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रॉस टेलर भी हुए नस्लभेद का शिकार, अपनी बुक में किया खुलासा

न्यूजीलैंड के पूर्व क्रिकेटर रॉस टेलर ने अपने देश की क्रिकेट संस्कृति में नस्लवाद के मुद्दे पर बात की है. अपनी टीम के लिए सबसे बेहतरीन बल्लेबाजों में शुमार रहे टेलर अपनी बुक रॉस टेलर ब्लैक एंड व्हाइट में बताया कि कैसे खिलाड़ियों के साथ भेदभाव होता था.

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Published : Aug 11, 2022, 3:45 PM IST

हैमिल्टन: कीवी के पूर्व क्रिकेटर रॉस टेलर ने गुरुवार को अपनी बायोग्राफी में न्यूजीलैंड क्रिकेट में नस्लवाद के बारे में खुलासा किया है. 'रॉस टेलर ब्लैक एंड व्हाइट' शीर्षक से अपनी बायोग्राफी में टेलर ने वर्णन किया कि न्यूजीलैंड में क्रिकेट एक साफ सुथरा खेल था और उन्होंने ड्रेसिंग रूम के अंदर नस्लवाद का अनुभव किया, क्योंकि वहां उन्हें 'बंटर' कह कर बुलाया जाता था.

टेलर ने कहा, न्यूजीलैंड में क्रिकेट को अच्छा खेल माना जाता है. अपने अधिकांश करियर मैं एक अलग खिलाड़ी रहा हूं. पूरी टीम में मैं अकेला भूरा चेहरे वाला खिलाड़ी था. इसकी अपनी चुनौतियां थीं, क्योंकि आपके साथियों और जनता मुझे अलग-अलग तरह से संबोधित करते थे. न्यूजीलैंड हेराल्ड में प्रकाशित बायोग्राफी के एक अंश में टेलर ने लिखा, यह देखते हुए कि पॉलिनेशियन समुदाय का खेल में कम प्रतिनिधित्व है. यह शायद कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि लोग कभी-कभी यह मान लेते हैं कि मैं माओरी या भारतीय हूं.

यह भी पढ़ें: रॉस टेलर ने टी-20 क्रिकेट में वापसी के दिए संकेत

उन्होंने कहा, एक स्पोर्ट्स डिग्री के हिस्से के रूप में विश्वविद्यालय में मीडिया में नस्लवाद का अध्ययन करने के बाद विक्टोरिया ने शायद उन चीजों पर ध्यान दिया, जो कई अन्य लोगों ने नहीं देखा था. टेलर ने इस साल अप्रैल में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया था, जिसमें उन्होंने 112 टेस्ट, 236 वनडे और 102 टी-20 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले थे.

टेलर ने कहा, कई मायनों में ड्रेसिंग-रूम का मजाक काफी कुछ कह जाता है. टीम का एक साथी मुझसे कहता था, रॉस, तुम आधे अच्छे आदमी हो. लेकिन कौन सा आधा अच्छा है? ये बात आप नहीं जान सकते. अन्य खिलाड़ियों को भी अपनी जातीयता पर आधारित टिप्पणियों के साथ आना पड़ा. ऐसे लोग आपस में एक दूसरे को सही भी नहीं करते, क्योंकि वे एक दूसरे के मजाक को सफेद चमड़ी वाले इंसान की तरह सुनते हैं जो उन पर नहीं होता.

यह भी पढ़ें: रॉस टेलर ने आखिरी पारी में 14 रन बनाकर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को कहा अलविदा

समस्या तब आती है, जब आप उनको सही करने की कोशिश करते हो. लेकिन नहीं कर पाते, क्योंकि ऐसा करने से आप बड़ी समस्या को दावत दे रहे हो. आप पर नस्लीय शिकार होने का कार्ड खेलने वाले इंसान का टैग लगाया जा सकता है. लोग कह सकते हैं कि ऐसे मजाक किसी नुकसान के नहीं होते, तो उनको बेवजह तूल क्यों देना? ठीक है आप अपनी ही चमड़ी को मोटा कर लो, जो हो रहा है, होने दे, लेकिन क्या ऐसा करना सही बात है?

