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NRHM SCAM : जानिए किस स्पेशल डीजी ने 'बेगुनाह बाहुबली' को बचाने को लिया था सरकार से लोहा

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Published : Jul 23, 2022, 5:42 PM IST

Updated : Jul 23, 2022, 5:48 PM IST

डिप्टी सीएमओ वाईएस सचान की मौत को सीबीआई की विशेष अदालत ने हत्या माना है. कोर्ट ने 8 अगस्त को तत्कालीन डीजीपी से लेकर सभी जेल अधिकारियों को तलब किया है.

सीएमओ हत्याकांड
सीएमओ हत्याकांड

लखनऊ : डिप्टी सीएमओ वाईएस सचान की मौत को सीबीआई की विशेष अदालत ने हत्या माना है. अब कोर्ट हत्या का मामला मान कर ही सुनवाई करेगी. कोर्ट ने 8 अगस्त को तत्कालीन डीजीपी से लेकर सभी जेल अधिकारियों को तलब किया है. ऐसे में अब उन दो सीएमओ हत्याकांड की परत भी खुल रही है जो उसी दौरान हुई थी. आज हम सीएमओ विनोद आर्य व बीपी सिंह की हत्या की अनसुनी कहानी के बारे में बताएंगे कि कैसे एक बाहुबली को यूपी पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने हत्या के आरोपों से बरी कराया था.

उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार थी. मायावती अपनी सरकार के तीन साल पूरी चुकी थीं. राज्य के सबसे बड़े राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) घोटाले का सामना कर रही थीं. घोटाले के बीच राजधानी में दो सीएमओ की हत्या ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. इन सनसनीखेज हत्याओं का आरोपी बना था पूर्वांचल का एक ऐसा माफिया जो अब माननीय है. हत्या का खुलासा किया गया, माफिया को जेल भेजा गया और पुलिसकर्मियों को इनाम भी दिया गया. खास बात ये रही कि यूपी पुलिस के नंबर दो के अधिकारी ने अपनी ही सरकार से लोहा लेकर इस माफिया को हत्या के केस से बरी कराया और असली हत्यारों को जेल भिजवाया. माफिया का नाम है अभय सिंह व उसे बचाने वाले अधिकारी थे तत्कालीन स्पेशल डीजी बृजलाल, जो बाद में डीजीपी बने और अब राज्यसभा सांसद हैं.

बातचीत करते संवाददाता गगनदीप मिश्रा




एनआरएचएम घोटाला आया सामने : साल 2010, उत्तर प्रदेश में 7 हजार करोड़ से भी अधिक का राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) घोटाला सामने आया था. इस घोटाले की आंच बड़े बड़े अधिकारियों तक पहुंचनी थी, लेकिन इस बात को अभी देर थी. फिलहाल घोटाला सामने आते ही अधिकारियों व नेताओं में हलचल बढ़ने लगी और साजिशें रची जाने लगीं. इस बीच 27 अक्टूबर 2010, को सुबह 6:30 बजे लखनऊ में सीएमओ परिवार कल्याण विनोद आर्य की विकास नगर के सेक्टर 14 स्थित उनके घर के पास 2 अज्ञात बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी. इस सनसनीखेज हत्या ने शहर में हड़कंप मचा दिया था. सरकार के सामने एनआरएचएम घोटाला पहले ही मुश्किलें खड़ी कर रहा था, ऐसे में उस बीच उसी विभाग के सीएमओ की हत्या ने हंगामा मचा दिया. इसी दौरान लखनऊ पुलिस को जल्द से जल्द हत्यारों को पकड़ने के निर्देश दिए जाते हैं.



बाहुबली अभय सिंह को किया गया गिरफ्तार : तत्कालीन स्पेशल डीजी बृजलाल के मुताबिक, डॉ. आर्य की हत्या के बाद वो खुद इस केस की इन्वेस्टिगेशन कर रहे थे. उन्होंने यह पाया था कि उस वक्त परिवार कल्याण विभाग के प्रॉजेक्ट डायरेक्टर रहे डिप्टी सीएमओ वाईएस सचान एनआरएचएम (NRHM) में आये बजट का बंदरबांट कर चुके थे और इसी की जानकारी डॉ. आर्य को जब हुई तो सचान से खर्च का ब्यौरा लेने लगे थे. इस बात से सचान परेशान हुए और डॉ. आर्य की हत्या की साजिश रच दी. अब तक यह सिर्फ इन्वेस्टिगेशन का हिस्सा महज था कोई सबूत नहीं था. ऐसे में सरकार पर इस हत्याकांड के खुलासे का प्रेशर था और सरकार नहीं चाहती थी कि इस केस में सीबीआई शामिल हो, क्योंकि अगर ऐसा होता तो सीबीआई NRHM घोटाले में भी घुस जाती. जिसके चलते जानबूझ कर लखनऊ पुलिस से फर्जी खुलासा कराया गया और अजय मिश्रा, विजय दुबे, अंशु दीक्षित, सुमित दीक्षित व जेल में बंद बाहुबली अभय सिंह को आरोपी बनाकर गिरफ्तार कर लिया गया. वहीं एक अन्य सीतापुर के अपराधी सुधाकर पांडेय को फरार दिखाया गया था. ये सभी आरोपी उस वक्त के खूंखार अपराधी थे. इस मामले में जल्दबाजी में चार्जशीट भी लगा दी गयी.



