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यूपी एक खोज: कभी अकबर के दरबारी का यह आवास इस वजह से था प्रसिद्ध...अब हो गए ये हाल

कभी मुगल बादशाह अकबर के दरबारी इत्माद खान का आगरा का आवास खास वजह से प्रसिद्ध था. वक्त के साथ अब यहां सबकुछ बदल गया है. यूपी एक खोज में आज आपके लिए पेश है इससे जुड़ी यह खास जानकारी.

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200 साल पहले बुढ़िया के ताल की यह पेंटिंग कलाकार सीताराम ने बनाई थी.
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Published : May 23, 2022, 9:27 PM IST

आगरा : मुगललिया सल्तनत की तमाम इमारतें, मकबरे और ​भवन आगरा और उसके आसपास मौजूद हैं. इन्हीं में एक है आगरा से करीब 25 किमी. दूर इत्मादपुर का दो मंजिला अष्टभुजाकार भवन. इसे सन् 1592 में अकबर के दरबारी इत्माद खान ने बनवाया था. यही पर उनकी कब्र भी है. यहां पांच पक्के घाटों के अवशेष भी हैं.

इसे बुढ़िया का ताल भी कहा जाता है. जब इस तालाब की खुदाई हुई थी तब यहां से बौद्धकालीन मूर्तियां व संरचनाएं मिली थी. शुरुआत में इसे बौद्ध ताल कहा जाने लगा. आगे चलकर इसका अपभ्रंश हो गया बुढ़िया का ताल. तबसे इस तालाब का यही नाम चल रहा है. कभी यह जगह सिंघाड़े की खेती के लिए खूब प्रसिद्ध थी. आगरा के बाजार में यहां के सिंघाड़े की खास डिमांड थी. वक्त के साथ ही यह खेती बंद हो गई. तालाब सूख गए. अब यहां असमाजिक तत्वों का डेरा रहता है.

अकबर के दरबारी इत्माद खान का यह आवास अब पूरी तरह से हो चुका है जर्जर.

इतिसकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि बुढ़िया का ताल के इतिहास की बात करें तो यह 450 साल पुराना है. मुगल शहंशाह अकबर के दरबारी इत्माद खान (इतवारी खान) ने सन् 1592 में दो मंजिला अष्टभुजाकार भवन बनाया था. इत्माद खान यहां पर रहता था. यहीं पर उनका मकबरा भी है. इत्माद खान ने तालाब के पास पक्के घाट भी बनवाए थे जिनमें से 5 पक्के घाटों के अवशेष ही बचे हैं.

बुढ़िया का ताल एएसआई से संरक्षित स्मारक है लेकिन अब तालाब में न पानी है और न चहारदीवारी. राजे के मुताबिक इस तालाब की खुदाई में बौद्धकालीन मूर्तियां भी निकलीं थीं. यह कभी बौद्ध विहार रहा होगा इसलिए तब इसका नाम बौद्ध ताल हुआ. दूसरी किवंदती यह भी है कि, इतवारी खान (इत्माद खान) बुढ़िया की तरह दिखता था. इस वजह से इसका नाम बुढ़िया का ताल प्रचलित हो गया.

एक किवदंती यह भी है कि यहां पर एक बुढ़िया रहती थी जो चोर और लुटेरों को राहगीरों के काफिले की जानकारी देती थी. अक्सर राहगीर लूट के शिकार हो जाते थे. इस वजह से इसका नाम बुढ़िया का ताल पड़ गया था. अब यहां की बाउंड्री पूरी तरह से टूट चुकी है. ताल सूख चुका है.

यहां घूमने आई स्टूडेंट आकांक्षा यादव ने बताया कि इसके बारे में काफी सुन रखा था इसलिए आज यहां घूमने आई. यह बहुत अच्छा दिखता है. इसकी देखरेख होनी चाहिए. वहीं. स्टूडेंट अंजली वर्मा ने बताया कि सिंघाड़े के लिए बुढ़िया का ताल मशहूर है लेकिन इस तालाब में अभी पानी ही नहीं है. यहां चारों ओर बबूल उग आए हैं. सरकार इसे पर्यटनस्थल के रूप में विकसित करे.

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200 साल पहले बुढ़िया के ताल की यह पेंटिंग कलाकार सीताराम ने बनाई थी.


200 साल पुरानी पेंटिंग से संवारेगा एएसआई
ब्रिटिश काल के चर्चित कलाकार सीताराम बंगाल के गवर्नर जनरल मार्केस हेस्टिंग्स के साथ कोलकाता से दिल्ली तक के सफर पर आए. सन् 1814-15 में कलाकार सीताराम ने बुढ़िया के ताल की एक आकर्षक पेंटिंग बनाई थी. उसी पेंटिंग को आधार मानकर अब एएसआई ने बुढ़िया को ताल को संवारने करने की योजना बनाई है. सरकार ने बुढ़िया के ताल का चयन अमृत सरोवर योजना में किया है. एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद राजकुमार पटेल ने बताया कि, बुढ़िया के ताल को पुराने स्वरूप में लाया जाएगा. इसे संवारने का काम शुरू होगा.