बता दें, नस्लवाद के मुद्दे ने आम तौर पर क्रिकेट को हिलाकर रख दिया है, जिसमें वेस्टइंडीज के क्रिकेटर्स विरोध में सबसे आगे हैं. अजीम रफीक विवाद के बाद उनके काउंटी सेटअप को हिला देने के बाद इंग्लैंड ने भी अपनी प्रणाली में संस्थागत परिवर्तन करने की कोशिश की है.

हैमिल्टन: कीवी के पूर्व क्रिकेटर रॉस टेलर ने गुरुवार को अपनी बायोग्राफी में न्यूजीलैंड क्रिकेट में नस्लवाद के बारे में खुलासा किया है. 'रॉस टेलर ब्लैक एंड व्हाइट' शीर्षक से अपनी बायोग्राफी में टेलर ने वर्णन किया कि न्यूजीलैंड में क्रिकेट एक साफ सुथरा खेल था और उन्होंने ड्रेसिंग रूम के अंदर नस्लवाद का अनुभव किया, क्योंकि वहां उन्हें 'बंटर' कह कर बुलाया जाता था.

टेलर ने कहा, न्यूजीलैंड में क्रिकेट को अच्छा खेल माना जाता है. अपने अधिकांश करियर मैं एक अलग खिलाड़ी रहा हूं. पूरी टीम में मैं अकेला भूरा चेहरे वाला खिलाड़ी था. इसकी अपनी चुनौतियां थीं, क्योंकि आपके साथियों और जनता मुझे अलग-अलग तरह से संबोधित करते थे. न्यूजीलैंड हेराल्ड में प्रकाशित बायोग्राफी के एक अंश में टेलर ने लिखा, यह देखते हुए कि पॉलिनेशियन समुदाय का खेल में कम प्रतिनिधित्व है. यह शायद कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि लोग कभी-कभी यह मान लेते हैं कि मैं माओरी या भारतीय हूं.

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उन्होंने कहा, एक स्पोर्ट्स डिग्री के हिस्से के रूप में विश्वविद्यालय में मीडिया में नस्लवाद का अध्ययन करने के बाद विक्टोरिया ने शायद उन चीजों पर ध्यान दिया, जो कई अन्य लोगों ने नहीं देखा था. टेलर ने इस साल अप्रैल में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया था, जिसमें उन्होंने 112 टेस्ट, 236 वनडे और 102 टी-20 अंतर्राष्ट्रीय मैच खेले थे.

टेलर ने कहा, कई मायनों में ड्रेसिंग-रूम का मजाक काफी कुछ कह जाता है. टीम का एक साथी मुझसे कहता था, रॉस, तुम आधे अच्छे आदमी हो. लेकिन कौन सा आधा अच्छा है? ये बात आप नहीं जान सकते. अन्य खिलाड़ियों को भी अपनी जातीयता पर आधारित टिप्पणियों के साथ आना पड़ा. ऐसे लोग आपस में एक दूसरे को सही भी नहीं करते, क्योंकि वे एक दूसरे के मजाक को सफेद चमड़ी वाले इंसान की तरह सुनते हैं जो उन पर नहीं होता.

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समस्या तब आती है, जब आप उनको सही करने की कोशिश करते हो. लेकिन नहीं कर पाते, क्योंकि ऐसा करने से आप बड़ी समस्या को दावत दे रहे हो. आप पर नस्लीय शिकार होने का कार्ड खेलने वाले इंसान का टैग लगाया जा सकता है. लोग कह सकते हैं कि ऐसे मजाक किसी नुकसान के नहीं होते, तो उनको बेवजह तूल क्यों देना? ठीक है आप अपनी ही चमड़ी को मोटा कर लो, जो हो रहा है, होने दे, लेकिन क्या ऐसा करना सही बात है?

बता दें, नस्लवाद के मुद्दे ने आम तौर पर क्रिकेट को हिलाकर रख दिया है, जिसमें वेस्टइंडीज के क्रिकेटर्स विरोध में सबसे आगे हैं. अजीम रफीक विवाद के बाद उनके काउंटी सेटअप को हिला देने के बाद इंग्लैंड ने भी अपनी प्रणाली में संस्थागत परिवर्तन करने की कोशिश की है.

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