विनोद आर्य की हत्या के दौरान बाहुबली अभय सिंह फैज़ाबाद जेल में 120B के मामले में बंद थे. पुलिस ने अभय सिंह से पूछताछ करने के लिए रिमांड पर लिया और उन्हें लखनऊ लेकर चली आई. अभय सिंह को लखनऊ के अलीगंज थाने में रखकर पूछताछ की गई, लेकिन रिजल्ट शून्य रहा. अभय सिंह को वापस फैजाबाद जेल भेज दिया गया. पुलिस ने उस वक्त बताया था कि अभय सिंह ने अजय व विजय को 5 लाख में डॉ. आर्य की हत्या की सुपारी दी. जिसमें सुमित व अंशु भी शामिल थे. इस दौरान अभय सिंह ने खुद को बेकसूर साबित करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.


बृजलाल ने बताया कि सुधाकर पांडेय को छोड़कर डॉ. विनोद आर्य की हत्या के सभी आरोपी पुलिस की जद में थे, लेकिन जांच में माफिया अभय सिंह का किसी भी प्रकार का हाथ होना नहीं पाया गया था. ऐसे में वो नहीं चाहते थे कि अभय सिंह इस हत्या के मामले में आरोपी बने. लिहाजा उन्होंने इसका विरोध उस वक्त के सबसे मजबूत व कद्दावर अधिकारी कैबिनेट सचिव शशांक शेखर के सामने किया और कहा कि अभय सिंह का नाम इस हत्याकांड के मामले में न रखें. उन्होंने कहा कि भले ही ये सभी आरोपी आदतन अपराधी हों, लेकिन इस हत्याकांड में निर्दोष हैं. असली आरोपियों को न पकड़ने से कोई और बड़ी घटना भी घट सकती है.

बृजलाल के मुताबिक, उस वक्त इस हत्याकांड के केस से जुड़े सभी फैसले शासन स्तर पर लिए जा रहे थे, ऐसे में उनकी बात को अनसुना कर दिया गया. वहीं, अभय सिंह समेत सभी आरोपी जेल में थे. इसी बीच 6 महीने बाद एक और सीएमओ की हत्या की साजिश रची जा चुकी थी. बृजलाल के मुताबिक, डॉ. आर्य की हत्या करने के बाद डॉक्टर सचान को यह लगा कि अब कोई सीएमओ पोस्ट नहीं होगा और अगर होता भी है तो उसके काम मे दखल नहीं देगा. तभी डॉ. बीपी सिंह को विनोद आर्य की जगह तैनाती मिल गयी. बीपी सिंह भी डॉ. आर्य की ही तरह सचान से NRHM में आये बजट के खर्च का ब्यौरा मांगने लगे और उन पर कार्रवाई करने की धमकी देने लगे. जिससे डॉ. सचान फिर से घबरा गया.


13 गोलियां बरसाकर की गई थी हत्या : 2 अप्रैल 2011, वही पद, वही समय, हत्या का तरीका भी वही और हथियार भी वही. अब डॉ. विनोद आर्य की जगह पर तैनात हुए डॉ. बीपी सिंह की हत्या कर दी गई. सुबह गोमती नगर स्थित विशेष खंड में सुबह सवा छह बजे बीपी सिंह टहल रहे थे और उसी दौरान दो शूटरों ने 13 गोलियां बरसाकर उनकी हत्या कर दी. बृजलाल के मुताबिक, इन दोनों मर्डर केस में समानताएं बहुत थीं. बैलेस्टिक रिपोर्ट में सामने आया कि दोनों हत्या की वारदात में एक ही तरह का असलहा इस्तेमाल किया गया था. बृजलाल के मुताबिक, इस हत्याकांड के बाद यूपी एसटीएफ एसएसपी विजय प्रकाश ने 17 जून 2011 को बस्ती के दो शूटर आनंद तिवारी व विनोद शर्मा को आलाकत्ल के साथ गिरफ्तार किया और पूछताछ के बाद सचान के करीबी ठेकेदार आरके वर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया. जिसके बाद सच्चाई सामने आई कि डॉ. सचान ने ही अपने करीबी ठेकेदार आरके वर्मा के साथ मिलकर दोनों सीएमओ की हत्या करवाई थी.


