदिर हैं, एक मंदिर परमात्मा की जन्मभूमि है और दूसरा मंदिर चमन कल्याणक है. जब परमात्मा माता के गर्भ में थे. यह वही भूमि है. यहां दो कल्याणक हैं. बाकी के तीन कल्याणक समीशिखर (गुजरात) में हैं. यहां पर परमात्मा मोक्ष को गए थे.
कंगन-सेहरा उतारकर तपस्या करने चले गए
दिगंबर जैन मंदिर के पुजारी प्रमोद जैन ने बताया कि नेमिनाथ भगवान की बारात शौरीपुर से गुजरात के जूनागढ़ गई थी. वहां पर बाड़े में हिंसक पशु बंधे थे. उन्हें देखकर भगवान नेमिनाथ ने पूछा कि यह क्या है. तो उन्हें बताया गया कि बारात में कुछ लोग मांसाहारी आए हैं. इनके लिए इन पशुओं को काटा जाएगा और इससे उनके लिए भोजन बनेगा. इतना सुनते ही भगवान नेमिनाथ ने अपना कंगन और सेहरा उतार दिया. भगवान नेमिनाथ फिर गिरनार पर्वत पर तपस्या करने चले गए.
मकराना मार्बल का हो रहा प्रयोग
शौरीपुर में मकराना मार्बल से बना भगवान नेमीनाथ का मंदिर आकर्षक का केन्द्र है. मंदिर की दीवारों और खंम्भों पर उकेरे गए देवी-देवताओं की मूर्तियां, पक्षी, लता, पेड़ और अन्य आकृतियां लोगों का आकर्षित कर रही हैं. मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें लोहे की एक कील का भी इस्तेमाल नहीं किया गया है.