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सीजनल मूड डिसऑर्डर: जानें क्यों होता है बेवजह मन उदास और किसी भी बात पर हो जाता मूड ख़राब

मौजूदा समय में पॉल्यूशन और बदले मौसम परिवर्तन की वजह से मूड डिसऑर्डर से मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. एसएन मेडिकल काॅलेज और जिला अस्पताल में पीड़ित मरीज लगातार पहुंच रहे हैं. इस बीमारी के इलाज के लिए मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के निदेशक प्रो. दिनेश राठौर ने ईटीवी भारत से विशेष रूप से बातचीत की...

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 20, 2023, 2:05 PM IST

प्रो. दिनेश राठौर ने बताया.

आगरा: पॉल्यूशन और बदले मौसम से सीजनल मूड डिसऑर्डर के मरीजों की संख्या ओपीडी बढ़ गई है. हर दिन मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय एसएन मेडिकल काॅलेज और जिला अस्पताल की ओपीडी में सीजनल मूड डिसऑर्डर से पीड़ित किशोर, किशोरी, युवा और अन्य मरीज भी पहुंच रहे हैं. परिजनों के अनुसार इन लोगों के स्वभाव में अजीबोगरीब बदलाव हो गए हैं. शरीर में कमजोरी, उदासी, मन में उलझन, चिढ़चिढ़ापन बढ़ना, अचानक भूख कम लगने जैसी शिकायतें अधिक आ रही हैं. ईटीवी भारत की टीम ने मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के निदेशक प्रो. दिनेश राठौर ने खास बातचीत में सीजनल मूड डिसऑर्डर के बारे में जानकारी दी. आइए, जानते हैं क्या है वजह...

सीजनल मूड डिसऑर्डर की वजह
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के निदेशक प्रो. दिनेश राठौर ने बताया कि मौसम में बदलाव हुआ है. स्माॅग और पाॅल्यूशन चारों तरफ फैला है. ऐसे में लोगों को सूर्य की पर्याप्त रोशनी नहीं मिल रही हैं. क्योंकि, सूर्य के प्रकाश से मानव मस्तिष्क में मेलाटोनिन नामक हार्मोन न्यूरोट्रांसमीटर के स्राव को नियंत्रित करता है, जो व्यक्ति के दिन रात के अनुसार परिवर्तित होने वाली जैविक सक्रियता को प्रभावित करता है. अभी मौसम बदलाव के साथ ही आसमान में धुंध छाई रहती है. इसके साथ ही इस मौसम में सूर्य की पृथ्वी से दूरी बढ़ जाती है. जिससे भी सूर्य का प्रकाश कम होता है. आतिशबाजी का शोर भी लोगों को चिढ़चिढ़ा बना गया है.

जानें क्या है ‘सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर’
सीजनल मूड डिसऑर्डर या सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर (SAD) एक मानसिक बीमारी है, जो मौसम में आये बदलाव की वजह से हर साल अक्टूबर से दिसंबर माह तक लोगों को अपनी चपेट में लेती है. इसकी चपेट में अक्सर महिलायें, वयस्क, युवा और किशोर-किशोरियां ही आते हैं.

ओपीडी में बढ़े ऐसे मरीज
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के निदेशक प्रो. दिनेश राठौर ने बताया कि बायोलॉजिकल क्लॉक (दिन-रात का जैविक परिवर्तन) प्रभावित होने पर तमाम व्यक्ति अवसाद का शिकार हो जातें हैं. अभी की बात करें तो संस्थान की ओपीडी में सीजनल मूड डिसऑर्डर के मरीजों की संख्या बढ़ी है. हर दिन सीजनल मूड डिसऑर्डर के 8 से 10 मरीज पहुंच रहे हैं.

धूप बेहद जरूरी
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के निदेशक ने बताया कि सीजनल मूड डिसऑर्डर के मरीजों को धूप लेने से बीमारी में आराम मिलता है. इसलिए सीजनल मूड डिसऑर्डर के मरीजों को कुछ देर धूप में बैठने की सलाह दी जाती है. क्योंकि, धूप से मेलाटोनिन नामक हार्मोन के नियंत्रित होने से मन और शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है. इसके साथ ही ऐसे मरीजों को घर के खिड़की दरवाजों को भी खोल कर रहने की सलाह भी दी जाती है. जिससे मन और घर की नेगेटिविटी भी दूर रहती है.


पहला केस
जयपुर हाउस के एक कारोबारी की 16 वर्षीय बेटी बीते सप्ताह से बेहद परेशान है. किशोरी की शिकायत है कि उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है. मन में हर समय उलझन रहती है. वह दिनभर सोचती रहती है.

