सहारनपुर: आधुनिकता के दौर में आज का युवा न सिर्फ अपनी संस्कृति से भटक रहा है बल्कि दैवीय भाषा संस्कृत को भी भूल चुका है. संस्कृत विद्वान एवं संस्कृत भारती के संगठन मंत्री आचार्य प्रताप सिंह ने बताया कि एक समय था जब संस्कृत भाषा के यूरोप में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया अपनी पहचान रखती थी.
पिछले दो दशक से अंग्रेजी माध्यम के चलते अभिभावकों और छात्र छात्राओं का रुझान अंग्रेजी की ओर जा रहा है. इसके चलते छात्र छात्राएं दैवीय भाषा संस्कृत को भूलते जा रहे हैं. आलम यह है कि स्कूल कॉलेजों में संस्कृत भाषा की पढ़ाई भी नाम मात्र की रह गई है. यही वजह है कि अब संस्कृत के साथ भारतीय संस्कृति भी खतरे में पड़ गई है.
संस्कृति से भटकी युवा पीढ़ी
सभी देश संस्कृत भाषा के चलते भारतवर्ष को विश्वगुरु मानते थे, लेकिन ईस्टर्न देशों की सभ्यता को देखते हुए भारतीयों ने अपनी संस्कृति को छोड़ अंग्रेजी सभ्यता को अपना लिया. धीरे धीरे सभी लोग संस्कृत भाषा को भी भूलने लगे हैं. आज का युवा पूरी तरह से अपनी संस्कृति से भटक गई है. संस्कृत और संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए प्रयास किये जा रहे हैं.
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ईटीवी के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत भारती संस्कृत भाषा को बचाने के लिए लोगों को जागरूक कर रहा है. आम आदमी तक संस्कृत भाषा को पहुंचाया जा रहा है ताकि हर कोई संस्कृत पढ़े, संस्कृत लिखे और संस्कृत भाषा में बात करे. सभी भारतीयों को संस्कृत भाषा के महत्व का समझने की जरूरत है, जिससे संस्कृत भाषा का उत्थान हो और भारतीय संस्कृति को बचाया जा सके.