आगरा: मुगलिया राजधानी रहे आगरा में मोहब्बत की निशानी ताजमहल के अलावा तमाम धरोहर मौजूद है. कई स्मारकों का इतिहास भी बेहद दिलचस्प है. इन स्मारकों के पीछे की कहानियां भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) विभाग इन धरोहर का संरक्षण नहीं करने में लापरवाह है. एएसआई के प्रचार-प्रसार के अभाव में यह स्मारक उपेक्षित हैं. ताजनगरी आकर भी पर्यटक यहां के स्मारकों के इतिहास से रूबरू नहीं हो पाते हैं. आगरा से मुगलिया सल्तनत चलती थी. पूरे हिंदुस्तान की बागडोर यहीं से मुगल बादशाह संभालते थे. फिर चाहे अकबर हों, जहांगीर, शाहजहां या औरंगजेब रहा हो. इन सभी मुगल बादशाह के समय पर मुगलिया सल्तनत की राजधानी आगरा रहा. अपने अपने समय में मुगल बादशाह ने तमाम भवनों का निर्माण कराया था. जो आज भी अपनी भव्यता और वास्तुकला के लिए जाने जाते हैं.
चीनी का रोजा : शाहजहां जिसे देखकर रह गया था हैरान
ईरान के शहर शिराज से सन् 1608 में मुल्ला शुक्रुल्लाह शिराजी मुगल दरबार में आया था. जहांगीर ने शुक्रुल्लाह शिराजी को अफजल खां की उपाधि दी. इसके बाद शाहजहां बादशाह ने मुल्ला शुक्रुल्लाह शिराजी अफजल खां 'अल्लामी' को अपना वजीर बनाया था. शाहजहां ने शिराजी को सात हजार का मनसब प्रदान किया था. शिराजी एक कवि भी था. वह 'अल्लामी' से कविताएं लिखता था. जिंदा रहते हुए शिराजी ने अपने लिए सन् 1628 से 1639 के बीच में यमुना किनारे ' चीनी का रोजा ' बनवाया था. शहंशाह शाहजहां ने जब पहली बार 'चीनी का रोजा ' देखा तो वह हैरान रह गया था. उसकी खूबसूरती उसे बहुत पसंद आई थी. जब सन् 1639 में शिराजी की मौत लाहौर में हो गई थी. शिराजी की इच्छा आगरा में यमुना किनारे बनाए गए मकबरा ' चीनी का रोजा ' में दफनाने की थी. उसकी इच्छा के मुताबिक शव लाहौर से आगरा में लाया गया. इसके बाद शव यहां पर दफनाया गया. शिराजी की पत्नी को दफनाया गया. दोनों की कब्र भी वहां मौजूद है.'चीनी का रोजा' ईरानी काशीकारी का एकमात्र स्मारक है.
रामबाग : बाबर की आरामगाह
हिंदुस्तान में मुगलिया सल्तनत की नींव रखने वाले मुगल बादशाह बाबर ने पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराया था. उस समय गर्मी बहुत थी. गर्मी से परेशान बाबर ने यमुना किनारे आरामगाह बनवाई गई थी. इसका नाम 'हिश्त बहिश्त' दिया था. बाबर ने यहां पर कन्नेर के पौधे लगवाए थे. ताल घर और जलप्रपात बनवाया था. बड़ा कुआं और हम्माम भी बनवाया था. धीरे-धीरे इस जगह का नाम आरामबाग हुआ. बाद में मराठों में अपने शासनकाल में इसका नाम बदलकर रामबाग कर दिया. हाल में यहां पर बहुत कम संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं.
मरियम टाम्ब : जहांगीर की मां का मकबरा
सिकंदर लोदी ने सिकंदरा और उसके आसपास शहर बसाया था. सन् 1495 में सिकंदर लोदी ने आगरा-मथुरा हाईवे पर सिकंदरा से आगे बारादरी बनवाई थी. जो अब मरियम टॉम्ब के नाम से प्रसिद्ध है. यह अकबर टॉम्ब से 400 मीटर की दूरी पर है. आमेर के राजा भारमल की बेटी मरियम-उज-जमानी की शादी सन् 1562 में अकबर के साथ हुई थी. अकबर और मरियम-उज-जमानी की संतान सलीम उर्फ जहांगीर था. मुगलों ने सिकंदरा और बारादरी का संरक्षण किया. वहां पर विकास कार्य कराए. जहांगीर सन् 1623 में मां मरियम-उज-जमानी के निधन के बाद वहां दफनाया था. प्रचार-प्रसार के अभाव में यहां पर पर्यटक कम पहुंचते हैं. प्रेमी युगल भी अधिकतर यहां आते हैं.
पत्थर घोड़ा : अकबर के प्रिय घोड़े का अंतिम स्थान
आगरा दिल्ली हाइवे पर गुरुद्वारा गुरु के ताल के सामने रेलवे लाइन के पास लाल पत्थर की घोड़े की मूर्ति है. यहां एक मजार भी है. एएसआई के रिकॉर्ड के मुताबिक, मुगल बादशाह अकबर के प्रिय घोड़े की यह मूर्ति है. अकबर दिल्ली से घोड़े पर ही सवार होकर रहा था. थकान के चलते घोड़ा इस जगह आकर दम तोड़ दिया था. अकबर ने वहां पर अपने घोड़े की मूर्ति लगवाई थी. सन् 1922 में यहां क्षतिग्रस्त घोड़े की मूर्ति मिली. जिसे स्थापित कर दिया गया. यहां पर दूसरा इतिहास यह है कि इतवारीखां से जुड़ा है. वह जहांगीर का दरबारी और बाद में आगरा का गर्वनर बना था. सन् 1623 में जब शाहजहां ने आगरा को अपने अधिकार में लेने की कोशिश की थी. तब इतिवारी खां उसे हराया था. इस पर जहांगीर ने इतवारी खां को मुमताज खां की उपाधि और 6000 का मनसब प्रदान किया था. सन् 1623 में उसकी मृत्यु हो गई थी. यहां पर उस का मकबरा बनाया गया.