दूसरा केस
एक कंपनी मैनेजर की शिकायत है कि 10 दिन से बात-बात पर मेरा मूड खराब रहता है. मस्तिष्क में बुरे बुरे विचार आते हैं. काम में मन नहीं लगता है. जिससे प्रोफेशनल और पर्सनल रिलेशनशिप में दिक्कत आ रही है.

ये हैं लक्षण-ः

प्रो. दिनेश राठौर ने बताया.

आगरा: पॉल्यूशन और बदले मौसम से सीजनल मूड डिसऑर्डर के मरीजों की संख्या ओपीडी बढ़ गई है. हर दिन मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय एसएन मेडिकल काॅलेज और जिला अस्पताल की ओपीडी में सीजनल मूड डिसऑर्डर से पीड़ित किशोर, किशोरी, युवा और अन्य मरीज भी पहुंच रहे हैं. परिजनों के अनुसार इन लोगों के स्वभाव में अजीबोगरीब बदलाव हो गए हैं. शरीर में कमजोरी, उदासी, मन में उलझन, चिढ़चिढ़ापन बढ़ना, अचानक भूख कम लगने जैसी शिकायतें अधिक आ रही हैं. ईटीवी भारत की टीम ने मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के निदेशक प्रो. दिनेश राठौर ने खास बातचीत में सीजनल मूड डिसऑर्डर के बारे में जानकारी दी. आइए, जानते हैं क्या है वजह...

सीजनल मूड डिसऑर्डर की वजह
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के निदेशक प्रो. दिनेश राठौर ने बताया कि मौसम में बदलाव हुआ है. स्माॅग और पाॅल्यूशन चारों तरफ फैला है. ऐसे में लोगों को सूर्य की पर्याप्त रोशनी नहीं मिल रही हैं. क्योंकि, सूर्य के प्रकाश से मानव मस्तिष्क में मेलाटोनिन नामक हार्मोन न्यूरोट्रांसमीटर के स्राव को नियंत्रित करता है, जो व्यक्ति के दिन रात के अनुसार परिवर्तित होने वाली जैविक सक्रियता को प्रभावित करता है. अभी मौसम बदलाव के साथ ही आसमान में धुंध छाई रहती है. इसके साथ ही इस मौसम में सूर्य की पृथ्वी से दूरी बढ़ जाती है. जिससे भी सूर्य का प्रकाश कम होता है. आतिशबाजी का शोर भी लोगों को चिढ़चिढ़ा बना गया है.

जानें क्या है ‘सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर’
सीजनल मूड डिसऑर्डर या सीजनल अफेक्टिव डिसॉर्डर (SAD) एक मानसिक बीमारी है, जो मौसम में आये बदलाव की वजह से हर साल अक्टूबर से दिसंबर माह तक लोगों को अपनी चपेट में लेती है. इसकी चपेट में अक्सर महिलायें, वयस्क, युवा और किशोर-किशोरियां ही आते हैं.

ओपीडी में बढ़े ऐसे मरीज
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के निदेशक प्रो. दिनेश राठौर ने बताया कि बायोलॉजिकल क्लॉक (दिन-रात का जैविक परिवर्तन) प्रभावित होने पर तमाम व्यक्ति अवसाद का शिकार हो जातें हैं. अभी की बात करें तो संस्थान की ओपीडी में सीजनल मूड डिसऑर्डर के मरीजों की संख्या बढ़ी है. हर दिन सीजनल मूड डिसऑर्डर के 8 से 10 मरीज पहुंच रहे हैं.

धूप बेहद जरूरी
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के निदेशक ने बताया कि सीजनल मूड डिसऑर्डर के मरीजों को धूप लेने से बीमारी में आराम मिलता है. इसलिए सीजनल मूड डिसऑर्डर के मरीजों को कुछ देर धूप में बैठने की सलाह दी जाती है. क्योंकि, धूप से मेलाटोनिन नामक हार्मोन के नियंत्रित होने से मन और शरीर में नई ऊर्जा का संचार होता है. इसके साथ ही ऐसे मरीजों को घर के खिड़की दरवाजों को भी खोल कर रहने की सलाह भी दी जाती है. जिससे मन और घर की नेगेटिविटी भी दूर रहती है.


पहला केस
जयपुर हाउस के एक कारोबारी की 16 वर्षीय बेटी बीते सप्ताह से बेहद परेशान है. किशोरी की शिकायत है कि उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है. मन में हर समय उलझन रहती है. वह दिनभर सोचती रहती है.

दूसरा केस
एक कंपनी मैनेजर की शिकायत है कि 10 दिन से बात-बात पर मेरा मूड खराब रहता है. मस्तिष्क में बुरे बुरे विचार आते हैं. काम में मन नहीं लगता है. जिससे प्रोफेशनल और पर्सनल रिलेशनशिप में दिक्कत आ रही है.

ये हैं लक्षण-ः

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