आगराः आगरा नगर निगम में एक युवक से मकान के ट्रांसफर प्रक्रिया प्रणाली पूरी करने के एवज में रिश्वत की मांग की गई. इस बात से नाराज युवक ने नगर निगम के खिलाफ विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में वाद दायर कर दिया. जिसमें आगरा नगर आयुक्त को आईपीसी की धारा 166 के तहत नगर आयुक्त को प्रतिवादी बनाया गया है. पीड़ित की याचिका पर 27 अक्टूबर को मामले में सुनवाई की जाएगी.
संपत्ति विभाग के बाबू ने मांगी रिश्वत
ताजनगरी के मदिया कटरा निवासी अभिनव प्रसाद ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि, 11 जुलाई 2021 उनकी मां सुधा सक्सेना का निधन हो गया था. मां सुधा सक्सेना के नाम दर्ज मकान को अपने नाम कराने के लिए नगर निगम में 5 अगस्त 2022 को आवेदन पत्र दिया था. जिसमें जरूरी दस्तावेज के साथ-साथ मां की वसीयत भी लगाई. ऑनलाइन फीस के तौर पर 1450 रुपये भी जमा कर दिया. लेकिन, एक साल बाद भी नगर निगम की ओर से इस औपचारिकता को पूरा नहीं किया. जबकि, सिटीजन चार्टर के मुताबिक यह कार्य 45 दिन में पूरा हो जाना चाहिए था. उन्होंने आरोप लगाया कि इस मामले में संपत्ति विभाग के बाबू ने 25 हजार रुपये की डिमांड की है. उन्होंने रुपये नहीं दिए तो मकान का नामांतरण लटका दिया है.
कोर्ट में होगी 27 अक्टूबर को सुनवाई
अभिनव प्रसाद ने बताया कि नगर निगम के कर्मचारी पर मकान का नामांतरण लटकाने और रिश्वत मांगने की शिकायत आगरा मंडलायुक्त से की. इस पर जांच हुई तो नगर निगम अधिकारियों ने उन्हें जल्द नामांतरण कराने का आश्वासन दिया. लेकिन, हकीकत में काम नहीं किया गया. इस पर उन्होंने अपने अधिवक्ता देवेंद्र कुमार त्रिपाठी के माध्यम से 25 अगस्त 2023 को नगर आयुक्त को नोटिस दिया. इस पर नगर आयुक्त ने नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया. इस पर आईपीसी की धारा के तहत मुकदमा दर्ज करने के लिये विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रार्थना पत्र दाखिल किया. जिसमें नगर आयुक्त को प्रतिवादी बनाया. इस पर विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में 27 अक्टूबर को सुनवाई होगी.
नगर आयुक्त के साथ की लोग बनाए गए आरोपी
अभिनव प्रसाद का आरोप है कि नगर निगम अधिनियम के तहत सभी औपचारिकताएं पूरी किये जाने पर भी भ्रष्टाचार के चलते नामांतरण लटकाया गया है. कोर्ट में दायर वाद में उन्होंने हलफनामे में संपत्ति विभाग के संबंधित क्लर्क और राजस्व निरीक्षक को आरोपित किया गया. साथ ही मांग की है कि निगम की वेबसाइट पर अर्जियों और फाइलों के ट्रैकिंग की उपयुक्त व्यवस्था कराई जाए. इसके बाद ही सिटीजन चार्टर में निर्धारित अवधि से अधिक लटकने वाले प्रकरणों की जांच कर त्वरित निस्तारित करवाई की जाए. नगर निगम में उत्तर प्रदेश जनहित गारंटी अधिनियम 2011 का सही तरह से पालन किया जाना चाहिए.
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