लखनऊ : राजधानी के हजरतगंज स्थित वीरांगना झलकारी बाई महिला अस्पताल में गर्भवती महिलाओं का तांता लगा रहता है. रोजाना अस्पताल की ओपीडी में डेढ़ सौ से अधिक गर्भवती महिलाएं इलाज के लिए आतीं हैं. इसमें रोजाना 50 से अधिक महिलाओं का अल्ट्रासाउंड होना होता है. कई बार महिलाओं को हताश होकर वापस लौटना पड़ता है क्योंकि अस्पताल में अल्ट्रासाउंड के लिए एक ही डॉक्टर है. वह रोजाना 40 गर्भवती महिलाओं का अल्ट्रासाउंड करतीं हैं.
शनिवार को महिला अस्पताल की ओपीडी में गर्भवती महिलाओं का इलाज के लिए तांता लगा रहा. अल्ट्रासाउंड कक्ष के बाहर सभी महिलाएं अपने नंबर का सुबह 8 बजे से इंतजार करती रहीं. 11:30 बजे पहली निशातगंज की पूजा का अल्ट्रासाउंड होना था लेकिन उसका अल्ट्रासाउंड रोक दिया गया. पहले इमरजेंसी में भर्ती हुई एक महिला का अल्ट्रासाउंड हुआ. इसके चलते अन्य गर्भवती महिलाओं को घंटों इंतजार करना पड़ा. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है कि अस्पताल में सिर्फ एक ही डॉक्टर है जो अल्ट्रासाउंड करती हैं. एक डॉक्टर होने के कारण सुबह से गर्भवती महिलाएं अस्पताल आ जाती हैं और शाम तक बिना खाये पिये अल्ट्रासाउंड के लिए इंतजार करती हैं. हालांकि अस्पताल में मौजूद एक डॉक्टर रोजाना 40 गर्भवतियों का अल्ट्रासाउंड करती हैं.
अल्ट्रासाउंड कक्ष के बाहर खड़ी प्राची गुप्ता ने बताया, 'डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड की जांच कराने के लिए कहा है. मैं सुबह 9 बजे से पर्चा बनवा कर बैठी हूं. चौथे नंबर पर उनकी बारी है लेकिन कुछ इमरजेंसी केस भी आ रहे हैं. इस कारण विलंब हो रहा है'. वहीं राजाजीपुरम से अल्ट्रासाउंड कराने आईं वैशाली दुबे ने बताया, 'मेरा पांचवां महीना चल रहा है. डॉक्टर के मुताबिक आज की तारीख अल्ट्रासाउंड के लिए मिली है. सातवें नंबर पर मेरा अल्ट्रासाउंड होना है. फिलहाल अभी मेरा नंबर नहीं आया है. इसलिए इंतजार कर रहे हैं'. वैशाली ने कहा कि अल्ट्रासाउंड कक्ष में एक ही डॉक्टर हैं जो सभी का अल्ट्रासाउंड कर रही हैं, इसलिए कर्मचारियों ने कहा है कि थोड़ा समय लगेगा लेकिन सभी का अल्ट्रासाउंड होगा.
सीएमएस डॉ. रंजना खरे के मुताबिक "अस्पताल में सिर्फ एक ही डॉक्टर हैं, जो अल्ट्रासाउंड करती हैं. इस समय अस्पताल में काफी महिलाएं आ रही हैं. ऐसे में एक डॉक्टर के ऊपर ही पूरा लोड है. वहीं हर महीने होने वाली जांच भी जरूरी है. जिन गर्भवती महिलाओं को अल्ट्रासाउंड की डेट दी जाती है, उनका अल्ट्रासाउंड जरूरी होता है. हमें मालूम है कि अस्पताल में एक ही डॉक्टर है इस कारण गर्भवती महिलाओं की तारीख हम थोड़ी लंबी रखते हैं. ताकि डॉक्टर के ऊपर अधिक अल्ट्रासाउंड का भार न पड़े."
रोज हो रहे 40 अल्ट्रासाउंड : डॉ. कामिनी ने कहा कि हमें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है कि हमारे अस्पताल में कोई आए और हताश-निराश होकर यहां से वापस लौटे. हमारी पूरी कोशिश यही होती है कि जितनी भी गर्भवती महिलाएं यहां पर आ रही हैं, उन्हें अच्छा इलाज मिले. कई बार न चाहते हुए भी महिलाएं यहां से हताश होकर लौटतीं हैं. 9 महीने के दौरान तीन बार अल्ट्रासाउंड होना जरूरी होता है ऐसे में कई बार जब महिलाओं की डेट आती है, उस समय अल्ट्रासाउंड के लिए भीड़ हो जाती है. ऐसे में उन्हें अगली डेट दी जाती है. तब काफी बुरा लगता है कि उन्हें हताश होकर वापस लौटना पड़ रहा है जो कि हम करना नहीं चाहते लेकिन मजबूरी है. उन्होंने कहा कि एक दिन में हम एवरेज 40 अल्ट्रासाउंड करते हैं. अगर हम इससे ज्यादा करने लगे तो गुणवत्ता में खराबी आ जाएगी. हमें हर चीज देखनी होती है कि रिपोर्ट कैसी आ रही है.
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उन्होंने कहा कि पहले तीन डॉक्टर अल्ट्रासाउंड कक्ष में हुआ करते थे लेकिन दो डॉक्टर रिटायर हो चुके हैं. इस समय सिर्फ मैं अल्ट्रासाउंड करती हूं, इसलिए काफी काम का भार रहता है. कभी इमरजेंसी में छुट्टी लेते हैं तो अल्ट्रासाउंड कक्ष के बाहर बोर्ड लगाना पड़ता है कि आज डॉक्टर छुट्टी पर हैं. ऐसे में गर्भवती महिलाएं अल्ट्रासाउंड के लिए आती हैं लेकिन बोर्ड देखकर वापस चली जाती हैं. अगर अल्ट्रासाउंड कक्ष में एक डॉक्टर और नियुक्त हो जाये तो काम में काफी ज्यादा मदद मिल जाती. कोई एक डॉक्टर छुट्टी पर जाता फिर भी एक डॉक्टर के द्वारा अल्ट्रासाउंड कक्ष चलता रहता.
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