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कभी इस गांव में हुई अगस्त क्रांति में शामिल हुए थे अटलजी, अब है ये हाल

देश अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर आजादी का अमृत महोत्सव (azadi ka amrit mahotsav) मना रहा है. तीन बार देश के पूर्व प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेई ने देश की अगस्त क्रांति में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. उनका आगरा के बटेश्वर से खासा रिश्ता था. चलिए जानते हैं इसके बारे में.

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अगस्त क्रांति का बटेश्वर 'अटल' गवाह
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Published : Aug 14, 2022, 8:25 PM IST

Updated : Aug 15, 2022, 5:23 AM IST

आगराः आज पूरा देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर आजादी का अमृत महोत्सव (azadi ka amrit mahotsav) मना रहा है. हर ओर स्वतंत्रता सेनानियों और देश के बड़े नेताओं की चर्चाएं हो रहीं हैं. ऐसे में भारत रत्न व देश के पूर्व प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेई का जिक्र भी होना जरूरी है. अगस्त क्रांति में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने वाले अटल बिहारी बाजपेई का आगरा के बटेश्वर गांव से खासा नाता रहा है. 27 अगस्त-1942 को हुई अगस्त क्रांति के दौरान आगरा जिला मुख्यालय से 90 किमी. दूर यमुना किनारे स्थित बटेश्वर में 500 से अधिक भीड़ ने वन विभाग के कार्यालय (जंगलात की कोठी) पर हमला बोल दिया था.

इस क्रांति में ग्रामीणों के साथ पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई भी शामिल थे लेकिन तब अटल बिहारी जी किशोर थे. अंग्रेजी हुकूमत ने मामला शांत होने पर अटल जी समेत अन्य आजादी के दीवानों को गिरफ्तार कर लिया था लेकिन किशोर होने की वजह से अटलजी को छोड़ दिया गया था. सभी आजादी के दीवानों के खिलाफ मुकदमा चला जिसमें सभी को सजा भी हुई थी.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के गांव बटेश्वर के बारे में..
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि अगस्त क्रांति से अंग्रेजी हुकूमत घबराई हुई थी. देश में विद्रोह की ज्वाला प्रबल थी. चारों तरफ आजादी की मांग की जा रही थी. गांव-गांव में दीवाने आजादी की मांग कर रहे थे. तभी आगरा के बटेश्वर में 27 अगस्त-1942 को ग्रामीण एकजुट होकर एक सभा की. इसके बाद आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों की चौकी यानी जंगलात की कोठी पर धावा बोल दिया. 500 से ज्यादा ग्रामीणों ने जंगलात की कोठी को घेर लिया.

इसमें ही पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई, उनके भाई प्रेम बिहारी वाजपेई, गांव लीलाधर और अन्य लोग भी शामिल थे. आजादी के दीवानों ने जंगलात की कोठी पर तोड़फोड़ कर आगजनी की थी. इन आजादी के दीवानों ने अंग्रेजी अफसरों और सैनिकों को पीट कर भगा दिया और वहां तिरंगा झंड़ा फहरा दिया था. इससे गुस्साए अंग्रेज अफसरों ने ग्रामीणों पर खूब जुल्म ढाए. अटलजी समेत अन्य लोगों को गिरफ्तार भी किया. किशोर होने की वजह से अटलजी को छोड़ दिया. लेकिन अंग्रेजों सभी पर केस चलाया. इसके बाद गांव पर दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाकर वसूला था.

बटेश्वर निवासी रामसिंह आजाद ने बताया कि, अगस्त की क्रांति में हमारे गांव का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. इसमें श्रद्धेय अटलजी और अन्य आजादी के दीवाने लोग शामिल थे. उन्होंने कहा कि गांव पर अंग्रेजों ने खूब जुल्म ढाए थे. मगर, अभी यह टीस यह रहती है कि, जो गांव आजादी का गवाह है. जहां पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ ग्रामीण एकजुट हुए. वह गांव पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई का पैतृक गांव है. मगर, यहां पर आजादी की यादे नहीं संवारी जा रही हैं. यह अफसोस है कि यहां पर जरूरी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है.


यह भी पढ़ें-लग्जरी कार में ले जा रहे थे 16 किलो हाथी के दांत, पुलिस ने दबोचा
बटेश्वर निवासी अवधेश यादव ने बताया कि, जंगलात की कोठी आजादी की गवाह है. यहां पर हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजी हुकूमत को खदेड़ने का काम किया था. जिसमें अटलजी भी शामिल थे लेकिन आज यह जंगलात की कोठी बदहाल है. उसकी दशा सुधारने के लिए तमाम अधिकारियों ने तमाम वादे कर चले गए लेकिन जंगलात की कोठी पर कोई भी विकास कार्य नहीं किया गया.