सादिक खां और सलावत खां का मकबरा
आगरा-दिल्ली हाईवे पर आईएसबीटी के पास पिता-पुत्र सादिक खां और सलावत खां का मकबरा है. जिसका इतिहास में महत्व है. सादिक खां जहांगीर का दरबारी था. जहांगीर ने सन् 1623 में पंजाब का गवर्नर बनाया था. सन् 1633 में उसका निधन हुआ तो उसके बेटे सलामत खां ने सन् 1633 से सन 1635 के बीच आगरा-दिल्ली हाईवे पर गैलाना में मकबरे का निर्माण कराया था. वहीं, सलामत का शाहजहां का साला और चहेता वजीर था. 25 जुलाई 1644 को मारवाड़ के राजकुमार अमर सिंह राठौड़ ने भरे दरबार में उसका सर तलवार से कलम कर दिया था. यह मकबरा सादिक खां और सलामत खान का मकबरा 64 खंभे के नाम से भी जाना जाता है. मगर, यहां का प्रचार प्रसार नहीं होने की वजह से पर्यटक नहीं पहुंचते हैं.
जसवंत की छतरी : मुगलकाल में बना एकमात्र हिंदू स्मारक
जोधपुर के राजा गज सिंह के बड़े बेटे वीर योद्धा अमर सिंह राठौड़ अपने पिता से मतभेद के चलते जोधपुर छोड़ दिया था. शहंशाह के दरबार में अमरसिंह राठौड़ की अहमियत बहुत थी. सन् 1644 में अमर सिंह राठौर लंबी छुट्टी के बाद आगरा किला के दीवान-ए-आम पहुंचे तो उन पर भारी जुर्माना लगाएगा. सलावत खां ने जुर्माने को लेकर अमर सिंह राठौड़ पर टिप्पणी की की तो अमर सिंह राठौड़ ने भरे दरबार में सलावत खां का कत्ल कर दिया था. अमर सिंह राठौड़ बड़ी बहादुरी और निर्भीकता से आगरा किला से बाहर निकल आए. लेकिन, 25 जुलाई-1644 को.अमरसिंह राठौड़ का भी कत्ल कर दिया गया. अमर सिंह राठौड़ के अंतिम संस्कार यमुना किनारे बल्केश्वर के रजवाड़ा में किया गया था. जहां उनकी रानी हाडा उनके साथ सती हुईं थीं.
जोधपुर के राजा जसवंत सिंह द्वितीय ने बड़े भाई अमर सिंह राठौड़ और उनकी रानी हाडा की याद में सन् 1644 से 1658 के मध्य बल्केश्वर में यमुना किनारे छतरी का निर्माण कराया. जसवंत की छतरी के आसपास अतिक्रमण होने से रास्ता भी बेहद संकरा हो गया है. इस वजह से यहां पर्यटक नहीं पहुंचते हैं.
आगरा सर्किल में 200 स्मारक
वरिष्ठ टूरिस्ट गाइड समसुद्दीन का कहना है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) विभाग के आगरा सर्किल में सबसे ज्यादा स्मारक हैं. आगरा सर्किल में छोटे-बड़े 200 स्मारक हैं. इन सभी स्मारकों का इतिहास बहुत ही महत्वपूर्ण और दिलचस्प है. लेकिन, इन स्मारकों का प्रचार प्रसार बहुत कम है. इनका संरक्षण भी सही तरीके से नहीं हो रहा है. इस ओर एएसआई का ध्यान है. ना ही जिला प्रशासन और एडीए का इस ओर ध्यान है. इसी वजह से आगरा आने वाले तमाम पर्यटक इन स्मारकों तक नहीं पहुंचते हैं. इनके इतिहास से भी रूबरू नहीं हो पाते हैं.
प्रचार प्रसार का अभाव, पर्यटकों का इंतजार
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' का कहना है कि, आगरा में एएसआई का ताजमहल, आगरा किला और फतेहपुर सीकरी के अलावा एत्मादउद्दौला और आगरा सिकंदरा पर ध्यान है. जबकि, इसके अलावा भी तमाम महत्वपूर्ण और स्मारक हैं. जिनका इतिहास भी दिलचस्प है. मगर, इन का प्रचार प्रसार नहीं होता है. इस वजह से यहां पर्यटक नहीं पहुंचते हैं. इनमें यमुना किनारे स्थित चीनी का रोजा, रामबाग, अकबर की हिंदू पत्नी का मकबरा जो मरियम टाम्ब के नाम से जाना जाता है. जिसे लोग अकबर की ईसाई पत्नी का मकबरा कहते हैं. लेकिन, यह गलत है. सलावत खां और सादिक खान का मकबरा, जसवंत की छतरी के अलावा अन्य और स्मारक हैं.
संरक्षण और प्रचार-प्रसार पर जोर
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीक्षण पुरात्तवविद वसंत कुमार स्वर्णकार ने बताया कि, सभी स्मारकों का संरक्षण किया जा रहा है. सभी के प्रचार-प्रसार पर भी जोर दिया जाता है. समय-समय पर सभी स्मारकों पर संरक्षण का कार्य भी किया जाता है. जिससे इतिहास के इन चिन्हों को बचाया कर रखा जा सके.