हाई लेवल बैठक से ली अभय सिंह की क्लीन चिट : बृजलाल ने बताया कि बीपी सिंह के हत्यारों व साजिशकर्ताओं की गिरफ्तारी से साफ हो गया था कि दोनों ही हत्याएं सचान व आरके वर्मा ने करवाई थीं. ऐसे में अभय सिंह समेत अन्य उन लोगों को जेल में नहीं रहना चाहिए था, जिन्हें आर्य की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इसके लिए बृजलाल ने एक बार फिर से हाई लेवल बैठक में यह मुद्दा उठाया. इस बैठक में कैबिनेट सचिव शशांक शेखर, प्रमुख सचिव गृह, डीजीपी, एडीजी इंटेलीजेंस व बृजलाल खुद मौजूद थे. बृजलाल ने कहा कि अब उन सभी निर्दोषों को छोड़ देना चाहिए. खासकर अभय सिंह को जो 6 महीने से इस मामले में जेल में है. बृजलाल ने बताया कि बैठक में एक अधिकारी ने कहा कि अभय सिंह मुख्तार अंसारी के गैंग का है और विपक्षी दल से उसके सम्बंध है. जिस पर बृजलाल ने कहा कि ये एक अच्छा संदेश जाएगा कि निर्दोष पाए जाने पर इस सरकार ने विपक्ष के नेता को भी छोड़ दिया. जिसके बाद 169 सीआरपीसी का प्रयोग कर अभय सिंह को इस मामले से मुक्त किया गया.

ये भी पढ़ें : लखनऊ एयरपोर्ट पर पकड़ा गया 11 लाख से अधिक का सोना

हाईलेवल की बैठक में फैसले के बाद तत्कालीन आईजी स्तर के अधिकारी ने फैज़ाबाद जेल में एक इंस्पेक्टर को अभय सिंह के पास भेजा और बताया कि सीएमओ डॉ. आर्य की हत्या में वह निर्दोष हैं और जेल से रिहाई के लिए प्रत्यावेदन देने के लिए कहा. इसी के बाद अभय जेल से रिहा हो सके. फिलहाल वर्तमान में अभय सिंह दूसरी बार अयोध्या की गोसाईगंज सीट से विधायक हैं.

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लखनऊ : डिप्टी सीएमओ वाईएस सचान की मौत को सीबीआई की विशेष अदालत ने हत्या माना है. अब कोर्ट हत्या का मामला मान कर ही सुनवाई करेगी. कोर्ट ने 8 अगस्त को तत्कालीन डीजीपी से लेकर सभी जेल अधिकारियों को तलब किया है. ऐसे में अब उन दो सीएमओ हत्याकांड की परत भी खुल रही है जो उसी दौरान हुई थी. आज हम सीएमओ विनोद आर्य व बीपी सिंह की हत्या की अनसुनी कहानी के बारे में बताएंगे कि कैसे एक बाहुबली को यूपी पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने हत्या के आरोपों से बरी कराया था.

उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार थी. मायावती अपनी सरकार के तीन साल पूरी चुकी थीं. राज्य के सबसे बड़े राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) घोटाले का सामना कर रही थीं. घोटाले के बीच राजधानी में दो सीएमओ की हत्या ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. इन सनसनीखेज हत्याओं का आरोपी बना था पूर्वांचल का एक ऐसा माफिया जो अब माननीय है. हत्या का खुलासा किया गया, माफिया को जेल भेजा गया और पुलिसकर्मियों को इनाम भी दिया गया. खास बात ये रही कि यूपी पुलिस के नंबर दो के अधिकारी ने अपनी ही सरकार से लोहा लेकर इस माफिया को हत्या के केस से बरी कराया और असली हत्यारों को जेल भिजवाया. माफिया का नाम है अभय सिंह व उसे बचाने वाले अधिकारी थे तत्कालीन स्पेशल डीजी बृजलाल, जो बाद में डीजीपी बने और अब राज्यसभा सांसद हैं.

