वाराणसी: महिला समानता दिवस पर हम आपको ऐसी महिलाओं से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने पुरुष प्रधान देश में रहकर वह काम कर दिखाया, जिस पर कभी पुरुष अपना आधिपत्य समझते थे. ये वो गृहणियां हैं, जिन्होंने मुगलकालीन कारीगरी गुलाबी मीनाकारी में अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई. ये महिलाएं गुलाबी मीनाकारी से अपने सपने को साकार कर रही हैं.
बता दें कि गुलाबी मीनाकारी एक बेहतरीन कला है, जो मुगलिया सल्तनत के द्वारा काशी आई. मुगल काल में जब यह कलाकारी काशी में आई तो यहां के कारीगरों ने इसे आत्मसात कर लिया और उसके बाद धीरे-धीरे उसमें और रमने लगे. वो इसे एक नई पहचान देने में जुट गए. हालांकि बीच में यह कारीगरी हाशिए पर चली गई थी, लेकिन जब सरकार का साथ मिला और जीआई टैग दिया गया. तो इस काम को जैसे संजीवनी मिल गई.
इसके बाद पुरुषों के आधिपत्य वाली इस कारीगरी को अब महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर कर रही हैं.सरकार की ओर से महिलाओं को इस कारीगरी को सीखने के लिए प्रत्येक दिन 300 रुपये के हिसाब से मेहनताना भी दिया जाता है, जिससे यह महिलाएं अपनी जरूरतों को पूरा कर सके. इससे जुड़ी महिलाएं बताती हैं कि अब उनकी ट्रेनिंग लगभग पूरी हो गई है और वह वर्तमान समय में 15 से 20 हजार रुपये कमा लेती हैं.
महिलाओं का कहना है कि वह अपने गृहस्थी में हाथ बंटाने के साथ-साथ अपने परिवार की आर्थिक मदद भी कर पा रही हैं. इससे उनमें एक नया आत्मविश्वास पैदा हो रहा है और वह आगे भी इस कारीगरी को ऐसे ही करती रहेंगी और स्वावलंबी बनेंगी.
प्रधानमंत्री मोदी भी इस कला की तारीफ कर चुके हैं. पीएम मोदी जब वाराणसी आए थे, तब गाय घाट पर रहने वाली शालिनी ने अपनी कलाकारी पीएम मोदी को भी दिखाई थी. इसके बाद पीएम मोदी ने उन महिला कारिगरों की तारीफ की थी. शालिनी कहती हैं कि प्रधानमंत्री के उत्साहवर्धन और मीनाकारी को जीआई टैग मिलने से इस कलाकारी को मानो संजीवनी मिल गई हो. अब यह आगे बढ़ रही है. इससे महिलाएं सशक्त हो रही हैं.वहीं राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कुंज बिहारी सिंह बताते हैं कि पहले इस क्षेत्र में पुरुषों का वर्चस्व हुआ करता था, लेकिन धीरे-धीरे इसमें महिलाएं भी अपनी भागीदारी कर रही हैं. वर्तमान में बड़ी संख्या में महिलाएं इस कारीगरी से जुड़कर इसे आगे लेकर जा रही हैं. उन्होंने बताया कि जब हमें जरूरत हुई है, तब महिलाओं ने हमारी मदद कर गुलाबी मीनाकारी को एक अलग उड़ान दी.
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कोरोना काल में जब सारे उद्योग धंधे ठप हो चुके थे, लोगों ने बाहर निकलना बंद कर दिया था तब महिलाओं ने मोर्चा संभाला और उन दिनों में जो आर्डर मिले थे, उस पर काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने बताया कि महिलाओं ने मिलकर दूसरी लहर में 18 लाख रुपए से ज्यादा का व्यवसाय किया था और वर्तमान में भी यह लोग विदेशों से मिलने वाले ऑर्डरों को पूरा कर रही हैं. आज भी हमारे देश में महिला देवी के रूप में पूजी जाती हैं. गुलाबी मीनाकारी के क्षेत्र में महिलाओं ने अपने हुनर को दिखाकर एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि वो किसी से कम नहीं हैं.