लखनऊ : केंद्र सरकार ने कोयले की कमी को पूरा करने के लिए सभी राज्यों को 10 फीसदी विदेशी कोयला खरीदने के निर्देश जारी किए थे. तमाम राज्य खरीद भी रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने विदेशी कोयला खरीदने से साफ मना कर दिया था. वजह है कि देशी कोयले से विदेशी कोयला कई गुना ज्यादा महंगा है. भले ही योगी सरकार ने अभी तक विदेशी कोयला न खरीदा हो, लेकिन अब केंद्र सरकार की तरफ से कोयला खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है. ऐसे में दो माह के लिए प्रदेश सरकार को भी विदेशी कोयला खरीदना पड़ सकता है. यह कहना है उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का.
केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के दबाव में प्रदेश की सरकारी व निजी उत्पादन इकाइयों को आगामी दो माह के लिए लगभग 5.5 लाख मीट्रिक टन विदेशी कोयला कोल इंडिया से लेना पड़ सकता है. कोल इंडिया लगातार उत्तर प्रदेश को आवंटित घरेलू कोयले की मात्रा में कटौती कर रहा है. वर्तमान में एनटीपीसी की तरफ से जो विदेशी कोयले का रेट डिस्कवर हुआ है वह लगभग 20000 रुपए प्रति मीट्रिक टन है. ऐसे में अगर उत्तर प्रदेश दो महीने के लिए चार फीसद विदेशी कोयले की खरीद को हरी झंडी देगा तो लगभग 1098 से 1100 करोड़ रुपए के बीच खर्च आयेगा. हालांकि इस अतिरिक्त खर्च की भरपाई प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं से नहीं होगी ऐसी जानकारी भी है.
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा यह बहुत ही गंभीर मामला है कि देश में डोमेस्टिक कोयले की जो भाड़ा सहित लागत आ रही है, वह लगभग 3000 रुपये प्रति मीट्रिक टन है. वहीं विदेशी कोयले की लागत अब 20000 रुपया प्रति मीटिक टन के करीब पहुंच गई है. ऐसे में सीधे तौर पर भले ही इसका खामियाजा प्रदेश के उपभोक्ताओं पर ना पडे़, लेकिन प्रदेश पर कोई भी भार पड़ता है तो उसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता है. इस पूरी डील में एक निजी घराने का सबसे ज्यादा लाभ होने वाला है.
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अवधेश वर्मा ने कहा कि उपभोक्ता परिषद अपनी लड़ाई आगे जारी रखेगा और विधिक तरीके से अपनी पेशबंदी के तहत प्रदेश के उपभोक्ताओं को राहत दिलाने के लिए संघर्ष करता रहेगा.
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