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राजधानी के इन अस्पतालों में नहीं हैं यह सुविधाएं, कागजों तक सीमित घोषणाएं

राजधानी के अस्पतालों में रोजाना हजारों की संख्या में मरीज पहुंचते हैं. इन मरीजों के लिये नई सुविधाओं की घोषणा भी की जाती है. योजनाओं के कागज तक ही सीमित रहने से मरीजों को भटकना पड़ रहा है.

केजीएमयू
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Published : Jun 28, 2022, 5:11 PM IST

लखनऊ : राजधानी के केजीएमयू, सिविल, लोहिया, बलरामपुर समेत अन्य अस्पतालों में रोजाना हजारों की संख्या में मरीज पहुंचते हैं. इन मरीजों के लिये नई सुविधाओं की घोषणा की जाती है, लेकिन यह घोषणाएं धरातल पर उतरती हुई नजर नहीं आती हैं. इन अस्पतालों में कई योजनाएं कागजों तक ही सीमित हैं. जिसके चलते मरीजों को भटकना पड़ रहा है.

कहां बनेगा अस्पताल यह तय नहीं : केजीएमयू प्रशासन द्वारा इनफेक्शियस डिजीज अस्पताल का प्रपोजल कई वर्ष पहले तैयार किया गया था. करीब 400 करोड़ बजट वाले 200 बेड के अस्पताल को बनाने की तैयारी चल रही है. जिसे 300 बेड तक किया जा सकेगा. इसमें हर प्रकार के संक्रामक रोगों से संबंधित मरीजों का इलाज होगा. अभी तक यह अस्पताल कहां बनेगा यह तय नहीं हो पाया है. इसके अलावा रोबोटिक सर्जरी को भी शुरू होना था, लेकिन मशीन अब तक नहीं आ पाई है. ऐसे में मरीजों को एडवांस सर्जरी का अब तक इंतजार है.

सिविल अस्पताल
सिविल अस्पताल



लोहिया संस्थान : यहां 500 बेड का सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनाया जाना प्रस्तावित किया गया था. इसके लिए शासन ने राशि भी जारी कर दी थी. इसमें बर्न यूनिट, लिवर ट्रांसप्लांट, जेनेटिक्स, इंडोक्राइन, इम्यूनोलॉजी, स्ट्रोक यूनिट समेत करीब 18 नए सुपर स्पेशियलिटी विभाग शुरू किये जाने थे. इसे शहीद पथ के पास बनाने का फैसला लिया गया था, लेकिन अब तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है. ऐसे में यह भी महज घोषणा भर रह गई है.

सिविल अस्पताल : यहां 2018 से कैथ लैब बंद पड़ी है. इसे अब तक शुरू नहीं किया जा सका है. जबकि यहां रोजाना 150 से 200 मरीज दिखाने के लिए आते हैं, लेकिन एंजियोग्राफी के लिए मरीजों को दूसरे अस्पताल रेफर कर दिया जाता है. ऐसे में मरीजों को इलाज के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है या फिर निजी अस्पताल जाकर महंगा इलाज करवाना पड़ रहा है.

लोहिया संस्थान
लोहिया संस्थान



बलरामपुर अस्पताल : तमाम दावों के बावजूद यहां अब तक एमआरआई (मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग) की सुविधा शुरू नहीं हो सकी है. जबकि यहां ढाई करोड़ की मशीन लगाई जानी है. डॉक्टरों द्वारा रोजाना यहां 30 से 35 मरीजों को एमआरआई जांच लिखी जाती है. वहीं शासन द्वारा मशीन लगाये जाने के निर्देश दिये जा चुके हैं.

ये भी पढ़ें : खेती-किसानी में नए अभिनव प्रयोग को बढ़ावा देगी सरकार, ये है योजना

लोकबंधु अस्पताल : यहां 300 से अधिक बेड हैं. यहां रोजाना 1500 से 1700 मरीज आते हैं. यहां पर सर्जरी और डिलीवरी भी कराई जाती है, लेकिन बावजूद इसके अस्पताल में ब्लड बैंक नहीं है. जिससे मरीजों को बड़ी परेशानी होती है.

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लखनऊ : राजधानी के केजीएमयू, सिविल, लोहिया, बलरामपुर समेत अन्य अस्पतालों में रोजाना हजारों की संख्या में मरीज पहुंचते हैं. इन मरीजों के लिये नई सुविधाओं की घोषणा की जाती है, लेकिन यह घोषणाएं धरातल पर उतरती हुई नजर नहीं आती हैं. इन अस्पतालों में कई योजनाएं कागजों तक ही सीमित हैं. जिसके चलते मरीजों को भटकना पड़ रहा है.

कहां बनेगा अस्पताल यह तय नहीं : केजीएमयू प्रशासन द्वारा इनफेक्शियस डिजीज अस्पताल का प्रपोजल कई वर्ष पहले तैयार किया गया था. करीब 400 करोड़ बजट वाले 200 बेड के अस्पताल को बनाने की तैयारी चल रही है. जिसे 300 बेड तक किया जा सकेगा. इसमें हर प्रकार के संक्रामक रोगों से संबंधित मरीजों का इलाज होगा. अभी तक यह अस्पताल कहां बनेगा यह तय नहीं हो पाया है. इसके अलावा रोबोटिक सर्जरी को भी शुरू होना था, लेकिन मशीन अब तक नहीं आ पाई है. ऐसे में मरीजों को एडवांस सर्जरी का अब तक इंतजार है.

सिविल अस्पताल
सिविल अस्पताल



लोहिया संस्थान : यहां 500 बेड का सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनाया जाना प्रस्तावित किया गया था. इसके लिए शासन ने राशि भी जारी कर दी थी. इसमें बर्न यूनिट, लिवर ट्रांसप्लांट, जेनेटिक्स, इंडोक्राइन, इम्यूनोलॉजी, स्ट्रोक यूनिट समेत करीब 18 नए सुपर स्पेशियलिटी विभाग शुरू किये जाने थे. इसे शहीद पथ के पास बनाने का फैसला लिया गया था, लेकिन अब तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है. ऐसे में यह भी महज घोषणा भर रह गई है.

सिविल अस्पताल : यहां 2018 से कैथ लैब बंद पड़ी है. इसे अब तक शुरू नहीं किया जा सका है. जबकि यहां रोजाना 150 से 200 मरीज दिखाने के लिए आते हैं, लेकिन एंजियोग्राफी के लिए मरीजों को दूसरे अस्पताल रेफर कर दिया जाता है. ऐसे में मरीजों को इलाज के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है या फिर निजी अस्पताल जाकर महंगा इलाज करवाना पड़ रहा है.

लोहिया संस्थान
लोहिया संस्थान



बलरामपुर अस्पताल : तमाम दावों के बावजूद यहां अब तक एमआरआई (मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग) की सुविधा शुरू नहीं हो सकी है. जबकि यहां ढाई करोड़ की मशीन लगाई जानी है. डॉक्टरों द्वारा रोजाना यहां 30 से 35 मरीजों को एमआरआई जांच लिखी जाती है. वहीं शासन द्वारा मशीन लगाये जाने के निर्देश दिये जा चुके हैं.

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लोकबंधु अस्पताल : यहां 300 से अधिक बेड हैं. यहां रोजाना 1500 से 1700 मरीज आते हैं. यहां पर सर्जरी और डिलीवरी भी कराई जाती है, लेकिन बावजूद इसके अस्पताल में ब्लड बैंक नहीं है. जिससे मरीजों को बड़ी परेशानी होती है.

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