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आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ता ने हथकरघा बुनकरों के लिए बनायी एर्गाेनॉमिक कुर्सी

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के एक शोधकर्ता ने एर्गाेनॉमिक कुर्सी (ergonomic chair) तैयार की है. ये कुर्सी खास तौर पर हथकरघा बुनकरों के लिए बनायी गयी है.

iit bhu researcher made ergonomic chair for weavers varanasi news
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Published : Aug 6, 2021, 11:01 PM IST

वाराणसी: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग की टीम ने पिटलूम का उपयोग करने वाले बुनकरों के लिए एर्गाेनॉमिक कुर्सी बनायी है. आईआईटी बीएचयू की रिसर्च टीम के अनुसार, यह सीट बुनकरों को पीठ को सहारा देने और जांघों को आराम देने में मदद करेगी. इसलिए, बुनकरों को काम से संबंधित मस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर (musculoskeletal disorders) होने का खतरा कम होगा.


मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. प्रभास भारद्वाज ने बताया कि वाराणसी के हथकरघा उद्योग में बुनकरों को एक जगह बैठकर रोजाना कम से कम 12 घंटे तक काम करना पड़ता है. इस वजह से उन्हें कई बार मस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर की समस्या होती है. वाराणसी में किए गए सर्वे के मुताबिक ज्यादातर बुनकरों को कमर और जांघ में दर्द होता है. इसका कारण यह है कि बुनकरों के पास उचित बैक सपोर्ट नहीं होता है.

वे समतल लकड़ी के तख्त पर बैठेते हैं. इसलिए, काम के दौरान उनकी पीठ को सहारा देने के लिए एक विशेष सीट तैयार की गई है. यह बुनकरों को अधिक उत्पादक बनाने में मदद करेगी. इस एर्गोनॉमिक चेयर की डिजाइन बनाने वाले संस्थान के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के रिसर्च स्कॉलर एम कृष्ण प्रसन्ना नाइक ने बताया कि बुनकरों के लिए एक गड्ढे वाले करघे (पिटलुम) पर पूरे दिन काम करना बहुत कठिन होता है.

ये भी पढ़ें- भाजपा नेता ने CM योगी को लिखा पत्र, आप लखनऊ पूर्वी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की कृपा करें!

उनकी पीठ को समतल तख्त से कोई सहारा नहीं मिलता है. शोध में पाया गया कि न केवल बूढ़े, बल्कि युवा बुनकर भी एमएसडी का सामना कर रहे हैं. शरीर में दर्द के कारण बुनकर सुबह की अपेक्षा दोपहर की पाली में अधिक काम का अवकाश लेते हैं. इसलिए बुनकरों को एर्गाेनॉमिक डिज़ाइन की सीट, एमएसडी की समस्या से निजात दिलाने में मदद करती है. इस सीट का निर्माण भी आसान है. कोई भी बुनकर इसे अपने करघे के लिए बना सकता है.


उन्होंने कहा कि पहले उन्होंने बुनकरों की लंबाई, चौड़ाई, वजन, बैठने पर कमर की साइज, पीठ के आकार की नाप ली. उसके बाद लकड़ी की कुर्सी की डिजाइन तैयार की. इस कुर्सी में ऐसी व्यवस्था की गई है कि बुनकर उसे अपने साइज़ के आधार पर सेट कर सकता है.

रामनगर स्थित सहकारी समिति के अध्यक्ष अमरेश कुशवाहा ने बताया कि बुनकर 5-6 घंटे काम करने के बाद शरीर के दर्द के कारण काम से छुट्टी लेते थे. इससे उत्पादन कम हो जाता था. अब हम एर्गाेनॉमिक सीट का उपयोग कर रहे हैं. इस सीट का इस्तेमाल करने वाले बुनकरों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि इस कुर्सी की वजह से वो लंबे समय तक काम करने में सक्षम हो गए हैं. वो यह सीट अपने सभी मौजूदा करघों के लिए उपलब्ध कराने की व्यवस्था कर रहे हैं.

वाराणसी: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग की टीम ने पिटलूम का उपयोग करने वाले बुनकरों के लिए एर्गाेनॉमिक कुर्सी बनायी है. आईआईटी बीएचयू की रिसर्च टीम के अनुसार, यह सीट बुनकरों को पीठ को सहारा देने और जांघों को आराम देने में मदद करेगी. इसलिए, बुनकरों को काम से संबंधित मस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर (musculoskeletal disorders) होने का खतरा कम होगा.


मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. प्रभास भारद्वाज ने बताया कि वाराणसी के हथकरघा उद्योग में बुनकरों को एक जगह बैठकर रोजाना कम से कम 12 घंटे तक काम करना पड़ता है. इस वजह से उन्हें कई बार मस्कुलोस्केलेटल डिसऑर्डर की समस्या होती है. वाराणसी में किए गए सर्वे के मुताबिक ज्यादातर बुनकरों को कमर और जांघ में दर्द होता है. इसका कारण यह है कि बुनकरों के पास उचित बैक सपोर्ट नहीं होता है.

वे समतल लकड़ी के तख्त पर बैठेते हैं. इसलिए, काम के दौरान उनकी पीठ को सहारा देने के लिए एक विशेष सीट तैयार की गई है. यह बुनकरों को अधिक उत्पादक बनाने में मदद करेगी. इस एर्गोनॉमिक चेयर की डिजाइन बनाने वाले संस्थान के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के रिसर्च स्कॉलर एम कृष्ण प्रसन्ना नाइक ने बताया कि बुनकरों के लिए एक गड्ढे वाले करघे (पिटलुम) पर पूरे दिन काम करना बहुत कठिन होता है.

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उनकी पीठ को समतल तख्त से कोई सहारा नहीं मिलता है. शोध में पाया गया कि न केवल बूढ़े, बल्कि युवा बुनकर भी एमएसडी का सामना कर रहे हैं. शरीर में दर्द के कारण बुनकर सुबह की अपेक्षा दोपहर की पाली में अधिक काम का अवकाश लेते हैं. इसलिए बुनकरों को एर्गाेनॉमिक डिज़ाइन की सीट, एमएसडी की समस्या से निजात दिलाने में मदद करती है. इस सीट का निर्माण भी आसान है. कोई भी बुनकर इसे अपने करघे के लिए बना सकता है.


उन्होंने कहा कि पहले उन्होंने बुनकरों की लंबाई, चौड़ाई, वजन, बैठने पर कमर की साइज, पीठ के आकार की नाप ली. उसके बाद लकड़ी की कुर्सी की डिजाइन तैयार की. इस कुर्सी में ऐसी व्यवस्था की गई है कि बुनकर उसे अपने साइज़ के आधार पर सेट कर सकता है.

रामनगर स्थित सहकारी समिति के अध्यक्ष अमरेश कुशवाहा ने बताया कि बुनकर 5-6 घंटे काम करने के बाद शरीर के दर्द के कारण काम से छुट्टी लेते थे. इससे उत्पादन कम हो जाता था. अब हम एर्गाेनॉमिक सीट का उपयोग कर रहे हैं. इस सीट का इस्तेमाल करने वाले बुनकरों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि इस कुर्सी की वजह से वो लंबे समय तक काम करने में सक्षम हो गए हैं. वो यह सीट अपने सभी मौजूदा करघों के लिए उपलब्ध कराने की व्यवस्था कर रहे हैं.

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