लखनऊ : चाइल्ड ट्रैफिकिंग का मतलब होता है बच्चों की तस्करी. बच्चों को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाकर दबाव बनाकर काम कराना या बच्चे से कोई गलत काम कराना बाल श्रम कराना यह सभी चाइल्ड ट्रैफिकिंग के अंतर्गत आता है. जेजे एक्ट कहता है कि 1 से 18 वर्ष के नाबालिक बच्चे चाइल्ड ट्रैफिकिंग के तहत आते हैं. अगर इन्हें कोई बहला-फुसलाकर गलत काम कराना चाहता है या दबाव डाल रहा है तो इसके लिए उस व्यक्ति को सजा के साथ-साथ जुर्माना भी देना पड़ेगा. प्रदेश में चाइल्ड ट्रैफिकिंग के कई मामले उत्तर प्रदेश बाल आयोग में आते हैं. शिकायत के तहत उन मामलों की तह तक जाकर बच्चे की ट्रैफिकिंग को रोका जाता है. यह बातें ईटीवी भारत से बातचीत करने के दौरान राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य सुचिता चतुर्वेदी ने कहीं. उन्होंने बताया कि एक महीने तक चाइल्ड ट्रैफिकिंग अवेयरनेस प्रोग्राम चलाया जा रहा है.
उन्होंने बताया कि बाल तस्करी अनेकों प्रकार से देखने को मिलेगी. कई बार देख कर हमें हैरानी भी होती है. हाल ही में अभी लखनऊ के चारबाग से एक चाइल्ड ट्रैफिकिंग का मामला आया था. जिसकी शिकायत उत्तर प्रदेश बाल आयोग में हुई. इसके बाद मामले की तह तक जाकर उसके बारे में पता किया गया. रेस्क्यू के दौरान बहुत सारे बच्चे मिलते हैं जो बाल श्रम नहीं करना चाहते, आगे पढ़ना चाहते हैं.
उन्होंने बताया कि एक महीने तक चाइल्ड ट्रैफिकिंग अवेयरनेस प्रोग्राम चलाया जा रहा है. इसके तहत आम पब्लिक को जागरूक करने का कार्य आयोग कर रहा है. पिछले महीने में बाल तस्करी के चार बड़े केस बाल आयोग में आए थे. एक व्यक्ति की तस्करी में 7 से 10 वर्ष का कारावास और जुर्माना, एक से अधिक व्यक्तियों की तस्करी में 10 साल के कारावास से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माना, नाबालिक की तस्करी के लिए 10 वर्ष के कारावास से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माना, एक से अधिक नाबालिक व्यक्ति की तस्करी में आजीवन कारावास और जुर्माना, तस्करी में शामिल लोगों को आजीवन कारावास और जुर्माने का प्रावधान भी है.
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