बातचीत करते संवाददाता गगनदीप मिश्रा




एनआरएचएम घोटाला आया सामने : साल 2010, उत्तर प्रदेश में 7 हजार करोड़ से भी अधिक का राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) घोटाला सामने आया था. इस घोटाले की आंच बड़े बड़े अधिकारियों तक पहुंचनी थी, लेकिन इस बात को अभी देर थी. फिलहाल घोटाला सामने आते ही अधिकारियों व नेताओं में हलचल बढ़ने लगी और साजिशें रची जाने लगीं. इस बीच 27 अक्टूबर 2010, को सुबह 6:30 बजे लखनऊ में सीएमओ परिवार कल्याण विनोद आर्य की विकास नगर के सेक्टर 14 स्थित उनके घर के पास 2 अज्ञात बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी. इस सनसनीखेज हत्या ने शहर में हड़कंप मचा दिया था. सरकार के सामने एनआरएचएम घोटाला पहले ही मुश्किलें खड़ी कर रहा था, ऐसे में उस बीच उसी विभाग के सीएमओ की हत्या ने हंगामा मचा दिया. इसी दौरान लखनऊ पुलिस को जल्द से जल्द हत्यारों को पकड़ने के निर्देश दिए जाते हैं.



बाहुबली अभय सिंह को किया गया गिरफ्तार : तत्कालीन स्पेशल डीजी बृजलाल के मुताबिक, डॉ. आर्य की हत्या के बाद वो खुद इस केस की इन्वेस्टिगेशन कर रहे थे. उन्होंने यह पाया था कि उस वक्त परिवार कल्याण विभाग के प्रॉजेक्ट डायरेक्टर रहे डिप्टी सीएमओ वाईएस सचान एनआरएचएम (NRHM) में आये बजट का बंदरबांट कर चुके थे और इसी की जानकारी डॉ. आर्य को जब हुई तो सचान से खर्च का ब्यौरा लेने लगे थे. इस बात से सचान परेशान हुए और डॉ. आर्य की हत्या की साजिश रच दी. अब तक यह सिर्फ इन्वेस्टिगेशन का हिस्सा महज था कोई सबूत नहीं था. ऐसे में सरकार पर इस हत्याकांड के खुलासे का प्रेशर था और सरकार नहीं चाहती थी कि इस केस में सीबीआई शामिल हो, क्योंकि अगर ऐसा होता तो सीबीआई NRHM घोटाले में भी घुस जाती. जिसके चलते जानबूझ कर लखनऊ पुलिस से फर्जी खुलासा कराया गया और अजय मिश्रा, विजय दुबे, अंशु दीक्षित, सुमित दीक्षित व जेल में बंद बाहुबली अभय सिंह को आरोपी बनाकर गिरफ्तार कर लिया गया. वहीं एक अन्य सीतापुर के अपराधी सुधाकर पांडेय को फरार दिखाया गया था. ये सभी आरोपी उस वक्त के खूंखार अपराधी थे. इस मामले में जल्दबाजी में चार्जशीट भी लगा दी गयी.



विनोद आर्य की हत्या के दौरान बाहुबली अभय सिंह फैज़ाबाद जेल में 120B के मामले में बंद थे. पुलिस ने अभय सिंह से पूछताछ करने के लिए रिमांड पर लिया और उन्हें लखनऊ लेकर चली आई. अभय सिंह को लखनऊ के अलीगंज थाने में रखकर पूछताछ की गई, लेकिन रिजल्ट शून्य रहा. अभय सिंह को वापस फैजाबाद जेल भेज दिया गया. पुलिस ने उस वक्त बताया था कि अभय सिंह ने अजय व विजय को 5 लाख में डॉ. आर्य की हत्या की सुपारी दी. जिसमें सुमित व अंशु भी शामिल थे. इस दौरान अभय सिंह ने खुद को बेकसूर साबित करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी.


बृजलाल ने बताया कि सुधाकर पांडेय को छोड़कर डॉ. विनोद आर्य की हत्या के सभी आरोपी पुलिस की जद में थे, लेकिन जांच में माफिया अभय सिंह का किसी भी प्रकार का हाथ होना नहीं पाया गया था. ऐसे में वो नहीं चाहते थे कि अभय सिंह इस हत्या के मामले में आरोपी बने. लिहाजा उन्होंने इसका विरोध उस वक्त के सबसे मजबूत व कद्दावर अधिकारी कैबिनेट सचिव शशांक शेखर के सामने किया और कहा कि अभय सिंह का नाम इस हत्याकांड के मामले में न रखें. उन्होंने कहा कि भले ही ये सभी आरोपी आदतन अपराधी हों, लेकिन इस हत्याकांड में निर्दोष हैं. असली आरोपियों को न पकड़ने से कोई और बड़ी घटना भी घट सकती है.