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आगराः आज पूरा देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर आजादी का अमृत महोत्सव (azadi ka amrit mahotsav) मना रहा है. हर ओर स्वतंत्रता सेनानियों और देश के बड़े नेताओं की चर्चाएं हो रहीं हैं. ऐसे में भारत रत्न व देश के पूर्व प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेई का जिक्र भी होना जरूरी है. अगस्त क्रांति में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेने वाले अटल बिहारी बाजपेई का आगरा के बटेश्वर गांव से खासा नाता रहा है. 27 अगस्त-1942 को हुई अगस्त क्रांति के दौरान आगरा जिला मुख्यालय से 90 किमी. दूर यमुना किनारे स्थित बटेश्वर में 500 से अधिक भीड़ ने वन विभाग के कार्यालय (जंगलात की कोठी) पर हमला बोल दिया था.

इस क्रांति में ग्रामीणों के साथ पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई भी शामिल थे लेकिन तब अटल बिहारी जी किशोर थे. अंग्रेजी हुकूमत ने मामला शांत होने पर अटल जी समेत अन्य आजादी के दीवानों को गिरफ्तार कर लिया था लेकिन किशोर होने की वजह से अटलजी को छोड़ दिया गया था. सभी आजादी के दीवानों के खिलाफ मुकदमा चला जिसमें सभी को सजा भी हुई थी.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी के गांव बटेश्वर के बारे में..
इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि अगस्त क्रांति से अंग्रेजी हुकूमत घबराई हुई थी. देश में विद्रोह की ज्वाला प्रबल थी. चारों तरफ आजादी की मांग की जा रही थी. गांव-गांव में दीवाने आजादी की मांग कर रहे थे. तभी आगरा के बटेश्वर में 27 अगस्त-1942 को ग्रामीण एकजुट होकर एक सभा की. इसके बाद आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों की चौकी यानी जंगलात की कोठी पर धावा बोल दिया. 500 से ज्यादा ग्रामीणों ने जंगलात की कोठी को घेर लिया.

इसमें ही पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई, उनके भाई प्रेम बिहारी वाजपेई, गांव लीलाधर और अन्य लोग भी शामिल थे. आजादी के दीवानों ने जंगलात की कोठी पर तोड़फोड़ कर आगजनी की थी. इन आजादी के दीवानों ने अंग्रेजी अफसरों और सैनिकों को पीट कर भगा दिया और वहां तिरंगा झंड़ा फहरा दिया था. इससे गुस्साए अंग्रेज अफसरों ने ग्रामीणों पर खूब जुल्म ढाए. अटलजी समेत अन्य लोगों को गिरफ्तार भी किया. किशोर होने की वजह से अटलजी को छोड़ दिया. लेकिन अंग्रेजों सभी पर केस चलाया. इसके बाद गांव पर दस हजार रुपये का जुर्माना भी लगाकर वसूला था.

बटेश्वर निवासी रामसिंह आजाद ने बताया कि, अगस्त की क्रांति में हमारे गांव का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. इसमें श्रद्धेय अटलजी और अन्य आजादी के दीवाने लोग शामिल थे. उन्होंने कहा कि गांव पर अंग्रेजों ने खूब जुल्म ढाए थे. मगर, अभी यह टीस यह रहती है कि, जो गांव आजादी का गवाह है. जहां पर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ ग्रामीण एकजुट हुए. वह गांव पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई का पैतृक गांव है. मगर, यहां पर आजादी की यादे नहीं संवारी जा रही हैं. यह अफसोस है कि यहां पर जरूरी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है.


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बटेश्वर निवासी अवधेश यादव ने बताया कि, जंगलात की कोठी आजादी की गवाह है. यहां पर हमारे पूर्वजों ने अंग्रेजी हुकूमत को खदेड़ने का काम किया था. जिसमें अटलजी भी शामिल थे लेकिन आज यह जंगलात की कोठी बदहाल है. उसकी दशा सुधारने के लिए तमाम अधिकारियों ने तमाम वादे कर चले गए लेकिन जंगलात की कोठी पर कोई भी विकास कार्य नहीं किया गया.

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Last Updated : Aug 15, 2022, 5:23 AM IST
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