लखनऊ: अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ़्तार किए गए भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी और तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर आयकर अरविंद मिश्रा को सीबीआई के विशेष न्यायाधीश अजय विक्रम सिंह ने दोषसिद्ध करार दिया है. कोर्ट ने अरविंद मिश्रा को 6 साल कारावास और 1 लाख 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है. कोर्ट ने सजा सुनाने के बाद आरोपी को जेल भेज दिया है.
कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि दोषी अरविंद मिश्रा वर्ष 1989 में संघ लोक सेवा आयोग के जरिए चयनित होकर भारतीय राजस्व सेवा में आया था. अगर वह इस मामले में शामिल न होता तो वह वर्तमान में शीर्ष के पदाधिकारियों में होता. कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने तमाम निर्णयों में कहा है कि भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को ऐसा कठोर दंड दिया जाए, जिससे समाज में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जाना संभव हो सके. ऐसे आरोपियों के प्रति सहानुभूति और नम्र व्यवहार किए जाने से समाज में गलत संदेश जाएगा और न्यायपालिका पर भी प्रश्नचिह्न लग सकता है.
अभियोजन के अनुसार, वादी आरसी गर्ग ने 29 नवंबर 1999 को सीबीआई के एसपी से शिकायत की थी की कि वह अपनी पत्नी की कंपनी का प्रबंधक है. कंपनी का कार्यालय जो विकास नगर में स्थित है, वह उसे बेचना चाहता है. इसके लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र की आवश्यकता है. कहा गया कि वादी ने प्रमाण पत्र पाने के लिए उप आयुक्त सर्विसेज को अर्जी दी. इस पर आरोपी ने प्रमाण पत्र देने के लिए 20 हजार रुपये मांगे हैं. इस सूचना पर सीबीआई ने ट्रैप टीम लगाकर 30 नवम्बर 1999 को 15 हजार रुपये की रिश्वत लेते हुए अरविंद मिश्रा की गिरफ्तारी की थी.
इस मामले में सीबीआई ने आरोपी के खिलाफ 13 अगस्त 2001 को चार्जशीट लगाई थी. लेकिन, शासन से अभियोजन स्वीकृति नहीं ली गई थी. लिहाजा न्यायालय ने 30 नवबंर 2015 को अभियुक्त को इस मामले से डिस्चार्ज कर दिया था. हालांकि, बाद में सीबीआई ने इस मामले में अभियोजन स्वीकृति लेकर फिर से चार्जशीट दायर की थी.
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