पढ़ें यूपी एक खोजःकाशी की ये लस्सी आपको दीवाना बना देगी,खूबियां जानकर हैरान रह जाएंगे

आगरा : मुगललिया सल्तनत की तमाम इमारतें, मकबरे और ​भवन आगरा और उसके आसपास मौजूद हैं. इन्हीं में एक है आगरा से करीब 25 किमी. दूर इत्मादपुर का दो मंजिला अष्टभुजाकार भवन. इसे सन् 1592 में अकबर के दरबारी इत्माद खान ने बनवाया था. यही पर उनकी कब्र भी है. यहां पांच पक्के घाटों के अवशेष भी हैं.

इसे बुढ़िया का ताल भी कहा जाता है. जब इस तालाब की खुदाई हुई थी तब यहां से बौद्धकालीन मूर्तियां व संरचनाएं मिली थी. शुरुआत में इसे बौद्ध ताल कहा जाने लगा. आगे चलकर इसका अपभ्रंश हो गया बुढ़िया का ताल. तबसे इस तालाब का यही नाम चल रहा है. कभी यह जगह सिंघाड़े की खेती के लिए खूब प्रसिद्ध थी. आगरा के बाजार में यहां के सिंघाड़े की खास डिमांड थी. वक्त के साथ ही यह खेती बंद हो गई. तालाब सूख गए. अब यहां असमाजिक तत्वों का डेरा रहता है.

अकबर के दरबारी इत्माद खान का यह आवास अब पूरी तरह से हो चुका है जर्जर.

इतिसकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि बुढ़िया का ताल के इतिहास की बात करें तो यह 450 साल पुराना है. मुगल शहंशाह अकबर के दरबारी इत्माद खान (इतवारी खान) ने सन् 1592 में दो मंजिला अष्टभुजाकार भवन बनाया था. इत्माद खान यहां पर रहता था. यहीं पर उनका मकबरा भी है. इत्माद खान ने तालाब के पास पक्के घाट भी बनवाए थे जिनमें से 5 पक्के घाटों के अवशेष ही बचे हैं.

बुढ़िया का ताल एएसआई से संरक्षित स्मारक है लेकिन अब तालाब में न पानी है और न चहारदीवारी. राजे के मुताबिक इस तालाब की खुदाई में बौद्धकालीन मूर्तियां भी निकलीं थीं. यह कभी बौद्ध विहार रहा होगा इसलिए तब इसका नाम बौद्ध ताल हुआ. दूसरी किवंदती यह भी है कि, इतवारी खान (इत्माद खान) बुढ़िया की तरह दिखता था. इस वजह से इसका नाम बुढ़िया का ताल प्रचलित हो गया.

एक किवदंती यह भी है कि यहां पर एक बुढ़िया रहती थी जो चोर और लुटेरों को राहगीरों के काफिले की जानकारी देती थी. अक्सर राहगीर लूट के शिकार हो जाते थे. इस वजह से इसका नाम बुढ़िया का ताल पड़ गया था. अब यहां की बाउंड्री पूरी तरह से टूट चुकी है. ताल सूख चुका है.

यहां घूमने आई स्टूडेंट आकांक्षा यादव ने बताया कि इसके बारे में काफी सुन रखा था इसलिए आज यहां घूमने आई. यह बहुत अच्छा दिखता है. इसकी देखरेख होनी चाहिए. वहीं. स्टूडेंट अंजली वर्मा ने बताया कि सिंघाड़े के लिए बुढ़िया का ताल मशहूर है लेकिन इस तालाब में अभी पानी ही नहीं है. यहां चारों ओर बबूल उग आए हैं. सरकार इसे पर्यटनस्थल के रूप में विकसित करे.

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200 साल पहले बुढ़िया के ताल की यह पेंटिंग कलाकार सीताराम ने बनाई थी.


200 साल पुरानी पेंटिंग से संवारेगा एएसआई
ब्रिटिश काल के चर्चित कलाकार सीताराम बंगाल के गवर्नर जनरल मार्केस हेस्टिंग्स के साथ कोलकाता से दिल्ली तक के सफर पर आए. सन् 1814-15 में कलाकार सीताराम ने बुढ़िया के ताल की एक आकर्षक पेंटिंग बनाई थी. उसी पेंटिंग को आधार मानकर अब एएसआई ने बुढ़िया को ताल को संवारने करने की योजना बनाई है. सरकार ने बुढ़िया के ताल का चयन अमृत सरोवर योजना में किया है. एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद राजकुमार पटेल ने बताया कि, बुढ़िया के ताल को पुराने स्वरूप में लाया जाएगा. इसे संवारने का काम शुरू होगा.

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