बृजलाल के मुताबिक, उस वक्त इस हत्याकांड के केस से जुड़े सभी फैसले शासन स्तर पर लिए जा रहे थे, ऐसे में उनकी बात को अनसुना कर दिया गया. वहीं, अभय सिंह समेत सभी आरोपी जेल में थे. इसी बीच 6 महीने बाद एक और सीएमओ की हत्या की साजिश रची जा चुकी थी. बृजलाल के मुताबिक, डॉ. आर्य की हत्या करने के बाद डॉक्टर सचान को यह लगा कि अब कोई सीएमओ पोस्ट नहीं होगा और अगर होता भी है तो उसके काम मे दखल नहीं देगा. तभी डॉ. बीपी सिंह को विनोद आर्य की जगह तैनाती मिल गयी. बीपी सिंह भी डॉ. आर्य की ही तरह सचान से NRHM में आये बजट के खर्च का ब्यौरा मांगने लगे और उन पर कार्रवाई करने की धमकी देने लगे. जिससे डॉ. सचान फिर से घबरा गया.


13 गोलियां बरसाकर की गई थी हत्या : 2 अप्रैल 2011, वही पद, वही समय, हत्या का तरीका भी वही और हथियार भी वही. अब डॉ. विनोद आर्य की जगह पर तैनात हुए डॉ. बीपी सिंह की हत्या कर दी गई. सुबह गोमती नगर स्थित विशेष खंड में सुबह सवा छह बजे बीपी सिंह टहल रहे थे और उसी दौरान दो शूटरों ने 13 गोलियां बरसाकर उनकी हत्या कर दी. बृजलाल के मुताबिक, इन दोनों मर्डर केस में समानताएं बहुत थीं. बैलेस्टिक रिपोर्ट में सामने आया कि दोनों हत्या की वारदात में एक ही तरह का असलहा इस्तेमाल किया गया था. बृजलाल के मुताबिक, इस हत्याकांड के बाद यूपी एसटीएफ एसएसपी विजय प्रकाश ने 17 जून 2011 को बस्ती के दो शूटर आनंद तिवारी व विनोद शर्मा को आलाकत्ल के साथ गिरफ्तार किया और पूछताछ के बाद सचान के करीबी ठेकेदार आरके वर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया. जिसके बाद सच्चाई सामने आई कि डॉ. सचान ने ही अपने करीबी ठेकेदार आरके वर्मा के साथ मिलकर दोनों सीएमओ की हत्या करवाई थी.


हाई लेवल बैठक से ली अभय सिंह की क्लीन चिट : बृजलाल ने बताया कि बीपी सिंह के हत्यारों व साजिशकर्ताओं की गिरफ्तारी से साफ हो गया था कि दोनों ही हत्याएं सचान व आरके वर्मा ने करवाई थीं. ऐसे में अभय सिंह समेत अन्य उन लोगों को जेल में नहीं रहना चाहिए था, जिन्हें आर्य की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इसके लिए बृजलाल ने एक बार फिर से हाई लेवल बैठक में यह मुद्दा उठाया. इस बैठक में कैबिनेट सचिव शशांक शेखर, प्रमुख सचिव गृह, डीजीपी, एडीजी इंटेलीजेंस व बृजलाल खुद मौजूद थे. बृजलाल ने कहा कि अब उन सभी निर्दोषों को छोड़ देना चाहिए. खासकर अभय सिंह को जो 6 महीने से इस मामले में जेल में है. बृजलाल ने बताया कि बैठक में एक अधिकारी ने कहा कि अभय सिंह मुख्तार अंसारी के गैंग का है और विपक्षी दल से उसके सम्बंध है. जिस पर बृजलाल ने कहा कि ये एक अच्छा संदेश जाएगा कि निर्दोष पाए जाने पर इस सरकार ने विपक्ष के नेता को भी छोड़ दिया. जिसके बाद 169 सीआरपीसी का प्रयोग कर अभय सिंह को इस मामले से मुक्त किया गया.

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हाईलेवल की बैठक में फैसले के बाद तत्कालीन आईजी स्तर के अधिकारी ने फैज़ाबाद जेल में एक इंस्पेक्टर को अभय सिंह के पास भेजा और बताया कि सीएमओ डॉ. आर्य की हत्या में वह निर्दोष हैं और जेल से रिहाई के लिए प्रत्यावेदन देने के लिए कहा. इसी के बाद अभय जेल से रिहा हो सके. फिलहाल वर्तमान में अभय सिंह दूसरी बार अयोध्या की गोसाईगंज सीट से विधायक हैं.

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Last Updated : Jul 23, 2022, 5:48 PM IST
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